बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

हिन्दी और राजभाषा

भारतीय संविधान ने 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी का राजभाषा का दर्जा दिया। हिंदी को संघ के सरकारी कामकाज की भाषा बनाने के लिए राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। आम बोलचाला की भाषा, गीत-संगीत की भाषा, मीडिया की भाषा, साहित्य की भाषा के रूप में हिंदी अपनी विशिष्टता सहित जन-जन तक पहुँचने में समय नहीं लेती इसलिए इसकी लोकप्रियता अत्यधिक है। राजभाषा हिन्दी के मामले में ऐसी स्थिति नज़र नहीं आती है। वर्तमान में विभिन्न कार्यालयों में राजभाषा राजभाषा कार्यान्वयन की गति धीमी है तथा इस धीमी गति का नियमित विश्लेषण विभिन्न मंचों पर किया जाता है किंतु अपेक्षित प्रगति नहीं हो पा रही है। वस्तुत: राजभाषा और हिंदी में संघर्ष जारी है तथा हिंदी की लोकप्रियता के साये तले राजभाषा अपनी एक सशक्त छवि निर्मित करने में संघर्षरत है। यहॉ यह विचारणीय है कि यह संघर्ष क्यों? क्या राजभाषा को अपनी विशेष छवि निर्मित करने के लिए हिन्दी के साये तले ही रहना पडेगा? क्या राजभाषा खुले आसमान में नहीं पनप सकती है? कौन देगा इन सब प्रश्नों का उत्तर? जब भी हिंदी और राजभाषा का सवाल उठता है तब इस प्रकार के अनेकों अनेकों प्रश्न ऊभरते हैं।

राजभाषा और हिंदी का संघर्ष एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसे क्रमश: कम किया जा सकता है किंतु इस संघर्ष को कम करने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया जा रहा है। सामान्यतया यह भी प्रश्न किया जाता है कि राजभाषा हिन्दी और हिन्दी तो एक ही है फिर कैसा फर्क और कैसा संदेश? एक स्थूल अंतर तो यही है कि राजभाषा शुद्धत: कामकाजी भाषा है तथा इसमें सामान्यतया वह शब्दावलियॉ होती हैं जिनका सामान्य शब्दावली में प्रयोग कम होता है जबकि हिन्दी की शब्दावलियॉ बहुप्रचलित होती हैं। कार्यालयों के कर्मचारियों को हिन्दी की शब्दावली काफी प्रचलित लगती हैं जबकि राजभाषा के शब्दों के लिए उन्हें शब्दकोशों का सहारा लेना पड़ता है। राजभाषा में विभिन्न शब्दावलियॉ हैं जिनका धीरे-धीरे उपयोग हो रहा है इसलिए उनकी लोकप्रियता कीभी गति धीमी है। कर्मचारी प्राय: हिन्दी की शब्दावली को राजभाषा की शब्दावली से काफी करीब और सुपरिचित पाता है परिणामस्वरूप जब कर्मचारी राजभाषा में कुछ लिखना आरम्भ करता है तो उसे इन शब्दावली संघर्ष से गुजरना पड़ता है। राजभाषा में शब्दावली प्रयोग का द्वन्द्व ही राजभाषा और हिन्दी का स्वाभाविक द्वन्द् है।

यह तथ्य है कि अभी कुछ और वर्ष राजभाषा को अपनी विशेष छवि बनाने के लिए हिन्दी के साये तले रहना पड़ेगा। राजभाषा कार्यान्वयन के तमाम प्रयासों के बावजूद व्यावहारिक तौर पर कार्यालयों में राजभाषा उतनी लोकप्रिय नहीं हो पायी है जितनी उसे अब तक होना चाहिए था। राजभाषा को लोकप्रिय बनाना एक प्रमुख दायित्व है जिसमें केवल ऊर्जा की ही आवश्यकता नहीं है बल्कि एक विशेष उल्लास की भी आवश्यकता है। वर्तमान में राजभाषा के पास वह सारी विशेषताएं हैं जो इसे एक अभूतपूर्व ऊँचाई प्रदान कर सके। विभिन्न कार्यालयों के कर्मचारी अब भी राजभाषा में कार्य करना कठिन समझते हैं जो एक काल्पनिक कठिनाई है। इस कठिनाई को दूर करने लिए कार्यालयीन परिवेश में हीं को उसके विभिन्न रूपों में समय-समय पर प्रस्तुत करते रहना समय की मांग है।


राजभाषा खुले आसमान के नीचे पनप रही है। राजभाषा कार्यान्वयन में असंख्य उल्लेखनीय कार्यों का अनवरत सिलसिला जारी है। एक सकारात्मक परिवेश निर्मित हो रहा है तथा राजभाषा का विपुल साहित्य निर्मित किया जा चुका है। कर्मचारियों द्वारा राजभाषा के प्रयोग में हिचकिचाहट समाप्त हो गई है तथा राजभाषा को अपने कार्य में सम्मिलित करने का प्रयास जारी है। राजभाषा कार्यान्वयन एक उड़ान की तैयारी में है जिसमें एक पहचान बनाने की अभिलाषा है। हिन्दी और राजभाषा का संघर्ष कामकाजी हिंदी को एक नया रूप दे रहा है जिसमें भारत की सभी भाषाएँ भी सम्मिलित हैं। आलोचना के द्वारा इस विषय की गहराई को नहीं समझा जा सकता है, इसे समझने के लिए किसी कार्यालय में राजभाषा कार्यान्वयन का जायजा लेना ही सर्वोत्तम तरीका है।

धीरेन्द्र सिंह.

3 टिप्‍पणियां:

  1. Delhi High court allows RTI activist Mr. Rakesh Kumar Singh to file PIL against “Indian Rupee symbol selection process”.

    Mr. Rakesh Kumar Singh had submitted a LPA petition in the Delhi High Court challenging Delhi HC earlier judgment in which court had refused to entertain his petition challenging selection process of New Indian Rupee Symbol.

    After hearing the LPA, Hon'ble Chief Justice and Hon'ble Mr. Justice Sanjiv Khanna of Delhi High Court in their judgment said “We learned senior counsel appearing for the appellant submitted that he may be permitted to withdraw the appeal as he really does not have the grievance solely because the symbol has not been accepted but he intends to challenge the procedural aspects which are adopted by the Union of India at various levels relating to such kind of works which affect various provisions of the Official Languages Act and many other provisions of various statutes as well as Article 14 of the Constitution of India.

    If we understand the submission of Mr. Sawhney in a proper perspective, he wants to file a petition in the larger public interest.

    In view of the aforesaid, we are inclined to permit the withdrawal of the appeal with liberty to file a Public Interest Litigation with the appropriate pleadings and data which are necessary to sustain a Public Interest Litigation.” Order: LPA 310/2011

    http://www.saveindianrupeesymbol.org/

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  2. chhattisgarhi ko rajbhasha ka darja kab mila

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