विभिन्न केन्द्रीय कार्यालयों, उपक्रमों, सरकारी बैंकों में राजभाषा कार्यान्वयन की एक चुनौती हिंदी में कामकाज करने का प्रशिक्षण प्रदान करना है। सामान्यतया अधिकांश कर्मचारी अपने टेबल का कार्य अंग्रेजी में ही करना पसन्द करते हैं। अंग्रेजी में कार्य करने के दो प्रमुख कारण है – पहला कारण अंग्रेज़ी भाषा में कार्य करने की आदत है तथा दूसरा कारण अंग्रेज़ी भाषा को एक बेहतर भाषा मानने की मानसिकता है। हिंदी कार्यशाला प्रमुखतया इन्हीं दो पक्षों पर केन्द्रित रहती है। यह प्रशिक्षण न्यूनतम एक दिवस से लेकर अधिकतम सात दिनों का रहता है। यद्यपि वर्तमान में सामान्यतया यह 2 अथवा 3 दिवसीय होती है। विशेष परिस्थितियों में एक दिवसीय कार्यशालाएँ आयोजित की जाती है।
हिंदी कार्यशाला अधिकारियों तथा लिपिकों के लिए अलग-अलग आयोजित की जाती है। अलग-अलग आयोजन का उद्देश्य इन प्रवर्गों के अलग-अलग कार्यप्रणाली के कारण है। कहीं-कहीं अधिकारियों तथा लिपिकों की संयुक्त कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं जिसे व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता है। इस कार्यशाला का प्रथम चरण नामांकन का होता है जिसमें हिंदी के कार्यसाधक ज्ञान कर्मचारियों को ही नामित किया जाता है। मैट्रिक स्तर तक एक विषय के रूप में हिंदी का अध्ययन अथवा प्राज्ञ परीक्षा उत्तीर्ण या लिखित घोषणा को हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान माना जाता है। इस नामांकन में यह भी ध्यान रखना होता है कि नामित कर्मचारी को पिछले 5 वर्षों तक हिंदी कार्य़शाला में प्रशिक्षण हेतु नामित नहीं किया गया हो। प्रत्येक वर्ष हिंदी कार्यशालाओं के लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं तथा तदनुसार कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं अतएव यह प्रतिवर्ष जारी रहनेवाला कार्यक्रम है।
विषयों का चयन कार्यशाला में नामित कर्मचारियों के अनुरूप होता है। कार्यशाला का पहला सत्र भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक तथा राजभाषा नीति का होता है। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण सत्र है तथा इसमें काफी चर्चाएँ होती हैं। कार्यशाला की सफलता बहुत कुछ इस सत्र की सफलता पर निर्भर करती है। राजभाषा संबंधी स्पष्टता, राजभाषा नीति को व्यापकता से समझना तथा भाषा संबंधी सकारात्मक मानसिकता को यह सत्र बखूबी पूर्ण करता है। इसके बाद शब्दावली, हिंदी पत्राचार, प्रोत्साहन योजनाएँ. आंतरिक कामकाज में हिंदी का प्रयोग, प्रौद्योगिकी में हिंदी आदि विषयों का समावेश किया जाता है। इस प्रकार नामित कर्मचारियों को हिंदी में चर्चा करने, हिंदी में लिखने तथा कम्प्यूटर पर हिंदी में कार्य करने आदि का पूर्ण और उपयोगी अवसर मिलता है।
हिंदी कार्यशाला के प्रशिक्षकों पर कार्यशाला का पूरा दारोमदार रहता है। हिंदी कार्यशालाओं के प्रशिक्षक राजभाषा अधिकारी या हिन्दी अधिकारी होते हैं। राजभाषा अधिकारी के ज्ञान, अभिव्यक्ति कौशल, विषय प्रतिपादन, प्रश्नों के सार्थक समाधान करने की क्षमता से ही कार्यशाला की सफलता जुड़ी होती है। कार्यशाला में जागरूक, प्रतिभाशाली और कार्यालयीन कामकाज में कुशल कर्मचारी होते हैं ऐसी स्थिति में यदि राजभाषा अधिकारी स्वंय को एक प्रभावशाली प्राध्यापक जैसा प्रस्तुत करता है तो उससे न केवल वह कार्यशाला सफल होती है बल्कि राजभाषा कार्यान्वयन को परिणामदाई गति भी मिलती है।
