मंगलवार, 16 जुलाई 2024

भूतिया लेखन और हिंदी

भूत का अस्तित्व नहीं होता है, भूत का अस्तित्व होता है। बहुत अतृप्त आत्मा है, मृत्यु के बाद कुछ भी शेष नहीं रहता। तर्क-वितर्क-कुतर्क और इनसे उपजा दर्शनशास्त्र। दर्शन व्यक्ति को अनछुए डगर का संकेत देता है। संकेत के इसी ऐतिहासिक इतिहास में यह शोध कर पाना कठिन है कि पहले “घोस्ट राइटिंग” अंग्रेजी में अस्तित्व में आया या हिंदी में भूतिया लेखन अपनी उपस्थिति दर्शा चुका था। लेखन में भूत कौन? वह अनजाना व्यक्ति जो किसी दूसरे व्यक्ति के लिए पुस्तक आदि लिखता है और दूसरा व्यक्ति बिना लिखे लेखक बन जाता है और पुस्तक लिखनेवाला व्यक्ति अपना पारिश्रमिक लेकर गायब हो जाता है।


प्रतिभाओं की देश में कभी भी कमी नहीं रही है। यह अवश्य होता रहा है हिंदी विशेष के अधिकांश प्रतिभाओं के साथ जिनको वह अवसर नहीं मिल पाया जिसके आधार पर अपना जीविकोपार्जन कर पाते। भूतिया लेखन के उद्भव और विकास पर शोध विद्यार्थी कभी अपना काम करेंगे। यहां महत्व की बात यह है कि क्या वर्तमान में हिंदी भूतिया लेखन वर्ग सक्रिय है? कठिन प्रश्न है। यदि हां कहा जाए तो तत्काल प्रमाण की मांग उठेगी। भला भूत का कैसा प्रमाण?  सूचना, प्रत्यक्ष अनुभव तथा वर्तमान में पुस्तक के लेखक द्वारा पुस्तक पर न बोल पाना आदि कुछ ऐसे संकेत हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि भूतिया लेखन अभी भी सक्रिय है।


कौन है संरक्षक भूतिया लेखन का? संरक्षक? यह कैसा प्रश्न? क्या भूतिया लेखन असामाजिक उद्योग है ?  जी हां भूतिया लेखन के संरक्षक हैं। हिंदी के कुछ प्रकाशक तथा कुछ पीएचडी गाइड, कुछ गीतकार आदि भूतिया लेखन के संरक्षक हैं। बगैर विषय का ज्ञान होते हुए भी हिंदी माध्यम से डॉक्टर की डिग्री प्राप्त की जाती है। इस कार्य के लिए ऐसे गाइड की खोज करना श्रमसाध्य कार्य है। हिंदी के कुछ प्रकाशक भूतिया लेखन द्वारा पुस्तक प्रकाशन की व्यवस्था रखते हैं। खूबसूरत आवरण के अंतर्गत भूतिया लेखक अपने-अपने सरंक्षकों के अंतर्गत कार्यरत है। भूतिया लेखन कितने करोड़ का कारोबार है इसका आकलन व्यापक शोध से ही संभव है।


इस विषय पर लिखने की आवश्यकता क्यों निर्मित हुई यह स्वाभाविक प्रश्न भी उभरता है। आजकल अंग्रेजी में यह विज्ञापन चलन में है कि “घोस्ट रायटर” उपलब्ध हैं जो व्यावसायिक तौर पर कुशलता से भूतिया लेखन कर सकता है। अंग्रेजी अब खुलकर स्वीकार कर रही है कि भूतिया लेखन निर्धारित पारिश्रमिक पर उपलब्ध है। इस तरह यह भी संभव है कि कालांतर में कोई मंच उभरे और कहे कि भूतिया लेखन सुविधा हिंदी में भी उपलब्ध है। हिंदी जगत के विभिन्न गलियारों के कालीन के नीचे सक्रिय भूतिया लेखक समूह यदि अपने लेखन का विज्ञापन आरंभ कर देगा तो कितनी बौद्धिक अनियमितता प्रसारित हो जाएगी। एक सोचनीय स्थिति निर्मित हो सकती है।


यदि यह संशय उभर रहा है कि अब तक भूतिया लेखन कहां-कहां अपना घुसपैठ कर चुका है तो कहा जा सकता है जहां हिंदी है वहां भूतिया लेखन का कोई न कोई प्रकार अवश्य प्रचलित होगा। एक सामान्य उदाहरण ऑनलाइन हिंदी समूहों का है। यहां बेहिचक एक दूसरे समूहों की पोस्ट और रचनाओं की चोरी होती रहती है। चोरी कर आंशिक बदलाव कर कोई दूसरा अपने नाम से उसी रचना को प्रकाशित करता है तो यह भी भूतिया लेखन का एक प्रकार है। कई रचनाकार अपनी रचना को रंगीन अक्षरों में टाइप कर उसका फोटो निकालकर समूह में पोस्ट करते हैं और आश्वस्त हो जाते हैं कि उनकी रचना न चोरी होगी और न कोई दूसरा अपने नाम से इस रचना को प्रकाशित करेगा। सोचिए।


धीरेन्द्र सिंह

16.07.2024

16.02


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