हृदय-हृदय सौगात है
अधर-अधर है बात
धड़कन मन से कहे
संवर-संवर कर बांट
अच्छी लगती बातें हैं
सुंदर से लगे जज़्बात
कुछ मिलकर ऐसा करें
एक-दूजे को हों ज्ञात
जितना आपको पढ़ लिया
उससे बिगड़े हैं हालात
और गहन पढ़ना चाहूं
मनभाव सजी है बारात
कुछ तो है आकर्षण में
मन चलता जैसे जांत
निकलें मेरे जैसा होकर
क्या देता जग को मांद।
धीरेन्द्र सिंह
29.06.2025
06.15
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