रविवार, 26 अक्तूबर 2014

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति - प्रयोजन, प्रयास, प्रतिबद्धता

नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति प्रत्येक भारतीय नगर में राजभाषा का एक मुखर मंच है। केंद्रीय कार्यालय, बैंक, उपक्रम, बीमा कंपनियाँ इस समिति की सदस्य हैं। यदि सम्पूर्ण भारत की नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के कार्यनिष्पादन का विश्लेषण किया जाये तो यह स्पष्ट होता है कि इन समितियों के कार्यनिष्पादन में भिन्नता है जबकि लक्ष्य सबका एक है। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रमों के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने में नराकास (नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति) के सभी सदस्य प्रयासरत रहते हैं तथा यह समिति मिलजुलकर और एक दूसरे को सहायता प्रदान कर प्रगति करती है। यद्यपि अभी भी कई नगर ऐसे हैं जहां पर नराकास गठित नहीं की गयी है किन्तु ऐसे नगरों में नराकास के गठन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है।

गठन : किसी भी नगर में स्थित कार्यालयों में से किसी एक कार्यालय का चयन राजभाषा विभाग द्वारा किया जाता है जिसे नराकास के संयोजन का दायित्व दिया जाता है । नगर के एक कार्यालय का चयन चयनित कार्यालय के कार्यालयाध्यक्ष की सहमति से होता है। सामान्यतया यह कोशिश रहती है कि नगर में स्थित ऐसे कार्यालय को नराकास के संयोजन का दायित्व दिया जाये जहां नगर स्थित कार्यालयों के वरिष्ठतम प्राधिकारी पदस्थ हों। यह स्थिति सामान्यतया केंद्रीय कार्यालयों के नराकास में दिखलाई पड़ती है। यहाँ पर यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि किसी नगर में अधिकतम तीन प्रकार के नराकास का गठन हो सकता है यथा - केंद्रीय कार्यालयों की नराकास, बैंको की नराकास और उपक्रमों की नराकास। यह तीनों नराकास सामान्यतया महानगरों में गठित होते हैं अन्यथा केंद्रीय कार्यालयों की  नराकास और बैंकों की नराकास अधिकांश नगरों में पाये जाते हैं। इसके बावजूद बहुत छोटे नगरों में केवल एक नराकास गठित होती है जिसमें केंद्रीय कार्यालय, बैंक और उपक्रम सदस्य होते हैं।

सदस्य -सचिव : यह एक पदेन पद है तथा संयोजक कार्यालय का राजभाषा अधिकारी स्वतः समिति का सदस्य - सचिव बन जाता है। यह पद नराकास की एक ऐसी धुरी है जिसपर नराकास की गतिविधियां व गति पूरी तरह निर्भर रहती है। संबन्धित क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय से सदस्य-सचिव का सीधा संबंध जुड़ा रहता है तथा कार्यान्वयन, प्रशिक्षण आदि के अधिकारियों से समय-समय पर संपर्क होते रहता है तथा तदनुसार नगर में राजभाषा कार्यान्वयन गतिशील रहता है। सदस्य-सचिव एक तरफ समिति के पदेन अध्यक्ष को राजभाषा कार्यान्वयन विषयक सहायता प्रदान करता है तो दूसरी ओर समिति के सदस्यों के विचारों, सोच और सहयोग के आधार पर राजभाषा विषयक विविध गतिविधियों को अंतिम रूप प्रदान करता है। सामान्यतया सदस्य-सचिव की गतिशीलता के अनुरूप समिति गतिशील रहती है यद्यपि समिति पर नियंत्रण अध्यक्ष का रहता है। 

अध्यक्ष : समिति का अध्यक्ष पद एक पदेन पद होता है जो संयोजक कार्यालय के कार्यालय प्रमुख के लिए है। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के दिशानिर्देशानुसार तथा राजभाषा नीति के परिप्रेक्ष्य में नगर में राजभाषा कार्यान्वयन की प्रगति की जाती है। समिति की बैठक का आयोजन, समिति की गतिविधियों को मंजूरी, समिति के सदस्य कार्यालयों के हिन्दी की रिपोर्ट की समीक्षा आदि महत्वपूर्ण कार्यों का दायित्व अध्यक्ष का होता है। इस समिति में लिए गए निर्णय केवल अध्यक्ष द्वारा लिए गए निर्णय नहीं होते हैं बल्कि समिति के सभी सदस्यों से विचार-विमर्श कर निर्णय लिए जाते हैं। इस समिति के अध्यक्ष की दोहरी भूमिका होती है जिसमें एक तरफ तो समिति के सदस्यों के पक्ष को ध्यान में रखना पड़ता है तो दोसारी ओर राजभाषा नीति, वार्षिक कार्यक्रम के लक्ष्यों आदि को वरीयता देते हुये समिति को गतिशील बनाए रखना पड़ता है। अध्यक्ष का पद अत्यधिक दायित्व वाला पद है। 

क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय : : प्रत्येक समिति का संबन्धित क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय में उप-निदेशक (कार्यान्वयन) पदस्थ होते हैं। इस कार्यालय की भूमिका प्रेरक और प्रोत्साहक की भूमिका होती है। राजभाषा नीति एवं वार्षिक कार्यक्रम के लक्ष्यों के अनुसार प्रगति का जायजा लेने के लिए सामान्यतया इस समिति के प्रत्येक बैठक में क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय के प्रतिनिधि होते हैं जो उप-निदेशक (कार्यान्वयन) होते हैं या सहायक निदेशक (कार्यान्वयन) होते हैं अथवा शोध अधिकारी (कार्यान्वयन) उपस्थित होते हैं। इन अधिकारियों द्वारा भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के दिशानिर्देशों को समिति तक प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित की जाती है। क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय की निगरानी के अंतर्गत नराकास कार्य करता है।  

संयोजक कार्यालय के प्रधान कार्यालय की भूमिका : नराकास के संयोजनकर्ता यदि  केंद्रीय कार्यालय, बैंक, उपक्रम के प्रधान कार्यालय नहीं हैं तब उस कार्यालय के नरकस की बैठकों में कार्यालय के प्रधान कार्यालय की भूमिका रहती है। कुछ लोग इस मत के भी होते हैं कि नराकास में संबन्धित बैंक के प्रधान कार्यालय की क्या भूमिका है ? यहाँ इस तथ्य पर ध्यान देना आवश्यक है कि राजभाषा कार्यान्वयन के निर्धारित लक्ष्य होते हैं तथा स्पष्ट राजभाषा नीति है जिसके अनुसार राजभाषा कार्यान्वयन करना होता है। संयोजक कार्यालय चूंकि राजभाषा विषयक महत्वपूर्ण दायित्यों का निर्वहन करता है अतएव नराकास में लिए गए निर्णयों के उचित एवं प्रभावशाली कार्यान्वयन के लिए समिति के अध्यक्ष को उपयुक्त मशवरा दे सकता है और सदस्य-सचिव को कार्यान्वयन के लिए यथोचित दिशानिर्देश दे सकता है। नराकास के निर्णयों के कुशल एवं प्रभावशाली कार्यान्वयन के लिए संयोजक बैंक के प्रधान कार्यालय की भूमिका मत्वपूर्ण है अतएव नराकास की प्रत्येक बैठक में प्रधान कार्यालय के प्रतिनिधि की उपस्थिती जरूरी है। 
  
प्रयास एवं पहल :  नराकास द्वारा राजभाषा कार्यान्वयन को अब केवल समिति के सदस्य कार्यालयों तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं है। राजभाषा कार्यान्वयन के अंतर्गत अब समय आ गया है की राजभाषा की गूंज को समिति के सदस्यों से बाहर ले जाया जाये। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि नराकास नगर के महाविद्यालयों, विश्वविद्यालय में राजभाषा की जानकारी का प्रचार-प्रसार करें। ग्राहकों के बीच राजभाषा को लेकर जाएँ। इस प्रकार नगर की स्थानिक परिस्थितियों और विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुये नए प्रयास और पहल की जा सकती है। यह समय की और राजभाषा कार्यान्वयन की मांग है कि नराकास अपने सशक्त मंच का प्रयोग करते हुये राजभाषा को नए प्रयासों और पहल से एक नयी गति, ऊर्जा और दिशा प्रदान करे।   

प्रतिबद्धता : प्रतिबद्धता किसी भी कार्य एवं लक्ष्य के लिए परम आवश्यक है। नराकास के संयोजन, संचालन और नवोन्मेषी राजभाषा कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्धता अत्यावश्यक है। यदि समिति के सदस्य-सचिव की प्रतिबद्धता प्रबल होगी तो समिति के सदस्य कार्यालयों में पदस्थ राजभाषा अधिकारियों की प्रतिबद्धता उच्च स्तर की होगी। यदि किसी नराकास में यह स्थिति है तो सदस्य बैंकों के कार्यालय प्रमुख सहित समिति के अध्यक्ष कार्यान्वयन को अपना उत्साहपूर्ण सहयोग उल्लासित मन से देते रहेगे और ऐसी समिति अपनी एक विशेष पहचान बनाने में कामयाब होगी। प्रतिबद्धता के लिए प्रमुख प्रेरक की भूमिका संयोजक बैंक के प्रधान कार्यालय और क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय बखूबी निभा सकते हैं। 


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शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

