बुधवार, 5 जून 2013

ग क्षेत्र की गुहार

ज्ञातव्य है कि पूरे देश को तीन भाषिक क्षेत्र क, ख और ग में बांटा गया है। राजभाषा कार्यान्यवन की दृष्टि से ग क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की बात कही जाती है क्योंकि ग क्षेत्र की लिपि देवनागरी लिपि से काफी भिन्न है जिससे इस क्षेत्र में राजभाषा कामकाज में अन्य भाषिक क्षेत्रों की तुलना में कठिनाई अधिक होती है। क क्षेत्र हिन्दी भाषी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जबकि ख क्षेत्र के राज्यों की लिपि देवनागरी और देवनागरी लिपि सदृश्य होने के कारण हिन्दी भाषा के काफी करीब मानी  जाती है। इसके विपरीत ग क्षेत्र के राज्यों की लिपि देवनागरी लिपि से भिन्न होने के कारण राजभाषा से उतनी सहजता और सुगमता से अपना ताल-मेल नहीं बिठा पाती है। इसलिए ग क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्यवन की कार्यनीतियाँ बिलकुल अलग और विशेष होती हैं। इस तथ्य पर विशेष ध्यान दिये बिना अधिकांश केंद्रीय कार्यालय, बैंक और उपक्रम ग क्षेत्र के लिए राजभाषा कार्यान्यवन के लिए विशेष योजना नहीं बनाते हैं फलस्वरूप परिणाम उत्साहवर्धक नहीं होते हैं।

      परिणामों में केवल राजभाषा के विभिन्न पुरस्कार ही नहीं सम्मिलित हैं बल्कि इसमें सम्प्रेषण भी सम्मिलित है। संपर्क, संवाद और संयोजन की एक सशक्त कड़ी सम्प्रेषण है और यदि सम्प्रेषण बाधित हो जाये तो क्या किया जा सकता है ? कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि जो संप्रेषित हो चुका है वह अपने श्रोता की भाषिक समझ के अनुसार अपना प्रभाव डाल चुका होता है। इसी भाव को यदि दूसरे शब्दों में अभिव्यक्त किया जाये तो उपमाओं और अलंकारों में अपनी बात कहनेवाला राजभाषा अधिकारी क और ख क्षेत्र में एक रोचक वक्ता के रूप में लोकप्रिय हो सकता है किन्तु ग क्षेत्र में ऐसे वक्ता को समझने के लिए कर्मचारियों को अधिक अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है। इतना ही नहीं बल्कि हिन्दी में सम्प्रेषण का  कहीं-कहीं अर्थ का अनर्थ भी निकल जाता है। अर्थ का अनर्थ निकलना एक स्वाभाविक घटना है न कि एक भाषिक दुर्घटना। शब्दों का भी अपना एक निजी स्पंदन होता है जिसमें देश, काल, स्थान की सांस्कृतिक, सामाजिक आदि अभिव्यक्ति निहित होती है।

      सम्प्रेषण और अभिव्यक्ति के बीच किसी भी भाषा के शब्द एक सेतु की भूमिका निभाते हैं। सेतु जितना सीधा, सपाट और सहज होगा गतिशीलता उतनी ही प्रखर और प्रयोजनमूलक होगी। ग क्षेत्र की भाषाएँ यद्यपि संस्कृत के शब्दों को भी अपने में समेटे हुये हैं किन्तु यदि उर्दू मिश्रित हिन्दी का प्रयोग किया जाता है तो कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। ग क्षेत्र के कार्यालयों आदि में राजभाषा के खालिस रूप में जो भी सम्प्रेषण किया जाएगा उसका परिणाम अच्छा निकलेगा। हिन्दी को आकर्षक बनाने के लिए यदि उर्दू की शब्दावली का सहारा लिया गया, या उपमा और अलंकार से सजाने की कोशिश की गयी तो समझिए अस्पष्ट अर्थ की ओर बढ़ने का खतरा उठाया जा रहा है। ऐसे में कहा या लिखा कुछ जाएगा और समझा कुछ जाएगा। ग क्षेत्र में भाषा को लेकर भावों की उड़ान नहीं भरी जा सकती बल्कि कार्यालय के धरातल पर रहकर छोटे-छोटे सरल, सीधे वाक्यों में अभिव्यक्ति ही सफल होती है। ना तो कविता चल पाएगी, ना ही ग़ज़ल अपना प्रभाव छोड़ पाएगा यदि कुछ चल पाएगा तो हिन्दी फिल्मों का लोकप्रिय गीत चल सकेगा। बस ग क्षेत्र में भाषिक रूप से उड़ान की सामान्यतया यही सीमा है।

