मंगलवार, 16 जुलाई 2024

साहित्य और एक चोर

चोरी समाज की एक असभ्य और आपराधिक क्रिया है। क्या सभी चोर आपराधिक भावना के होते हैं? साहित्यिक दृष्टि से नहीं किन्तु न्यायिक दृष्टि से प्रथम दृष्टया यह अपराध ही माना जाता है। एक घटना जुलाई 2024 के प्रथम सप्ताह में नवी मुंबई के पास नेरल में घटित हुई। नेरल प्राकृतिक दृष्टि से सम्पन्न स्थल है जहां भीड़ बहुत कम दिखती है। एक चोर कुछ दिनों से एक बैंड पड़े घर पर नजर गड़ाए हुए था और अवसर पाकर उसने उस बैंड घर का ताला तोड़कर प्रवेश किया और एलईडी टीवी संग कुछ अन्य वस्तुओं को चुरा ले गया। उस घर में चोरी के प्रथम कार्यनिष्पादन के दौरान चोर को यह अनुभव हुआ कि घर में चोरी की अच्छी संभावना है।


एक उत्सुक ऊर्जा, उत्साह और चोरी भावना में डूबा वह चोर दोबारा घर में प्रवेश कर गया और चोरी की क्रिया आरंभ की किन्तु अचानक एक फोटो और कुछ साहित्य देख चोर हतप्रभ जड़वत हो गया मानो काटो तो खून नहीं। यह क्या कर बैठा वह, चोर सोचने लगा और उसे भी नहीं पता कब उसके हाँथ जुड़कर उस फोटो को प्रणाम कर बैठा। मराठी के सुप्रसिद्ध दलित कवि नारायण सुर्वे का फोटो था तथा उनकी कुछ पुस्तकें थीं। अपराध भाव से द्रवित चोर कांपते मन से उस घर से खाली हाँथ बाहर निकल गया। उस चोर का मन उसे धिक्कार रहा था जैसे कह रहा हो छी यह क्या कर बैठे चोर। दलितों की साहित्यिक लड़ाई लड़नेवाले एक कर्मवीर और दूरदर्शी नायक के घर चोरी। दुख में कैसा खाना-पीना बस निढाल पड़ा अपने कुकर्म के लिए अपने को ही पश्चाताप की अग्नि में तपा रहा था।


उस चोर ने सोचा कि स्वयं को धिक्कारने से भला पश्चाताप पूर्ण हो सकता है। नहीं उसकी आत्मा नेकहा। फिर? चोर की बुद्धि ने प्रश्न किया। आत्मा चुप थी किन्तु विवेक ने कहा तत्काल टीवी सुर सनी वस्तुएं लौटा दे अन्यथा पश्चाताप की आग तुझे इतना तपाएगी कि तू झुलस जाएगा। अविलंब उस चोर ने उस घर से चोरी की गई सभी वस्तुओं को वापस उस घर में रख दिया। सामान बंद घर को लौटा जब चोर बाहर निकलने लगा तो उसे लगा कि कोई पीछे से उसका कॉलर पकड़ उसे खींच रहा है। रुक गए उसके कदम और स्वयं से प्रश्न कर बैठा, अब क्या? आत्मा ने कहा मैंने रोका है और तुम्हारे सामान लौटाने मात्र से बात नहीं बनेगी।


चोर सोच में पड़ गया कि इसके बाद अब क्या? विवेक ने कहा यह नारायण सुर्वे का घर है एक अद्वितीय सर्वहारा वर्ग का रचनाकार, शब्द से क्षमा प्रार्थना करो तब कहीं यह महान कवि तुम्हें क्षमा करेंगे। बुद्धि सक्रिय हुई और उस चोर ने मराठी में क्षमा याचना की और अंत में अंग्रेजी में “सॉरी” लिखकर घर के भीतरी दीवार पर चिपका दिया। उस चिपके कागज पर मराठी में  व्यक्त भावों का हिंदी अनुवाद निम्नलिखित है:-

मुझे मालूम नहीं था कि यह नारायण सुर्वे का घर है अन्यथा मैं चोरी नहीं करता। मुझे माफ़ कीजिए। मैंने आपका जो सामान लिया है उसे लौटा रहा हूँ। मैंने टीवी भी लिया था उसे वापस लाकर रख दिया हूँ, sorry


एक साहित्यकार का प्रभाव कितना गहन और व्यापक होता है। स्वर्गीय नारायण सुर्वे प्रख्यात दलित साहित्यकार थे और उनके फोटो तथा साहित्य से चोर द्रवित होकर पछताने लगता है। रचना कभी मरती नहीं। क्यों इस विषय पर लिखने का प्रयास किया गया जबकि समाचार यह सूचना दे ही रहा है। समाचार यह नहीं बोल रहा और न बोलेगा की साहित्यकार के अमर पहचान के अनेक उदाहरण विश्वविद्यालय और मंचों से प्रस्तुत किया जाता है। अब यह उदाहरण भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि स्वर्गीय नारायण सुर्वे के फोटो और साहित्य ने चोर का हृदय परिवर्तन कर दिया। यह एक विशिष्ट साहित्यिक घटना है।


धीरेन्द्र सिंह

17.07.2024

11.42



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