रविवार, 11 फ़रवरी 2024

सर्वभाषा की अतृप्ता

सर्वभाषा की अतृप्ता



नई दिल्ली में आयोजित वर्ष 2024 का विश्व पुस्तक मेला की थीम है “बहुभाषी भारत” – एक जीवंत परम्परा” इसलिए सर्वभाषा समभाव का वक्तव्य उद्घाटन अवसर पर शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा दिया गया। इस मेला के उद्घाटन अवसर पर प्रधान ने “ई पुस्तकालय” और “जादुई पिटारा” का उल्लेख कर यह दर्शाया की भविष्य में डिजिटल प्लेटफॉर्म का ही वर्चस्व रहेगा। सऊदी अरब को इस आयोजन का मुख्य अतिथि बनाया हाना और हाल 4 एच में 400 वर्गमीटर का पुस्तक स्थल प्रदान किया गया । धर्मेंद्र प्रधान का ही संबोधन अंग्रेजी में हुआ अन्यथा शेष संबोधन हिंदी में रहा। एक बार पुनः सभी संविधान सम्मत भारतीय भाषाओं को एकसमान मानते हुए सबको राजभाषा के रूप में ही प्रस्तुत किया गया।


सर्वभाषा का घोष तो थीम में किया गया है किंतु क्या सभी भाषाएं इस पुस्तक मेला में गरिमा सहित उपस्थित हैं। सभी पांचों हाल में आप घूम आईए सूचनाएं केवल अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास इन सूचनाओं आदि को द्विभाषिक रूप में भी प्रस्तुत कर सकता था पर ऐसा प्रथम दिवस अर्थात 10 फरवरी 2024 को देखने को नहीं मिला। सम्पूर्ण मंडप में अंग्रेजी का दबदबा दिखा और भारतीय भाषाओं को “इंडियन लैंग्वेजेस” में समेट दिया गया । हिंदी तो कसमसाती अपनी स्थिति को हाल नंबर 1 में प्रदर्शित कर रही थी। केंद्रीय कामकाज के राजभाषा की दयनीय स्थिति इस पुस्तक मेला में देखा जा सकता है।


अतृप्ता की तरह अपने वजूद और अपने अस्तित्व के लिए सर्वभाषा में अथक प्रयास करते हिंदी प्रतीत हो रही है। अतृप्ता अपनी विशिष्ट पहचान के लिए सर्वभाषा में अपना भविष्य देखती है और सर्वभाषा अतृप्ता में अपना लाभ देखता है। इन दोनों का गठजोड़ हिंदी लेखन के लिए कितना अहितकारी है दोनों नहीं समझ पा रहे। समझें भी कैसे ? लाभ अर्जन जब प्रचुर होता है तो अतृप्ता उभरती है और सर्वभाषा मुग्धित होकर अतृप्ता की चाकरी में लिप्त। सर्वभाषा की इस स्थिति का जायजा इस पुस्तक मेले में ही जाकर लिया जा सकता है। 


हॉल नंबर 5 और 4 में पुस्तकों के साथ रागात्मक संबंध स्थापित होता है और पुस्तक शीर्षक से ही एक संवाद स्थापित हो जाता है। यदि हॉल नंबर 1 में जाएं तो विपरीत अनुभव होता है। अव्यवस्थित पुस्तकों की वेदना हॉल की भीड़ और शोरगुल में दबी कराहती रहती है। विशेष तौर पर हिंदी पुस्तकों की बात करें तो इनके तेवर और अंदाज में कोई फर्क नजर नहीं आया। वही पुरानी चाल-ढाल है। हाल नंबर 4 एक में सऊदी अरब, श्री लंका, आदि विदेशों के स्टॉल हैं जो अनुवाद की संभावनाओं को नई दिशा दे रहे हैं। उद्घाटन अवसर पर शिक्षा मंत्री ने ए आई टूल्स से अनुवाद प्रक्रिया पर बल दिया। हिंदी का अस्तित्व पुस्तक मेले में “इंडियन लैंग्वेजेस” में सिमट गया है। न तो सूचना में हिंदी न तो तो हॉल में हिंदी खंड को प्रमुखता से दर्शाया गया है। मात्र इंडियन लैंग्वेजेस में सिमटी हिंदी सोच रही है कि कहां है उसके सरकारी कामकाज की भाषा का अस्तित्व ?


क्या सर्वभाषा ने अतृप्ता को मार डाला ?


धीरेन्द्र सिंह

11.02.2024

14.15


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