      ग क्षेत्र के कार्यालयों में स्थानांतरण करते समय सामान्यतया इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसे राजभाषा अधिकारियों को स्थानांतरित किया जाये जो ग क्षेत्र के किसी एक राज्य की भाषा या संस्कृति से बखूबी परिचित हों। ऐसे राजभाषा अधिकारी भी सफल रहते हैं जो अंग्रेजी भाषा की तरह राजभाषा में जो लिखते हैं वही बोलते हैं। ग क्षेत्र के कर्मियों में राजभाषा को सीखने की लगन है किन्तु सीखने की यह लालसा विशेषकर राजभाषा की शब्दावली पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र के लोग जितनी सहजता से राजभाषा शब्दावली को सीख लेते हैं उतनी आसानी से हिन्दी बोलचाल के शब्दों को नहीं सीख पाते हैं। यह फर्क इसलिए है क्योंकि राजभाषा के शब्द अंग्रेजी में पहले से ही जबान पर रहते हैं उसका हिन्दी शब्द अपनाने में अधिक समय नहीं लगता। राजभाषा का शब्द अंग्रेजी शब्द का प्रतिरूप रहता है इसलिए पूर्णतया अपरिचित नहीं लगता है। छोटे सरल वाक्य और राजभाषा के शब्द इस क्षेत्र में राजभाषा की सरिता निर्मित करने की क्षमता रखते हैं। इस क्षेत्र में पदस्थ राजभाषा अधिकारी को अपने राजभाषा के सामान्य पत्राचार में लंबे-लंबे पत्रों को नहीं लिखना चाहिए। हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट की समीक्षा या शाखा निरीक्षण की रिपोर्ट आदि स्वभावतः लंबे हो जाते हैं जिसे लिखते समय यथासंभव इन्हें स्पष्ट और छोटा रखना आवश्यक है। ग क्षेत्र में प्रायः हिन्दी में लिखे लंबे पत्र अपने उद्देश्य में पूर्णतया सफल नहीं हो पाते हैं।


      ग क्षेत्र की यही गुहार है कि वार्षिक कार्यक्रम के लक्ष्यों की तरह विभिन्न केंद्रीय कार्यालय, बैंक और उपक्रम अपने स्तर पर भी ग क्षेत्र के लिए विशेष योजना बनाएँ जिसमें राजभाषा अधिकारी की पदस्थापना, हिन्दी कार्यशाला प्रशिक्षण की समय सारिणी, कार्यशाला सामग्री, हिन्दी माह, पखवाड़ा, सप्ताह का आयोजन, क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न प्रोत्साहन योजनाएँ, नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति की क्षेत्र विशेष की लोकप्रिय राजकीय भाषा को दृष्टिगत रखते हुये विशेष योजनाएँ आदि सम्मिलित हैं। राजभाषा कार्यान्यवन में उल्लेखनीय प्रगति और उपलब्धि के लिए एक विशेष सोच को लागू करना समय की मांग है। व्यवहार में इसमें आरंभिक कठिनाई हो सकती है किन्तु एक बार गति मिल जाने से इसमें निरंतर सहजता और सरलता आती जाएगी। आवश्यकता है बस एक सार्थक पहल की।       

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