सोमवार, 23 मई 2022

प्रकाशक के चंगुल

प्रकाशक का चंगुल हिंदी के कुछ अति विशाल प्रकाशक हिंदी प्रकाशन की गरिमा को बनाए हुए हैं इसलिए क्योंकि वह बड़े हैं। अनेक हिंदी प्रकाशक विशाल प्रकाशक बनने के प्रयास में हैं। उभरते हुए प्रकाशक निम्नलिखित उपायों से अपने चंगुल में नए लेखक और लेखिकाओं को लेते हैं : 1. महिला रचनाकार :- उभरते हुए प्रकाशक नई रचनाकारों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी युक्तियों का पूर्ण प्रयोग करते हैं और कई नई लेखिकाएं ऐसे प्रकाशकों से जुड़ जाती हैं। जुड़ने वाली महिलाओं में अधिकांश घरेलू महिलाएं या सामान्य कामकाजी महिलाएं होती हैं। इस प्रकार महिलाओं की अच्छी खासी संख्या जोड़कर उनमें से चयनित महिलाओं से अपने प्रकाशन का प्रचार-प्रसार करवाते हैं। 2. पुस्तक लोकार्पण - गलत शब्द और नौटंकी : उभरते प्रकाशक अपने संपर्क जाल से रचनाकारों को आकर्षित करते हैं और यदि कुछ पुस्तकें प्रकाशित करने का अवसर मिल जाता है तो प्रकाशन के बाद लोकार्पण करते हैं। विमोचन शब्द को छोड़कर पुस्तक लोकार्पण जैसा शब्द प्रकाशक और उससे जुड़े लोगों द्वारा प्रयोग किया जाना बौद्धिक दिवालियापन का संकेत देता है। प्रकाशक रचनाकार से कहता है पुस्तक का प्रचार-प्रसार करिए। रचनाकार को यह बतलाता है कि ऑनलाइन भी "लोकार्पण" हो सकता है। रचनाकार अपने संपर्क के रचनाकारों से संपर्क कर ऑनलाइन आयोजन करता है। इस प्रकार प्रकाशक एक ऐसे समूह को बनाने में सफल हो जाता है जिसमें सभी रचनाकार होते हैं और सब अपनी पुस्तक प्रकाशन की कामना लिए रहते हैं। "लोकार्पण" नौटंकी का आरंभ होता है। ऑनलाइन एक समूह अनजाने में उभरते प्रकाशक के चंगुल में फंसते जाता है। आयोजन में प्रकाशक भी उपस्थित होता है। आयोजन का संचालन करनेवाला "लोकार्पण" पुस्तक और उसके रचनाकार की एक तरफ रखकर ऑनलाइन "टीम" के सदस्यों के परिचय के दौरान उसके समस्त रचना संसार को प्रस्तुत करने लगता है। ऐसी स्थिति में समझ में नहीं आता कि यह आयोजन "टीम" सदस्यों के रचना संसार से अवगत कराना है या "लोकार्पण" का है। बेहद नीरस और उबाऊ होता है विषय से हटकर "टीम" रचना संसार की कसीदाकारी। चंगुल में फंसे रचनाकार समझ नहीं पाते कि ऐसे संचालन से प्रकाशक यह टोह लेता है कि छपास की बीमारी किस में अधिक है और अपना अगला ग्राहक ढूंढ लेता है। 3. तेरी जय - मेरी जय : प्रकाशक के आयोजन चंगुल में फंसे रचनाकारों द्वारा एक-दूसरे की जम कर तारीफ की जाती है। इसके अतिरिक्त "टीम" के कुछ मित्र दर्शक होते हैं और खूब तारीफ करते हैं। एक नौटंकी अपनी यात्रा में लगातार प्रकाशक की मदत करते जाती है। 4. त्रुटियां स्वीकार नहीं : ऑनलाइन "लोकार्पण" नौटंकी की यदि त्रुटियों का उल्लेख समीक्षा में कर दिया जाए तो प्रकाशक तिलमिला जाता है। चूंकि उभरते ऐसे प्रकाशक धन अर्जन का ही लक्ष्य रखे रहते हैं इसलिए खुद नहीं टकराते बल्कि यदि कोई महिला रचनाकार हो तो अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करते हैं कि वह त्रुटि दर्शानेवाले टिप्पणीकार से भिड़े। कुछ संवाद के बाद आयोजन की त्रुटियों की सभी टिप्पणियों को डिलीट कर देते हैं। 5. पुस्तक विमोचन नहीं आता : उभरते प्रकाशक का उद्देश्य अपने प्रकाशन संस्था का प्रचार करना होता है इसलिए पुस्तक विमोचन आयोजन में कोई रोए या गाए फर्क नहीं पड़ता बल्कि वाहवाही मिलती है। एक या दो वक्ता पुस्तक विमोचन पर बोल पाते हैं अन्यथा शेष प्रशंसा के सिवा कुछ बोल ही नहीं पाते। 6. रचनात्मक विरोध आवश्यक : हिंदी भाषा और साहित्य के हित में है कि उभरते प्रकाशकों द्वारा नव प्रकाशित पुस्तक विमोचन के नाम पर यदि रचनाकारों का शोषण हो रहा हो और प्रकाशक आयोजन में उपस्थित होकर अपनी दुकानदारी चला रहा हो तो इसका विरोध करना चाहिए। विरोध ऐसे संचालकों का भी किया जाना चाहिए जो पुस्तक और उसके रचनाकार को छोड़ उपस्थित रचनाकारों के लेखन संसार का वर्णन करता है। इस प्रकार के संचालक को यह समझना चाहिए कि आयोजन पुस्तक विमोचन का है न कि सम्मिलित रचनाकारों के लेखन संसार के वर्णन का। समय की बर्बादी है। ऊक्त विचार काल्पनिक नहीं बल्कि अनुभव आधारित है। कब तक हिंदी लेखन, प्रकाशन में गुटबंदी चलती रहेगी। कौन रोकेगा उसे ? निश्चित एक प्रबुद्ध और जीवंत मस्तिष्क। हिंदी लेखन जगत में उभरते प्रकाशकों के चंगुल के विरोध और रचनात्मक टिप्पणी से त्रुटियों को दर्शाने का सिलसिला आरम्भ न होगा तो हिंदी लेखन का अहित होगा। धीरेन्द्र सिंह href="http://feeds.feedburner.com/blogspot/HgCBx. rel="alternate" type="application/rss+xml">Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha