अब मेरी कहानी भी है उनकी जुबानी
कब कही रूहानी है जगती
आह्लाद में संवाद का अपना सुख
बेबात के विवाद का अपना दुख
सुख-दुख में है सबकी कहानी
कब कही रूहानी है जगती जवानी
एक उम्र कह रही सुमिरन करें
भाव न कहे लोग हैं सघन कहें
अपना कहाँ समाज की मनमानी
कब कह रही रूहानी है जगती कहानी
परिपक्वता है ओढ़े झूठ का लबादा
गंभीरता का क्षद्म दिखलाता श्लाघा
बाधा का प्यादा उम्र की ज़िंदगानी
कब कह रही रूहानी है जगती कहानी
जो हैं तोड़ते बंधन है स्वयं का वंदन
उभरती भावनाओं को हैं देते चन्दन
ऐसे ही लोग जीव आत्म कद्रदानी
कब कह रही रूहानी है जगती कहानी।
धीरेंद्र सिंह
27.06.2025
14.08
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