सोमवार, 7 अक्तूबर 2024

हिंदी समूह - समग्र विकास (पहल-प्रश्रय-प्रभाव)

लिखित अभिव्यक्ति के लिए गठित और बने अनेक हिंदी समूह को संचालित, सुविकसित और सारगर्भित मूलतः एडमिन और मॉडरेटर बनाते हैं। जिनके द्वारा ही रचनाकार विकसित होते हैं और समूह को विकसित करते हैं। यहां यह मान लेना कि समूह का सदस्य रचनाकार दोयम दर्जे का होता है एक गलत सोच कही जाएगी, ऐसा कोई समूह मानता भी नहीं है। अभी भी कुछ हिंदी समूह हैं जहां एडमिन और मॉडरेटर सदस्य रचनाकार को आदर सहित अपने ही कतार में स्थान देते हैं। इस प्रकार के हिंदी समूह के एडमिन, मॉडरेटर अपने प्रयासों से  रचनाकार और रचनाओं की एक आकर्षक माला के रूप में आकर देते हैं जहां सबकी भूमिका उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण होती है। यहां एक स्वाभाविक प्रश्न उभरता है कि इस विषय पर लिखने की क्या आवश्यकता है ? संबंधित समूह के एडमिन और मॉडरेटर सक्षम हैं समूह को सही दिशा और गति देने के लिए। यह सही सोच है पर क्या सभी हिंदी समूह अच्छे हिंदी समूह हैं? क्या हिंदी भाषा या हिंदी साहित्य के विकास को और तेज गति देने के लिए सभी हिंदी समूह में निरंतर विकास के लिए एक स्वस्थ समीक्षा जरूरी नहीं है ? हम समूह सदस्य यदि इस दिशा में नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा? समय-समय पर इस विषय पर  लिखा जाना हिंदी समूह समग्र विकास के लिए आवश्यक है।

एक हिंदी समूह है और उस समूह में हिंदी रचनाएं ही प्रकाशित होती हैं एक बार समूह में एक अंग्रेजी भाषा में लिखित रचना मिली। यह देखकर आश्चर्य हुआ। दूसरी सबसे उल्लेखनीय बात की संबंधित सदस्य का खाता क्षद्म था क्योंकि जो नाम लिखा था वह विचित्र था उदाहरण के लिए बरगद। उसके साथ ही अंग्रेजी में जो लिखा गया था वह तर्कपूर्ण नहीं था। इस विषय पर एक तीसरा व्यक्ति चर्चा में आकर कह रहा है कि इस समूह में अंग्रेजी भाषा में भी रचना स्वीकार होती हैं। इस विषयक स्पष्टता समूह के नियमावली में क्यों नहीं है, इस प्रश्न पर तीसरे व्यक्ति का उत्तर नहीं मिला।


यहां यह कह देना की समस्या जिस समूह की है वह समूह जाने सुर बेकार के विवाद वाली पोस्ट पर दूसरा समूह क्यों ध्यान दे या क्यों ध्यान दिया जाए। यह सोच क्या उस सोच जैसी नहीं होगी कि बगल के घर में क्या हो रहा है उससे क्या मस्तलब ? हिंदी के विकास के लिए किए जा रहे उल्लेखनीय प्रयास को अति श्रेष्ठ बनाने के लिए त्रुटियों का उल्लेख सकारात्मक भाव किया जाना आवश्यक है।


एक और हिंदी समूह है जिसमें एक उत्सव में  सहभागी “बैकलेस” परिधान की नारी का कहीं से उठाया हुआ फोटो है जिसपर नारी के संस्कार पर टिप्पणी की गयी है। पुरुष जब अपने "सिक्स" या "एट" पैक दिखाता है तो उसे शारीरिक सौष्ठव कह सराहा जाता है और यदि नारी ऐसा वस्त्र पहन लें तो तत्काल संस्कार उभर आता है। किसी भी परिधान का कोई कारण होता है जिसमें फैशन उद्योग की भी भूमिका होती है। ऐसे कार्य अनुभवी मॉडल करती हैं। इस मुद्दे को प्रस्तुत कर यह कहने का प्रयास किया जा रहा है कि पोस्ट करनेवाली की रचना मौलिक होनी चाहिए और रचना समर्थन में उवयुक्त फोटो होना चाहिए।


एक तीसरे समूह में एक अच्छे कवि ने किसी दूसरे कवि की रचना पोस्ट की जिसमें मूल कवि का नाम भी था। रचना पोस्ट करनेवाले सदस्य स्वयं अच्छी कविता लिखते हैं तथा दूसरे कवि की संलग्न रचना नारी गरिमा को ठेस पहुंचाती चतुराईपूर्वक लिखी गयी थी। चर्चा के बाद पोस्ट करनेवाले सदस्य सहमत हुए की उनकी रचनाएं अच्छी होती हैं। समूह का यह दायित्व भी होता है कि मौलिक लेखन को प्रोत्साहन दें।


नारी, नारी और नारी, यह सत्य है कि यत्र-तत्र-सर्वत्र नारी की अति महत्वपूर्ण भूमिका होती ही। नारी के अनेक सौंदर्य हैं या ऐसे भी कहा जा सकता है कि नारीत्व ही सौंदर्य है। क्या सौंदर्य का एकमात्र मानक नारी देह रह गया है जी कुछ हिंदी समूह में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जा रहा है। निकट भविष्य में हिंदी का प्रमुख दायित्व हिंदी समूहों पर आनेवाला है और हिंदी समूहों का अपना भविष्य भी है अतएव समूह की महत्ता और गुणवत्ता पर निरंतर प्रयास की आवश्यकता है। इनपर गंभीरता से सोचना और सामयिक समीक्षा करना समय की मांग है।


धीरेन्द्र सिंह

08.10.2024

09.44




Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें