शनिवार, 28 जून 2025

आकर्षण

हृदय-हृदय सौगात है

अधर-अधर है बात

धड़कन मन से कहे

संवर-संवर कर बांट


अच्छी लगती बातें हैं

सुंदर से लगे जज़्बात

कुछ मिलकर ऐसा करें

एक-दूजे को हों ज्ञात


जितना आपको पढ़ लिया

उससे बिगड़े हैं हालात

और गहन पढ़ना चाहूं

मनभाव सजी है बारात


कुछ तो है आकर्षण में

मन चलता जैसे जांत

निकलें मेरे जैसा होकर

क्या देता जग को मांद।


धीरेन्द्र सिंह

29.06.2025

06.15








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मचान

कदम अब कदम हैं कहाँ वह उड़ान 

जनम अब जनम है कहाँ वह मचान 


हंसी-खुशी मिलजुलकर आँगन गहना 

इसका दिया उसका लिया और पहना 

परिवार के चलन में  सब बड़े थे सुजान 

जनम अब जनम है कहाँ वह मचान 


है सौभाग्त्शाली संग बुजुर्ग जो हैं पास 

कितना भी पढ़ो इनमें बात कुछ खास 

अनुभव के मचान में छिपे कई निदान 

जनम अब जनम है कहाँ वह मचान 


दादा-दादी, नाना-नानी अनुपम बानी 

परिवार में आत्मदीप्ति कोई ना सानी 

कल जो नींव थी चर्चित अब विज्ञान 

जनम अब जनम है कहाँ वह मचान।


धीरेंद्र सिंह

28.06।2025

13.32






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शब्द चल रहे थे, सामान्य थी बात
पिघलती रही कहती बहती, हृदय में रात

उनका सवाल था बहुत भोला, सरल, मासूम
निःशब्द था परिवेश पर रात्रि में चमक धूम
मन बह गया क्या-क्या कह गया जज्बात
पिघलती रही कहती बहती, हृदय में रात

सुनती और प्रश्न करती चर्चित थी प्रशंसा
एक बहाव का निभाव थी कहीं न आशंका
बोलीं अचानक इतनी तारीफ क्या है नात
पिघलती रही कहती बहती, हृदय से रात

रात्रि ढल चुकी थी नई तिथि का था आरम्भ
प्रयास यही था करें क्या कहां से मन प्रारंभ
पूछी इतनी रात बात लेखन कब नहीं ज्ञात
पिघलती रही कहती बहती, हृदय से रात

सुबह नींद से उठे नयन में लिए वह स्पंदन
अधरों पर दौड़ी मुस्कान किया हृदय वंदन
चैट भी भरते हैं खुमारी, नशा कई उत्पात
पिघलती रही कहती बहती, हृदय से रात।

धीरेन्द्र सिंह
28.06.2025
08.05



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शुक्रवार, 27 जून 2025

अब मेरी कहानी भी है उनकी जुबानी

कब कही रूहानी है जगती


आह्लाद में संवाद का अपना सुख 

बेबात के विवाद का अपना दुख

सुख-दुख में है सबकी कहानी 

कब कही रूहानी है जगती जवानी 


एक उम्र कह रही सुमिरन करें 

भाव न कहे लोग हैं सघन कहें 

अपना कहाँ समाज की मनमानी 

कब कह रही रूहानी है जगती कहानी 


परिपक्वता है ओढ़े झूठ का लबादा 

गंभीरता का क्षद्म दिखलाता श्लाघा 

बाधा का प्यादा उम्र की ज़िंदगानी 

कब कह रही रूहानी है जगती कहानी 


जो हैं तोड़ते बंधन है स्वयं  का वंदन 

उभरती भावनाओं को हैं  देते  चन्दन 

ऐसे ही लोग जीव आत्म कद्रदानी

कब कह रही रूहानी है जगती कहानी।


धीरेंद्र सिंह 

27.06.2025

14.08






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सोमवार, 23 जून 2025

खुदबुदाती जिंदगी - दिल

जीवन को जीव सजीव करने के लिए जी जान से सतत प्रयत्नशील रहता है। सजीव जीने की कामना दिल से उत्पन्न होती है। प्रत्येक जीव का दिल आजीवन सक्रिय रहता है और इसी सक्रिय दिल के कारण हिलमिल कर झिलमिल जगमगाने की चाहत नयनों में समेटे बढ़ते रहता है। यह प्राकृतिक आश्चर्य है कि प्रत्येक दिल सबसे पहले प्यार की अनुभूति से जागृत होता है। प्यार जो प्रत्येक पल का सदियों से एक स्थायी मुद्दा है सुगंधित होकर उड़ जाने का। 

उड़ता जीव नहीं बल्कि उड़ता तो दिल है। प्रत्येक दिल की आत्मिक भाषा एक ही होती है जो भावपूर्ण होती है किंतु शब्दहीन भी होती है और इस भाव को स्पर्श या भावाभिव्यक्ति द्वारा जीव आदिकाल से अपनाता रहा है किंतु इसमें पूरी सफलता और संतुष्टि नहीं मिलती है। प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए जीव ने अपनी एक भाषा निर्मित की और उंसमें निरंतर निखार लाते जा रहा है। वर्तमान में प्यार की भाषा बहुरंगी और बहुआयामी हो गयी है जिसमें भावनाएंकम और कामनाएं अधिक हो गयी हैं।

दिल मूलतः भावनाओं और कामनाओं की धरती पर संतुलन बनाकर जीता है। दिल को लोग हार भी जाते हैं, दिल को लूट भी लिया जाता है, दिल को चुरा भी लेते हैं, दिल अंगड़ाईयाँ भी लेता है, दिल टूटता भी है, दिल कातिल भी है आदि-आदि विभिन्न भाव और शब्द हैं जो दिल को प्रस्तुत करते रहता है। दिल एक लक्ष्य भी है दिल एक खोज भी है। यह बहुत कम होता है कि दिल से दिल मिल जाए और जीवन मधुर जुगाली बन जाए। 

जीवन में सर्जन की सभी क्रियाएं दिल से होती हैं और ऐसा सर्जन ही अपनी पहचान बना पाता है। सोशल मीडिया के कारण सर्जन का अंधानुकरण खूब हो रहा है परिणामस्वरूप मौलिक सर्जन छुपा-छुपा, दबा-दबा प्रतीत होता है। दिल की यह खुदबुदाहट एक अस्वस्थ प्रतियोगिता को जन्म देती है। दिल के अनुसार पूरी तरह चला भी नहीं जा सकता। विवेक का यदि दिल पर यथेष्ट नियंत्रण न रहे तो दिल सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं को ठेंगा दिखाते अनहोनी कही जानेवाली घटनाओं का उद्गम केंद्र बन जायेगा। नमक या मसाले की ततः विवेक का प्रसार दिल की समस्त कामनाओं और भावनाओं पर होना चाहिए। दिल हमेशा चाहता है कि अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता मिले पर  दिल हो जाना  दिल को यह नहीं मालूम कि पूर्ण दिल हो जाना अर्थात मौन हो जाना है।


धीरेन्द्र सिंह

23.06.2025

15.40

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