शनिवार, 13 जुलाई 2024

शब्दकोश ऋतु आयी

हिंदी भाषा के विकास यात्रा में 1970 के दशक में शब्दकोश का चलन अत्यधिक था। इस दशक में भाषा के प्रति व्यक्ति की चेतना अत्यधिक सजग रहती थी। यह सजगता हिंदी के नए शब्दों को सीखने के लिए भी थी और अंग्रेजी शब्द के सटीक हिंदी शब्द से परिचय की अभिलाषा भी थी। शब्दकोश बाजार में न केवल सहजता से उपलब्ध होते थे बल्कि विक्रेता द्वारा प्रमुखता से प्रदर्शित भी किए जाते थे। फादर कामिल बुल्के, ऑक्सफ़ोर्ड आदि शब्दकोष प्रचलन में थे। भाषा जब भी स्वयं को तनिक भी असमंजस में पाती है तो समाधान के लिए शब्दकोश की ओर लपकती हैं। इस क्रम में शब्दकोश में भी विकास हुआ जैसे डॉ. हरदेव बाहरी का दो खंडों का शब्दकोष, हिंदी थिसारस आदि की उपलब्धता हिंदी शब्दावली को और सुदृढ़ता प्रदान की। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग द्वारा सरकारी कामकाज की विभिन्न शब्दावली शब्दकोश भी उपलब्ध हैं।


वर्तमान में हिंदी विभिन्न शब्दकोश से सज्जित है किन्तु क्या शब्द सज्जा मात्र से भाषा सक्षम हो जाती है ? पिछले तीन दशकों से हिंदी भाषा में शब्दावली की दो धाराएं सक्रिय है जिसमें एक शब्दकोश सज्जित शब्दावली दूजी देश के विभिन्न भागों में प्रयोक्ताओं द्वारा हिंदी शब्दावली। नदी के दो पाट की तरह वर्तमान में हिंदी शब्दावली की स्थिति है। प्रचुर मात्रा में विभिन्न अभिव्यक्तियों की शब्दावली शब्दकोश में अपने प्रयोग के लिए प्रतीक्षारत हैं। सरकारी कार्यालयों में यदा-कदा इन शब्दावलियों का प्रयोग हो रहा है किंतु जनसाधारण द्वारा इन शब्दावलियों को अपनाया नहीं जा रहा है। वर्तमान में हिंदी के असंख्य शब्द जिनमें नवनिर्मित शब्द भी हैं अपने प्रयोग से वंचित हैं। जब तक लगभग अछूते इन शब्दों का जनसामान्य द्वारा प्रयोग और स्वीकारोक्ति नहीं होगी हिंदी फंसे गले की तरह अभिव्यक्त होती रहेगी।


भारत देश में अंग्रेजी मोह है या विवशता यह चर्चा का एक अलग विषय है किंतु बेहिचक अंग्रेजी शब्दों की उपयोगिता और नव निर्मित शब्दों की स्वीकार्यता अबाधित जारी है। हिंदी शब्दावली से सौतेला व्यवहार क्यों? इस प्रश्न पर विचार और चिंतन हिंदी से सीधे जुड़े भाषा ज्ञानियों का सोच विषय है। हिंदी भाषा के प्रति क्या असावधानीपूर्वक व्यवहार किया जा रहा है? हिंदी के सटीक अर्थ अभिव्यक्त करनेवाले सरल और सहज शब्द के स्थान पर अंग्रेजी शब्द का प्रयोग किस परिणाम की ओर इंगित कर रहा है, सोचनीय विषय है। सर्वविदित है कि भाषा वही जीवंत होती है जो इतर भाषा के शब्दावली को सहजता से ग्रहण कर ले किन्तु क्या एक लोकप्रिय शब्द को पार्श्व में रखकर दूसरी भाषा के शब्द को स्थापित करना न्यायपूर्ण भाषिक चेतना है?


न्याय शब्द का उल्लेख करते समय उभरा कि जुलाई 2024 के द्वितीय सप्ताह में भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड ने कहा है कि विधिक पेशा या वृत्ति तथा साथ ही साथ विधिक शिक्षा भी उसी भाषा में होनी चाहिए जिस भाषा को एक सामान्य व्यक्ति समझ सके। इस विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि विधि के विद्यार्थी से कोई ग्रामीण विधिक सलाह लेने आए और विधि विद्यार्थी “खसरा” और “खतौनी” शब्द को न समझ पाए तो वह ग्रामीण की सहायता कैसे कर सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विधिक प्रक्रियाओं को सहजतापूर्वक समझने के लिए उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1950 से लेकर 2024 तक के कुल 37,500 महत्वपूर्ण निर्णयों का अनुवाद किया है। कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है इस तथ्य को दर्शाते हुए चंद्रचूड ने राजकीय भाषा में न्यायप्रणाली को कार्य करने का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया है।


यदि केंद्रीय कार्यालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, बीमा कंपनियों और उपक्रमों के कार्यालय में हिंदी विषयक संबंधित कार्यालय साहित्य का अवलोकन किया जाए तो असंख्य अनुदित साहित्य उपलब्ध है। इनमें से कई अनुवाद को नई और सटीक शब्दावलियों से संशोधित करना होगा क्योंकि सत्तर और अस्सी के दशक में हुए अनुवाद को वर्तमान तक अनेक परिवर्तनों को भी समाहित कर अद्यतन होना है। उल्लेखनीय है कि शायद ही पचास प्रतिशत इन हिंदी साहित्य का उपयोग हो पाता हो। भारत सरकार की राजभाषा कार्यान्वयन नीति वर्तमान में लड़खड़ा गयी है। इस लड़खड़ाहट में इन कार्यालयों में हिंदी शब्दकोश भी शांत और निष्क्रिय नजर आ रहे हैं। ऑनलाइन हिंदी शब्दकोश और हिंदी अनुवाद कुछ हद तक सहायक जरूर है किन्तु स्थायी समाधान नहीं है क्योंकि इस दिशा में बहुत कार्य शेष है।


भारत की नई शिक्षा नीति तथा उच्च शिक्षा हिंदी माध्यम से देने की पहल और गतिशीलता के लिए हिंदी में लिखित पुस्तकों आदि की अत्यधिक आवश्यकता है। उपरोक्त को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट है कि हिंदी शब्दकोश की उपयोगिता अत्यधिक बढ़ेगी और हिंदी भाषा को प्रचुर संख्या में नया शब्द भी मिलेगा।


धीरेन्द्र सिंह

14.07.2024

11.51


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