हिंदी कार्यशाला अधिकारियों तथा लिपिकों के लिए अलग-अलग आयोजित की जाती है। अलग-अलग आयोजन का उद्देश्य इन प्रवर्गों के अलग-अलग कार्यप्रणाली के कारण है। कहीं-कहीं अधिकारियों तथा लिपिकों की संयुक्त कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं जिसे व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता है। इस कार्यशाला का प्रथम चरण नामांकन का होता है जिसमें हिंदी के कार्यसाधक ज्ञान कर्मचारियों को ही नामित किया जाता है। मैट्रिक स्तर तक एक विषय के रूप में हिंदी का अध्ययन अथवा प्राज्ञ परीक्षा उत्तीर्ण या लिखित घोषणा को हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान माना जाता है। इस नामांकन में यह भी ध्यान रखना होता है कि नामित कर्मचारी को पिछले 5 वर्षों तक हिंदी कार्य़शाला में प्रशिक्षण हेतु नामित नहीं किया गया हो। प्रत्येक वर्ष हिंदी कार्यशालाओं के लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं तथा तदनुसार कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं अतएव यह प्रतिवर्ष जारी रहनेवाला कार्यक्रम है।
विषयों का चयन कार्यशाला में नामित कर्मचारियों के अनुरूप होता है। कार्यशाला का पहला सत्र भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक तथा राजभाषा नीति का होता है। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण सत्र है तथा इसमें काफी चर्चाएँ होती हैं। कार्यशाला की सफलता बहुत कुछ इस सत्र की सफलता पर निर्भर करती है। राजभाषा संबंधी स्पष्टता, राजभाषा नीति को व्यापकता से समझना तथा भाषा संबंधी सकारात्मक मानसिकता को यह सत्र बखूबी पूर्ण करता है। इसके बाद शब्दावली, हिंदी पत्राचार, प्रोत्साहन योजनाएँ. आंतरिक कामकाज में हिंदी का प्रयोग, प्रौद्योगिकी में हिंदी आदि विषयों का समावेश किया जाता है। इस प्रकार नामित कर्मचारियों को हिंदी में चर्चा करने, हिंदी में लिखने तथा कम्प्यूटर पर हिंदी में कार्य करने आदि का पूर्ण और उपयोगी अवसर मिलता है।
हिंदी कार्यशाला के प्रशिक्षकों पर कार्यशाला का पूरा दारोमदार रहता है। हिंदी कार्यशालाओं के प्रशिक्षक राजभाषा अधिकारी या हिन्दी अधिकारी होते हैं। राजभाषा अधिकारी के ज्ञान, अभिव्यक्ति कौशल, विषय प्रतिपादन, प्रश्नों के सार्थक समाधान करने की क्षमता से ही कार्यशाला की सफलता जुड़ी होती है। कार्यशाला में जागरूक, प्रतिभाशाली और कार्यालयीन कामकाज में कुशल कर्मचारी होते हैं ऐसी स्थिति में यदि राजभाषा अधिकारी स्वंय को एक प्रभावशाली प्राध्यापक जैसा प्रस्तुत करता है तो उससे न केवल वह कार्यशाला सफल होती है बल्कि राजभाषा कार्यान्वयन को परिणामदाई गति भी मिलती है।
भाई धीरेंद्र जी,
जवाब देंहटाएंब्लॉगस्पॉट पर आपके विचार पढ़े, आप अच्छा काम कर रहे हैं परंतु हमें सूचना नहीं थी अतः ब्लॉग के बारे में विचार नहीं भेज सका था।
http://rajbhashavikasparishadnag.blogspot.com भी देखें।
शुभकामना और सहयोग की इच्छा से,
सादर,
डॉ. दलसिंगार यादव
निदेशक
राजभाषा विकास परिषद
प्रिय धीरेंद्रजी
जवाब देंहटाएंकार्यशाला पर अच्छा लिखा,लोग ऐसे विचारों को आगे बढाएंगें.
आर के शर्मा,
पूर्व सचिव, कानपूर नराकास