वर्तमान समय में हिंदी या केवल एक भारतीय भाषा सीखकर कुशल जीवनयापन या अति तार्किक और प्रभावशाली अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती है। विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन हो,हिंदी पत्रकारिता हो, विज्ञापन की दुनिया हो, उच्च शिक्षा के विभिन्न विषयों पर हिंदी में पुस्तकें तैयार करनी हो आदि, हर जगह बिना अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से हिंदी में कथ्य, भाव आदि अभिव्यक्ति में त्रुटियां होने की संभावना रहती है।
संलग्नक की दो भाषाओं में रिपोर्टिंग में हुई त्रुटि कितना बड़ा अर्थभेद उत्पन्न कर रही है। एक बड़े प्रकाशन समूह से प्रकाशित दिनांक 06 अक्टूबर 2024 के दोनों अंक हैं। अंग्रेजी दैनिक कहता है कि "87 वर्ष के मस्तिष्क मृत्यु के वरिष्ठतम व्यक्ति का अंगदान" जबकि हिंदी दैनिक का शीर्षक यह दर्शाता है कि जैसे मुंबई के सबसे एमबी जिंदगी जीनेवाले व्यक्ति ने स्वेक्षा से अंगदान किया है। हिंदी दैनिक ने ब्रेन डेड शब्द को शीर्षक से बाहर कर दिया जिससे यह भाव स्पष्ट हो रहा है कि मुंबई के सबसे अधिक दीर्घजीवी ने अंगदान किया। पत्रकारिता के स्वतंत्र, सरल, सहज और संक्षिप्त लेखन कौशल की विशिष्टता का अर्थ यह कदापि नहीं होता है कि भ्रामक शीर्षक दिया जाए। यद्यपि इस शीर्षक विषयक विस्तृत समाचार पढ़ने पर स्थिति स्पष्ट होती है किंतु क्या अंग्रेजी के पत्रकार की तरह हिंदी पत्रकार स्पष्ट शीर्षक नहीं लिख सकते थे ?
आए दिन हिंदी की विभिन्न विधाओं के लेखन में अर्थ फेर और सत्य लोप जैसे पाठ मिलते रहते हैं। यदि कोई पाठक मात्र शीर्षक पढ़कर आगे पढ़ने लगे तो एक अपूर्ण और भ्रामक सूचना का वह संवाहक हो सकता है। वर्तमान में अनेक पाठक कई रिपोर्ट के शीर्षक मात्र पढ़कर आगे पढ़ने लगते हैं। यह एक उदाहरण है जो दर्शाता है कि हिंदी लेखन कुछ-कुछ छोड़ते, मोड़ते कार्यरत है जिससे हिंदी के विविध लेखन साहित्य में उपलब्ध जानकारी आदि एक पुष्टिकरण के लिए प्रेरित कर रही हैं। क्या वर्तमान समय कह रहा है कि अच्छी हिंदी के लिए क्या अंग्रेजी ज्ञान आवश्यक है?
धीरेन्द्र सिंह
06.10.2024
09.40
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें