गुरुवार, 27 जून 2024

हिंदी और शातिर

आतृप्ता से बचिए हिंदी जगत हित में

 

हिंदी जगत में अशोभनीय कार्यों की चर्चाएं कम होती हैं। इसका एक प्रमुख कारण है। अशोभनीय बातों में सहभागिता के कारण जुड़े सभी व्यक्ति भी दोषी सिद्ध हो सकते हैं और इसी भय का फायदा उठाकर अतृप्ता अपने चयनित पुरुषों का बौद्धिक्त8, आर्थिक और शारीरिक शोषण करते रहती है। अधेड़ उम्र की यह महिला हरियाणा में रहती है जहां पहुंचने के लिए सेक्टर 28 मेट्रो स्टेशन पर उतरा जा सकता है।

 

अब तक इस अतृप्ता ने एक संस्था डूबा दी और हिंदी के कई साहित्यकारों का आवश्यक्तान्यूसार शोषण करके अपमानित कर छोड़ चुकी है। यह प्रश्न स्वाभाविक है कि अतृप्ता कौन। आवश्यक मूल आधारित सूचना दी जा चुकी है शेष यदि आपके करीब यह आएगी तो ज्ञात हो जाएगा अतृप्ता यही है। इसके शिकार हिंदी जगत के प्रतिभाशाली पुरुष और स्त्री होते हैं।

 

पिछले दो वर्षों से अतृप्ता नई दिल्ली के हिंदी प्राध्यापकों की ओर मुड़ी है। हिंदी के किसी आयोजन जिससे यह जुड़ी रहती है एक या दो हिंदी प्राध्यापकों को मंच पर ला खफा कर देती है। हिंदी के वह आयोजन प्राध्यापक स्तर के नहीं होते हैं। एक स्तरहीन हिंदी आयोजन के मंच पर प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के हिंदी के प्राध्यापक यदि उपस्थित होते हैं तो यह दर्शाता है कि अतृप्ता कितनी कुशलता से प्रभावित कर लेती हैं। हिंदी से जुड़े विद्वानों को मानसिक और भावनात्मक उलझन न हो इसलिए अतृप्ता से जुड़कर अति सावधानीपूर्वक व्यवहार की बात की जा रही है।

धीरेन्द्र सिंह

28.06.2024

08.57

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शनिवार, 22 जून 2024

तुमसे तुमने तुनकमिजाजी

तुनकमिजाज तो तुम पहले से ही थी। शिक्षित व्यक्ति प्रायः तुनकमिजाज होते हैं जिसका प्रतिशत सबमें अलग-थलग होता है। परिचय के आरंभ में कितना क्षद्म व्यवहार की थी तुम। क्या ? अनुचित और अशोभनीय वाक्य बोल गया। तो क्या था वह व्यवहार ? नहीं उल्लेख नहीं करूंगा लेखन में कदापि नहीं। निजता का हनन होगा। अब यह मत कहना कि इतना लिखकर सुधीजनों को एक स्पष्ट संकेत दे दिया जिसपर उनकी कल्पनाएं नए भाव गढ़ेंगी। छोड़ो भी मन कहां भटक गया। नारी के मनोभाव समझने का साहस कब अपनी स्वाभाविक चेतना स्पंदन को समझ पाता है। समझना अत्यधिक दुरूह कार्य है।


शिक्षा मतलब उच्च शिक्षा अर्थात स्नातकोत्तर जो तुम्हारी शिक्षा है और विश्वविद्यालय भी जगत प्रसिद्ध। इस शिक्षा के बाद निर्मित स्व-समूह में एक पहचान  को बढ़ाता है। समूह में चापलूस भी मिल जाते हैं विशेषकर विपरीत लिंगी और फिर तो तुनक की धमक से पूरा परिवेश गूंज जाता है। बड़ा प्यारा और अपना लगता है चापलूस। तुम्हारे जीवन में तो चापलूस ही थे सब। क्यों ? बुरा लगा। तुम्हारे व्हाट्सएप्प पर कितना रंगीन नजारा रहता था। केश को अपने चेहरे पर कर उड़ाती शोख लट और उत्प्रेरित करती तुम्हारी बड़ी बाली खींच लेती थी पुरुषों को। क्या सब पुरुष थे? पुरुष तो चापलूस नहीं होता और न वह प्रतीक्षारत रहता है कि कब तुम्हारी पोस्ट आए और तुम्हें निहारते तुम्हारे सौंदर्य की कसीदाकारी करें। प्यार और सौंदर्य के विकृत रूप थे सब, शायद कुछ वर्षों में समझ गयी होगी।


