प्रत्येक सरकारी
कार्यालय, बैंक और उपक्रम को वर्ष में एक बार क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन में भाग लेने
का अवसर प्राप्त होता है। यह सम्मेलन राजभाषा का एक अति महत्वपूर्ण सम्मेलन के रूप
में अपनी छवि बनाए हुये है। इस आयोजन को यदि राजभाषा का कुम्भ कहा जाये तो
अतिशयोक्ति नहीं होगा। क्षेत्र विशेष में कार्यरत नगर राजभाषा कार्यान्यवन समितियां तथा उस
समिति के सदस्य कार्यालय वर्ष भर आपसी तालमेल से नगर में राजभाषा कार्यान्यवन के विकास में प्रयासशील रहते हैं। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम और अनुदेशों के अनुपालन की पुष्टि क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय को प्रेषित करते रहते हैं। इन सब प्रक्रियाओं के प्रतिफल
में श्रेष्ठ राजभाषा कार्यान्यवन करनेवाले कार्यालयों, बैंकों और उपक्रमों को पुरस्कृत किया जाता है। पुरस्कार के
अतिरिक्त राजभाषा की नवीनतम उपलब्धियों और सूचनाओं की जानकारी भी मिलती है।
क्षेत्रीय
राजभाषा सम्मेलन को राजभाषा का कुम्भ कहने का आशय यही है कि यहाँ राजभाषा विभाग के
सचिव से लेकर विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत राजभाषा अधिकारियों से मिलने का अवसर
मिलता है, उन्हें सुनने का
और अपने विचारों और सुझावों को प्रस्तुत करने का प्रचुर मौका मिलता है। इस प्रकार
राजभाषा के विभिन्न भावों को अभिव्यक्ति मिलती है। राजभाषा का संपूर्णता में चिंतन और
मनन होता है। प्रौद्योगिकी में राजभाषा के नए कदमों की जानकारी मिलती है।
यह सम्मेलन राजभाषा की एक साफ-सुथरी दृष्टि प्रदान करता है जिससे राजभाषा के
असुलझे प्रश्नों को समाधान मिल जाता है। अन्य राजभाषा अधिकारियों से चर्चा कर राजभाषा की विभिन्न गति और प्रगति की जानकारी
मिलती है। पंजीकरण के समय विभिन्न कार्यालयों की पत्रिकाओं से भी परिचय होता है
जिसके माध्यम से कार्यालय कर्मियों में लेखन के क्षेत्र में हो रही उन्नति की झलक
भी मिलती है।
लेकिन
क्या इतने से ही राजभाषा सम्मेलन को पूर्णता प्राप्त हो जाती है? वस्तुतः इतने से ही राजभाषा कार्यान्यवन का व्यापकता और गहनता से आकलन कर यथोचित दिशानिर्देश दिया जाता
है। उक्त परिच्छेद में उल्लिखित सत्यता
के अतिरिक्त सम्मेलन की हलचलों में ऐसे अनेक कथ्य उभरते रहते हैं जो सम्मेलन की कार्यसूची के अनुसार नहीं होते हैं किन्तु राजभाषा के
कामकाज की प्रणाली की कई दिशाओं की ओर एक अस्पष्ट ईशारा मात्र होते हैं। यह कथ्य सम्मेलन में सम्मिलित राजभाषा अधिकारियों या राजभाषा
से जुड़े कर्मियों की अभिव्यक्ति होती हैं। राजभाषा के
विभिन्न पक्षों के कथ्य सार्थक या निरर्थक होते हैं इसपर एक व्यापक बहस हो सकती है
किन्तु यहाँ इस कहावत का उल्लेख करना आवश्यक है कि बिना आग धुआँ नहीं निकलता है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि ऐसे कथ्य किसी
खास सम्मेलन में कहे जाते हों बल्कि लगभग सभी राजभाषा सम्मेलनों में कहे जाते हैं। ऐसे ही कुछ कथ्य निम्नलिखित
हैं :-
1.
पंजीकरण के समय बैग प्रदान करना:- सम्मेलन के आरंभ में प्रतिभागियों द्वारा पंजीकरण के समय
प्रत्येक सम्मेलन में एक बैग प्रदान किया जाता है। यह बैग किसी कार्यालय द्वारा
प्रायोजित होता है। किसी सम्मेलन में इस प्रकार दिये जानेवाले बैग पर प्रायोजक
कार्यालय का नाम नहीं होता है तो कहीं नाम के साथ बैग प्रदान किए जाते हैं।
कथ्य : बैग प्रदान करनेवाला कार्यालय पुरस्कार विजेता होता है। कभी
भी ऐसा नहीं हुआ है कि बैग प्रदान करनेवाला कार्यालय पुरस्कार विजेता ना रहा हो।
ऐसा क्यों होता है? पुरस्कार और बैग का क्या आपसी संबंध है? यह कथ्य प्रत्येक सम्मेलन में उभरता है और और पंजीकरण स्थल
के परिवेश में घूमकर लुप्त हो जाता है।
2.
