बुधवार, 12 मई 2010

राजभाषा कार्यान्वयन समिति और राजभाषा अधिकारी

भारत सरकार के सभी कार्यालयों,उपक्रमों,बैंकों आदि में राजभाषा कार्यान्वयन को सुचारू, सुनियोजित और सुंदर ढंग से संचालित करने के लिए राजभाषा कार्यान्वयन समिति का गठन किया गया है। इस समिति का गठन प्रत्येक कार्यालय, शाखा आदि में अनिवार्य है। इस समिति की बैठक प्रत्येक तिमाही में कम से कम एक बार अवश्य आयोजित की जानी चाहिए। सामान्यतया अप्रैल-जून, जुलाई-सितम्बर, अक्तूबर-दिसंबर तथा जनवरी-मार्च की कुल चार तिमाहियों में राजभाषा कार्यान्वयन समिति की कुल चार बैठकें आयोजित की जाती हैं। इस समिति के बारे में कुछ बातें प्रश्नोत्तरी शैली में प्रस्तुत हैं :-

प्रश्न – राजभाषा कार्यान्वयन समिति की गठन की आवश्यकता क्यों तथा इसका गठन अनिवार्य क्यों है ?

भारत सरकार अपनी राजभाषा नीति के अनुच्छेद 351 में कहा गया है कि,

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके...

अतएव यह आवश्यक हो जाता है कि राजभाषा के रूप में हिंदी भाषा का प्रसार एवं उसके विकास के लिए प्रत्येक कार्यालय में राजभाषा विषयक चर्चा एवं राजभाषा प्रगति की समीक्षा हो तथा यह कार्य एक समिति गठित कर सुविधापूर्वक किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त राजभाषा नियम के कुल 12 प्रमुख नियम में से नियम 12 में यह स्पष्ट किया गया है कि केन्द्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह कर्तव्य होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि अधिनियम और नियमों के उपबंधों और उपनियम (2) के अधीन जारी किए गए निदेशों का समुचित अनुपालन हो रहा है और इस प्रयोजन के लिए उपयुक्त और प्रभावकारी जॉच के लिए उपाय करें। इस प्रकार राजभाषा कार्यान्वयन समिति का गठन आवश्यक एवं अनिवार्य हो जाता है।
प्रश्न 2-इस समिति के पदाधिकारी कौन होते हैं और पदाधिकारियों की अधिकतम संख्या क्या है ?

राजभाषा नियम 12 में कहा गया है कि प्रत्येक सरकारी कार्यालय में राजभाषा कार्यान्वयन का दायित्व प्रशासनिक प्रधान का है इसलिए प्रत्येक कार्यालय में इस समिति का पदेन अध्यक्ष कार्यालय विशेष के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं तथा समिति का पदेन सदस्य-सचिव कार्यालय विशेष का राजभाषा अधिकारी होता है। इन दो पदों के अतिरिक्त समिति के सदस्य होते हैं जो सामान्यतया कार्यालय के विभिन्न विभागों के प्रमुख होते हैं। इस समिति की कोई निर्धारित संख्या नहीं होती है, कार्यालय के आकार के अनुसार संख्या होती है। कार्यालय के सभी विभाग प्रमुखों को इस समिति का सदस्य बनाना अनिवार्य है। इसमें कटौती करने अथवा चयनित विभागों के प्रमुखों को सदस्य बनाने से समिति का मूल उद्देश्य प्रभावित होता है। अपनी सुविधावश कुछ कार्यालय उपाध्यक्ष पद भी रखते हैं जो आवश्यक नहीं है।

राजभाषा अधिकारी : यहॉ पर राजभाषा अधिकारी का यह दायित्व होता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि कार्यालय के सभी विभागों के प्रमुख इस समिति के सदस्य हों। समिति को चोटी बनाने के प्रयास में किसी विभाग को छोड़ना प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

प्रश्न3- प्रत्येक 3 महीने में अपनी बैठक में क्या चर्चा करती है यह समिति ?

राजभाषा कार्यान्वयन को सुचारू रूप से चलाने के लिए भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष वार्षिक कार्यक्रम जारी किया जाता है जिसमें राजभाषा कार्यान्वयन के विभिन्न लक्ष्यों को दर्शाया गया होता है। इस बैठक में चर्चा करने के लिए सामान्यतया निम्नलिखित मदें कार्यसूची में उल्लिखित होती हैं :

1. पिछली बैठक के कार्यवृत्त की पुष्टि (इस मद में पिछली बैठक में लिए गए निर्णयों की समीक्षा की जाती है तथा उपलब्धियों को समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तथा यदि किसी लिए गए निर्णय पर कार्रवाई नहीं की जा सकी हो तो उसका कारण समिति को बतलाया जाता है। पिछली बैठक के निर्णयों पर कृत कार्रवाई पर संतुष्ट हो जाने के बाद समिति उस कार्यवृत्त को पारित कर देती है। यदि किसी निर्णय पर कृत कार्रवाई से समिति संतुष्ट ना हो तो उस मद को पुन: उस मद को चर्चा हेतु कार्यसूची में शामिल किया जाता है।

2. कार्यालय के विभागों द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन (इस मद में कार्यालय के सभी विभागों के राजभाषा कार्यान्वयन की समीक्षा की जाती है। समीक्षा का आधार वार्षिक कार्यक्रम के विभिन्न लक्ष्य होते हैं।

3. कार्यालय के अधीन शाखाओं के राजभाषा कार्यान्वयन की समीक्षा (इस मद में भी वार्षिक कार्यान्वयन के विभिन्न लक्ष्यों के अनुरूप समीक्षा होती है।

4. गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, प्रधान कार्यालय और संबंधित मंत्रालय से प्राप्त महत्वपूर्ण पत्र, परिपत्र आदि की चर्चा (इन महत्वपूर्ण पत्रों, परिपत्रों आदि से समिति को अवगत कराया जाता है तथा आवश्यकतानुसार समिति से दिशानिर्देश आदि प्राप्त किया जाता है।

5. अध्यक्ष की अनुमति से कोई अन्य विषय (इस मद से समिति के सदस्यों को अपनी बात रखने में सुविधा होती है। बैठक के कार्यसूची में कोई मद सम्मिलित न हो और किसी सदस्य को लगे कि उस मद पर समिति में चर्चा आवश्यक है तो अध्यक्ष की अनुमति से सदस्य अपनी बात रख सकता है।)

उक्त आधार पर यह समिति अपने क्षेत्राधिकार के प्रत्येक कार्यालय और शाखा आदि की समीक्षा कर लेती है। आवश्यकतानुसार उक्त कार्यसूची में नए मद जोड़े जाते हैं। उक्त मदों की चर्चाएं कार्यालय या शाखा के हिंदी की तिमाही रिपोर्ट के आंकड़ों तथा जॉच बिन्दु के अन्य आधारों पर होती हैं। समिति राजभाषा की उपलब्घि पर चर्चा कर उसमें वृद्धि के अवसरों, उपायों, प्रयासों आदि पर चर्चा करती है, असफलताओं पर चर्चा कर उसकी त्रुटियों, कमज़ोरियों आदि को दूर करने के लिए समयबद्ध कार्यक्रम बनाती है। ऐसी स्थिति में अकसर राजभाषा अधिकारी स्वंय को आगे रखने का प्रयास करता है जिससे राजभाषा कार्यान्वयन पीछे चली जाती है परिणामस्वरूप समिति को वस्तुस्थिति की जानकारी नहीं मिल पाती है।

राजभाषा अधिकारी : इस मद में राजभाषा अधिकारी की सजगता, सतर्कता और समर्थता की अत्यधिक आवश्यकता होती है। पिछली बैठक के कार्यवृत्त की पुष्टि करते समय यदि सदस्य-सचिव (राजभाषा अधिकारी)  समिति के समक्ष केवल सकारात्मक पक्ष और उपलब्धियों की प्रस्तुति करेगा तो राजभाषा कार्यान्वयन का यह एक ही पक्ष प्रस्तुत कर पाएगा। वस्तुत: अधिकांश राजभाषा अधिकारी श्यामल पक्ष को छुपाने की कोशिश करते हैं। राजभाषा अधिकारी अपनी वाह-वाही के लालच में यहॉ स्वार्थी नज़र आता है।

प्रश्न4- इस बैटक के कार्यवृत्त का क्या महत्व है ?

इस बैठक के कार्यवृत्त का सर्वप्रथम महत्व यह है कि इससे बैठक के संपूर्ण कार्यवाही की जानकारी मिलती है। बैठक में अनुपालनार्थ लिए गए निर्णयों का यह एक प्रामाणिक दस्तावेज होता है। एक अधिकृत दस्तावेज़ होता है। समिति की आगामी बैठक में कार्यवृत्त की पुष्टि में उपयोग में आता है। यह बैठक की मदवार, क्रमवार कार्यवाही अनुसार सदस्य-सचिव द्वारा लिखा जाता है जिसमें महत्वपूर्ण चर्चाएं, निर्णय, चर्चा में भाग लेनेवाले/ पहल करनेवाले सदस्यों आदि का नाम,पदनाम होता है अर्थात संपूर्ण बैठक का यह शाब्दिक आईना होता है। इसे विभिन्न कार्यालयों आदि में प्रेषित किया जाता है।

राजभाषा अधिकारी: कार्यवृत्त लिखना एक कौशल है। कुशल राजभाषा अधिकारी बैठक की संपूर्ण कार्रवाई को क्रमबद्ध, लयबद्ध और सारबद्ध रूप में लिखता है जो पठन में रूचिकर और आकर्षक लगता है। यदि इसे लिखते समय सदस्य-सचिव ने कुशलता नहीं दिखली तो यह एकरसता के संग उबाऊ लगता है तथा पढ़नेवाला बैठक के महत्वपूर्ण पक्षों को बखूबी नहीं समझ पाता परिणामस्वरूप राजभाषा कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

अंत में : राजभाषा कार्यान्वयन समिति और राजभाषा अधिकारी का अटूट पारस्परिक रिश्ता है। यदि यह समिति सशक्त है तो राजभाषा अधिकारी सशक्त है। यदि राजभाषा अधिकारी परिणामदाई है तो यह समिति परिणाम देनेवाली है। यदि राजभाषा अधिकारी अपने कार्य में प्रभावशाली है तो यह समिति भी प्रभावशाली है। किसी भी कार्यालय के राजभाषा कार्यान्वयन की स्थिति की झलक या तो राजभाषा कार्यान्वयन समिति के कार्यवृत्त से देखी जा सकती है अथवा राजभाषा अधिकारी से मिलकर इसका अनुभव किया जा सकता है। वर्तमान का सत्य यह है कि अधिकांश कार्यालयों में यह समिति एक औपचारिकता बन कर रह गई है।

धीरेन्द्र सिंह.