तुम नारी हो इसलिए एक सहज आकर्षण था यह अर्धसत्य होगा, मूल तो तुम्हारी मानसिक सर्जना थी। याद है तुम्हें कई बार कहा था कि यह "तुम" संबोधन भी मैं नहीं करना चाहता पर क्या करता तुम नाराज हो जाती थी। आप में आदर, अभिमान (तुम्हारे साथ का), नारी अस्मिता ही तो समेट रखा था जिसका प्रयोग न करने दी। व्हाट्सएप्प पर तुम्हारे चापलूस पुरुष भी तो तुम्हें "तुम" कहकर ही बुलाते थे। कई बार कहा कि यह सब तुम बोलकर तुम्हारा सम्मान नहीं करते। तुम चुप रहती थी। एक दिन बोली कि तुम्हारे पति भी व्हाट्सएप्प को देखते हैं और मेरी प्रतिक्रिया उन्हें बुरी लग सकती है। तुम्हारे व्हाट्सएप से मैं तत्क्षण दूर हो गया यह सोचते हुए कि अन्य पुरुष तुम-तड़ाक बोलते हुए कितनी आत्मीय और श्रृंगारिक बातें लिखते थे क्या वह तुम्हारे पति के समझ के परे था। नहीं बोला यह वाक्य बस हट गया और तुमने अपने व्हाट्सएप से मुझे ब्लॉक कर दिया। तुम याद आई तो लिख दिया बस यहीं तक ही तुनकमिजाज कवयित्री जी।


धीरेन्द्र सिंह

22.06.2024

14.06


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शुक्रवार, 21 जून 2024

ए आई और साहित्य

कृत्रिम बौद्धिक्त (AI) और साहित्य


साहित्य से तात्पर्य हिंदी ललित साहित्य का ही नहीं है बल्कि जीवन से जुड़े विभिन्न साहित्य का है जिसे यहां साहित्य शब्द में समेटा गया है। कार्यालयों में कृत्रिम बौद्धिक्त सबसे पहले आनुवाद क्षेत्र में अपनी धमक की अनुगूंज विस्तारित किया। भारतीय रेल के टिकट द्विभाषिक मिलना आरंभ हुआ। इसके बाद कार्यालय अनुवाद में कृत्रिम बौद्धिकता पहुंची और अब अनुवादक पर निर्भरता को कम कर रही है। इस प्रकार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कृत्रिम बौद्धिकता सहजतापूर्वक अपने पांव पसार रही है।


भारत के आम चुनाव में जीनिया ए आई ने एक सफल सेफोलॉजिस्ट की भूमिका निभाई और विभिन्न भारतीय राजनैतिक पार्टियों द्वारा जीते जानेवाली सीटों का अनुमान लगभग सत्य के करीब पहुंचाया जबकि अन्य मानव चुनाव सीट विश्लेषक जीनिया तक नहीं पहुंच पाए। प्रसंगवश इस तथ्य का भी उलकेख आवश्यक है कि इंग्लैंड में होनेवाले चुनाव में सर्वप्रथम कृत्रिम बौद्धिक्त प्रत्याशी स्टीव हैं जिनके जीतने की संभावना प्रबल लग रही है। इस प्रकार जीवन के लगभग हर क्षेत्र में कृत्रिम बौद्धिकता अपनी पहचान बना रही है। रोबोट के रूप में रेस्तरां से ऑपरेशन थियेटर तक ए आई पहले से ही उपस्थित है।


चैट जीपीटी के सुखद अनुभूति से अधिकांश परिचित होंगे जो अब मोबाइल में अपनी वर्चस्वता का ध्वज लहरा रहा है। कुछ दिन पहले दुबई में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आयोजन में भारत के इंजीनियर आदित्य ने ए आई से एक कहानी लिखवाया। ए आई ने 200 शब्दों में अंग्रेजी में कहानी लिख दिया। यह कहानी अंतरिक्ष, परग्रहवासी और अंतरिक्ष यात्री कमांडर एल मोरो पर आधारित है जिसमें रोचकता विद्यमान है।


शीघ्र ही हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कृत्रिम बौद्धिक नाम से लिखित कहानी और उण्यास प्राप्त होंगे। काव्य विधा में भी ए आई अपनी पहचान बना लेगा। भविष्य में मनुष्य द्वारा लिखित साहित्य का ए आई द्वारा लिखित साहित्य से तुलना होगी। यह संभावना हो सकती है कि कृत्रिम बौद्धिकता नाम का हिंदी साहित्य में एक नया खंड निर्मित हो और स्नातकोत्तर कक्षाओं में कृत्रिम बौद्धिकता साहित्य की शिक्षा प्रदान करें। 


धीरेन्द्र सिंह

22.06.2024

10.45


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