पुरस्कारों से दबी राजभाषा

राजभाषा कार्यान्वयन प्रेरणा और प्रोत्साहन से किया जाता है, यह सर्वविदित है। इसी क्रम में श्रेष्ठ  राजभाषा कार्यान्वयन के विभिन्न महत्वपूर्ण पुरस्कारों को भी प्रदान किया जाता है। पुरस्कार जीतना हमेशा अच्छा होता है और प्रत्येक कार्यालय इसे पाने के लिए राजभाषा कार्यान्वयन में श्रेष्ठ कार्यनिष्पादन में व्यस्त रहता है। इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्राप्त करना प्रत्येक कार्यालय की चाहत होती है क्योंकि वर्तमान में राजभाषा कार्यान्वयन की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए इससे बड़ा पुरस्कार कोई नहीं है। सब लोग जानते हैं कि प्रत्येक योजना अपने आप में विशिष्ट और विशेष लक्ष्यों के प्राप्ति के लिए एक प्रेरक होती है। इस प्रकार राजभाषा के कई पुरस्कार हैं जो अपनी विशिष्टता के लिए राजभाषा जगत में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। राजभाषा के इन पुरस्कारों को पाने के लिए होड सी लगी हुयी है। ऐसी प्रबल और स्वस्थ प्रतिद्वंदिता में कुछ ऐसी भी घटनाएँ हो जाती हैं जो राजभाषा कार्यान्वयन के इस प्रयास को प्रभावित करती हैं। 

किसी भी सरकारी कार्यालय के उच्च प्रशासक से राजभाषा विषयक चर्चा करने पर राजभाषा पुरस्कार चर्चा का एक प्रमुख विषय रहता है। इन चर्चाओं में यह भी टिप्पणी रहती है कि पुरस्कारों को "मैनेज" किया जाता है। यहाँ यह प्रश्न उभरता है कि उच्च प्रशासक किस आधार पर अपरोक्ष में इस प्रकार कि बातें कर जाते हैं? यहाँ यह नहीं समझा जाना चाहिए कि सभी सरकारी कार्यालयों के प्रशासक अपरोक्ष में ऐसी ही बातें करते  हैं । कभी कहीं किसी उच्च प्रशासक से इस तरह कि बातें अनौपचारिक बातचीत के दौरान सुनने को मिलती है। यदि उनसे इस तरह कि बातों का आधार पूछा जाय तो प्रायः यही उत्तर मिलता है कि उनके कार्यालय के राजभाषा अधिकारी द्वारा यह बात बार-बार उनसे कही जाती है। यदि देखा जाय तो इस प्रकार कि बातें अक्सर ऐसे ही राजभाषा अधिकारी करते हैं जिन्हें अपने कार्यकाल में राजभाषा का एक भी पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ है।

क्या राजभाषा कार्यान्वयन वस्तुतः राजभाषा के विभिन्न पुरस्कारों से दबी है या कि चतुराईपूर्वक उसे पुरस्कारों से दबाने की असफल कोशिशें की जा रही हैं। राजभाषा कार्यान्वयन के विभिन्न चुनौतीपूर्ण कार्यों को करने की आवश्यक कौशल न रखनेवाले राजभाषा अधिकारी इस प्रकार के अतार्किक शोर मचाते हैं और अपनी राजभाषा कार्यान्वयन विषयक कमजोरी को छुपने का प्रयास करते हैं। राजभाषा के विभिन्न पुरस्कारों के निर्णय का आधार होता है। सरकारी कार्यालयों के राजभाषा का प्रत्येक सजग विभाग अन्य कार्यालयों की राजभाषा प्रगति की जानकारी रखता है। राजभाषा की विभिन्न बैठकों में कार्यालयों के राजभाषा विषयक प्रगति की चर्चा व समीक्षा की जाती है। सब कुछ स्पष्ट रहता है फिर भी उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को कल्पित कथा सुनाकर कुछ राजभाषा अधिकारी राजभाषा को बदनाम करने की भूमिका निभाते हैं। 

यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि उच्च प्रशासनिक अधिकारी सामान्यतया राजभाषा विषयक सूचनाओं के लिए अपने कार्यालय के राकभाषा विभाग पर निर्भर रहते हैं। उच्च प्रशासनिक अधिकारी राजभाषा कार्यान्वयन की वास्तविकता से परिचित हों इसीलिए नगर राजभाषा कार्यन्वयन समिति की बैठकों में कार्यालय प्रमुख की सहभागिता पर बल दिया जाता है। अब समय आ गया है कि वृहद परिप्रेक्ष्य में राजभाषा को  संबन्धित राजभाषा विभाग से बाहर निकाल कर एक नयी व्यापकता दें जिससे राजभाषा कार्यालय के प्रत्येक स्तर तक अपने स्पष्ट रूप में रहे। राजभाषा कार्यन्वयन के लिए पुरस्कार अति आवश्यक है किन्तु राजभाषा पुरस्कारों को विचित्र अफवाहों के दल-दल से बचाना भी बहुत जरूरी है।