राहें राजभाषा की
- 1980 के लगभग राष्ट्रीयकृत बैंकों में राजभाषा कक्ष की स्थापना हुई है। तीन से भी अधिक दशक बीत जाने के बाद राजभाषा की प्रगति का स्वतंत्र विश्लेषण नहीं हुआ है। अब भी राजभाषा सरकारी तंत्र के दायरे में पुष्पित और पल्लवित हो रही है। भारत सरकार की राजभाषा नीति और वार्षिक कार्यक्रम के आधार पर राजभाषा कार्यान्वयन को गतिशील बनाने का कागजी प्रगति अधिक और वास्तविक प्रगति कम दिखलाई पड़ती है। हिंदी की तिमाही, छमाही और वार्षिक कागजी रिपोर्ट पर गतिमान राजभाषा कार्यान्वयन अब अपनी प्राकृतिक आभा और अंदाज को धीरे-धीरे खो रही है। राजभाषा की प्रगति का आधार केवल हिंदी की तिमाही प्रगति रिपोर्ट है जिसकी वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवाएं विभाग, गृह मंत्रालय राजभाषा विभाग द्वारा आवधिक समीक्षा और निरीक्षण किया जाता है। संसदीय राजभाषा समिति द्वारा भी राजभाषा कार्यान्वयन की समीक्षा की जाती है।
हिंदी की तिमाही प्रगति रिपोर्ट की यदि गहन और व्यापक समीक्षा की जाय तो यह शायद ही कहीं कार्यान्वयन की सत्यता दर्शाते हुए मिले। आज भी अधिकांश हिंदी तिमाही रिपोर्ट राजभाषा कार्यान्वयन के आंकड़ों को अधिक दर्शाती हैं। हिंदी की तिमाही रिपोर्ट पर चलनेवाला राजभाषा कार्यान्वयन अपनी सत्यता को दर्शाने में अब भी असफल है। विभिन्न सरकारी राजभाषा कार्यान्वयन के निरीक्षण के कार्यालय अब तक इस तिमाही रिपोर्ट को पूरी तरह से अपने निरीक्षण के दायरे में नहीं ले रहे। एक कठोर कार्रवाई और कार्यवाही नहीं लिया जा रहा जिसका एक कारण प्रेरणा और प्रोत्साहन से राजभाषा कार्यान्वयन हो सकता है। विगत तीन से भी अधिक दशकों से राजभाषा निरीक्षण की एक ही प्रणाली से यह यह प्रणाली अपनी विशिष्ट महत्ता को कमतर करते जा रही है। अब प्रत्येक सरकारी कार्यालयों और उपक्रमों को मालूम हो गया है कि राजभाषा कार्यान्वयन मूलतः हिंदी की तिमाही रिपोर्ट आधारित है इसलिए इस रिपोर्ट को बनाते समय वार्षिक कार्यक्रमों के लक्ष्यों का विशेष ध्यान रखा जाता है तदनुसार आंकड़ों को चयनित कर रिपोर्ट में दर्शस्या जाता है। सिर्फ हिंदी की तिमाही रिपोर्ट में सिमटी राजभाषा अपनी पहचान और कार्यान्वयन की गरिमा को प्रभावित कर रही है।
वर्तमान में राजभाषा की राहों के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सहज, सरल और सुंदर गति की राजभाषा कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावनाएं हैं : -
- विशेषकर बैंकों में राजभाषा अधिकारी राजभाषा विभाग के अतिरिक्त अन्य विभाग का कार्य भी प्रति कार्यदिवस कर रहे हैं जिससे कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
- अभी भी कार्यालयों में अंग्रेजी में बनी रबड़ की मुहरें मिल जाती हैं। तीन से भी अधिक दशक के बाद धारा 3(3) की यह चूक कार्यान्वयन की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है।
- क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों में पदस्थ राजभाषा निरीक्षण अधिकारी केंद्रीय कार्यालय की प्रणाली से अवगत होते हैं अतएव बैंकों और उपक्रमों में राजभाषा निरीक्षण को वह सम्पूर्णता में नहीं कर पाते। यदि इन कार्यालयों में निरीक्षण के लिए बैंक एवं उपक्रम के सेवानिवृत राजभाषा अधिकारियों को सलाहकार के रूप में रखा जाय तो निरीक्षण और अधिक प्रभावी और फलदायी होगा।
- हिंदी कार्यशालाएं अपनी महत्ता और इयत्ता खोती जा रही हैं। यह कार्यशाला तीन दिन से दो दिनों की हुई और अब एक दिन में सिमट गई है। एक सत्र उद्घाटन का एक सत्र समापन का तो सिर्फ अधिकतम 2 सत्र बचते हैं। इन 2 सत्रों से राजभाषा कार्यशाला कितना लाभकारी होगी यह एक शोध का विषय है।
- बैंकों में प्रायः राजभाषा अधिकारी द्वारा अन्य कार्य करना न केवल राजभाषा की सुगम प्रगति को बाधित करता है बल्कि राजभाषा की छवि को भी प्रभावित करता है।
- राजभाषा कार्यान्वयन के निरीक्षण, अनुवर्ती कार्रवाई और कार्यान्वयन में शिथिलता का आभास होता है क्योंकि राजभाषा की अनुगूंज मंद पड़ती जा रही है।
- राजभाषा के पुरस्कारों के आधार और उसकी सत्यता की जांच के लिए भी उचित स्तर पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
- हिंदी पत्रिकाओं की सामग्री के लिए विभिन्न विषयों का प्रतिशत निर्धारित करना चाहिए जिसमें लेख, कविता, समीक्षा, संस्थागत विषयों आदि का प्रतिशत निर्धारित हो। इस प्रकार यह पत्रिका बहुपयोगी और लोकप्रिय बनाई जा सकताई है। स्थानीय राजकीय भाषा को भी एक पृष्ठ निर्धारित किया जाय।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें