हिंदी के विवादास्पद दायरे
हिंदी भाषा को लेकर कई भ्रांतियां हैं जिसमें से एक यह है कि हिंदी अंतर्राष्ट्रीय भाषा की ओर अग्रसर है। भारत देश का विशेषकर हिंदी क्षेत्र की यह स्थापित धारणा है कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा है। इस प्रकार के हिंदी के प्रचलित भ्रामक दायरे युवा मस्तिष्क को भाषागत गलत राह पर ले जाते हैं। सब कुछ जानने के बावजूद भी यह भ्रांतियां मैदानी घास की तरह पनपती जा रही हैं। हिंदी के दायरे को भ्रमित करनेवाले प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं :-
1. अंतर्रराष्ट्रीय पटल पर बढ़ती हिंदी :- इस भ्रामक तथ्य के लिए यह कहा जाता है कि:
कथन :- विदेश के विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग भी कार्यरत हैं जिनमें इतनी संख्या में विद्यार्थी हिंदी का अध्ययन करते हैं।
नहीं बताया जाता :- यह नहीं बतलाया जाता है कि हिंदी विषय का अध्ययन राजनीतिक कूटनीतिक, व्यापार के लिए, अपने साहित्य का अनुवाद हिंदी में करने के लिए ही विदेशी हिंदी का अध्ययन करते हैं। यह उनका हिंदी प्रेम नहीं है बल्कि आर्थिक, राजनैतिक और अपने साहित्य प्रसारण का उद्देश्य है।
इस सत्य को भी नहीं बतलाया जाता है कि बौद्धिक पलायन के कारण भारत के नागरिक विश्व के देशों में वितरित हो चुके हैं तथा कुछ संख्या उन देशों के नागरिक भी हो गए हैं जिनके माध्यम से हिंदी फुदकती महकती दृष्टिगोचित होती है।
2. हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा :- प्रस्तुत आंकड़े विदेशों में बसे भारत के मूल निवासियों की संख्या भी जोड़ते हैं जिसमें परिवार के युवा सदस्य भी आ जाते हैं जिनका जन्म विदेश में हुआ है और वे वहां के नागरिक हैं। यदि हिंदी सच में विश्व मे सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा है तो कम्प्यूटर की भाषा भारत ने अंग्रेजी क्यों रखा गया है ?
3. हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है :- भारत के संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं है कि हिंदी भारत गणराज्य की राष्ट्रभाषा है। इस तथ्य के बावजूद भी राष्ट्रभाषा कथन विभिन्न मंचों और समारोहों में प्रायः उल्लिखित किया जाता है।
4. इंडिया शब्द को हटाने की मांग :- भारतीय शहरों और रेल्वे स्टेशनों के नाम परिवर्तन से प्रोत्साहित कुछ लोग देश की पहचान इंडिया नाम को हटाने का कवायद कर रहे हैं और मात्र भारत नाम से देश की पहचान को बनाए रखना चाहते हैं।
भारत के संविधान में हिंदी राजभाषा और अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप में निर्धारित है और अंग्रेजी में इंडिया नाम से असंख्य दस्तावेज, शिल्प आदि निर्मित हैं। यदि भारत के संविधान से अंग्रेजी सह-राजभाषा के रूप से निकाल दी जाए तो देश की इंडिया नाम से पहचान भी अवरोधित कर समाप्त की जा सकती है।
5. निर्धारित क्षेत्रों में ही हिंदी गूंज:-
कथन : विभिन्न हिंदी आयोजन दिल्ली, मुम्बई, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार तक ही सीमित हैं।
इसका यथार्थ : हिंदी की विभिन्न संस्थाएं जिनका उद्देश्य हिंदी का विकास होता है वह सिर्फ कागज पर पंजीकरण कराने के लिए होता है। यह संस्थाएं महाराष्ट्र में मुम्बई के सिवा किसी अन्य जिले में नहीं जाती। गुजरात तक में आयोजन करने में हिचकते प्रतीत होते हैं। पंजाब का कहीं उल्लेख तक नहीं ऐसे आयोजनों में। दक्षिण के राज्यों में शायद कदम ही नहीं उठते हैं। इस प्रकार हिंदी प्रसार के गीत वहीं गाए जाते हैं जहां हिंदी गीतों की रचनाएं होती हैं दूसरे शब्दों में नानी के सामने ननिहाल का बखान कर क्या मिलेगा।
हिंदी के विवादास्पद दायरे सिर्फ ऊक्त मदों तक ही सीमित नहीं हैं। पक्ष कई हैं जिनका लक्ष्य एक है। जब पक्ष भ्रमित या निजी स्वार्थों की पूर्ति का हिमायती हो तब लक्ष्य मात्र एक खुद के बहकावे के सिवा कुछ भी नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
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