पुरस्कार के अंकों की जानकारी ना देना : - पुरस्कारों की घोषणा कर दी जाती है किन्तु मूल्यांकन के अंकों को
बतलाया नहीं जाता है। राजभाषा कार्यान्यवन प्रेरणा और प्रोत्साहन पर आधारित है
इसलिए यदि मूल्यांकन के अंकों की जानकारी क्षेत्राधीन सभी कार्यालयों को प्रदान कर
दी जाय तो राजभाषा कार्यान्यवन में एक विशेष सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होगा।
कथ्य: मंच पर जब पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो सभागार में यह बुदबुदाहट मुखरित होती है कि पुरस्कार मैनेज
किया गया है। इस प्रकार के कथ्य सभी
सम्मेलनों में सुनाई पड़ते हैं। किसी भी सम्मेलन के सभगार में इस प्रकार के कथ्यों के विरोध में आज तक कोई आवाज नहीं
उभरी। क्या सम्मेलन दर सम्मेलन इस प्रकार के कथ्य राजभाषा कार्यान्यवन के लिए
स्वास्थ्यवर्धक और परिणामदाई हो सकते हैं?
3.
राजभाषा अधिकारी से अन्य कार्य लिया जाना :- प्रत्येक सम्मेलन में खुला सत्र होता है जिसमें सहभागी
राजभाषा विषयक अपने विचार, सुझाव आदि को प्रस्तुत करते हैं। इस खुले सत्र में
उठाए जानेवाले सवाल भी लगभग पारंपरिक होते हैं जिसमें से बैंककर्मी सहभागी यह सवाल
उठाते हैं कि बैंकों में राजभाषा अधिकारी को राजभाषा के कार्यों के अतिरिक्त बैंक
के अन्य कार्य क्यों दिये जाते हैं? मंच इस प्रश्न को आवश्यक कार्रवाई हेतु नोट कर लेता है। एक आश्वासन भी दिया जाता है। प्रश्नकर्ता संतुष्ट भाव से इस विषयक संभावित अनुकूल परिवर्तन की
प्रतीक्षा करने लगता है।
कथ्य: सभागार में यह आवाज भी उभरती है कि बैंक कि आंतरिक व्यवस्था को इस मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयोजन
क्या है? अपनी आवश्यकतानुसार बैंक अधिकारी की सेवाएँ लेता है अतएव इस
प्रणाली में राजभाषा विभाग की क्या भूमिका हो सकती है? कुछ प्रतिक्रियाएँ ऐसी भी गूँजती है कि राजभाषा अधिकारी की प्रतिभा और क्षमता पर यह निर्भर करता है। यदि राजभाषा
अधिकारी राजभाषा कार्यान्यवन में पूर्णतया व्यस्त है तो वह अन्य कार्य के लिए समय
ही नहीं दे पाएगा। इस विषयक समय-समय पर पत्र भी जारी किया जाता है। राजभाषा
अधिकारी द्वारा सम्मेलनों में यह प्रश्न क्यों उठाया जाता है, यह अस्पष्ट है।
4.
वेतनमान में असंगतियाँ: केंद्रीय कार्यालय के सहभागी वेतनमान की असंगतियों को दूर
करने का मुद्दा उठाते हैं जिसपर मंच से उत्तर दिया जाता है कि इस दिशा में निरंतर
सुधार हो रहा है।
कथ्य: सभागार में यह आवाज
उठती है कि यह सम्मेलन वेतनमान की विसंगतियों के लिए नहीं है बल्कि राजभाषा
कार्यान्यवन विषयक चर्चाओं के लिए है। इस तरह के प्रश्न ना केवल
अप्रासंगिक होते हैं बल्कि समय चुरानेवाले भी हैं।
5.
राजभाषा से जुड़े सभी समस्याओं के समाधान की
तलाश: सम्मलेन में सहभागी अधिकांश राजभाषा अधिकारी और कर्मी यह
सोचकर आते हैं कि राजभाषा विषयक सभी समस्याओं का तत्काल हल सम्मेलन में मिल जाएगा।
राजभाषा विषयक कुछ ऊंची अपेक्षाएं जो यथार्थ के आवरण में लिपटी मूर्त रूप पाने के लिए उत्कंठित रहती हैं
वह सम्मलेन में सशक्त रूप से मुखरित होने के लिए इतनी लालायित हो जाती हैं कि प्रायः
अनियंत्रित अभिव्यक्ति का रूप ले लेती हैं। मंच प्रायः सांकेतिक
दिशानिर्देश देता है जबकि सहभागी मंच से इतने स्पष्ट दिशानिर्देश की अपेक्षा रखते हैं
कि उससे तत्काल परिणामदायी परिवर्तन हो जाये।
कथ्य: राजभाषा अधिकारियों और राजभाषा से जुड़े कर्मियों
के लिए यह सम्मेलन एक वार्षिक राजभाषा उत्सव है जिसमें वे ना केवल अपने क्षेत्र के
विभिन्न स्थानों पर कार्यरत राजभाषा अधिकारियों से मिलते हैं बल्कि राजभाषा विभाग के
सचिव, संयुक्त सचिव आदि
राजभाषा के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलता हैं उन्हें सुनते हैं। क्षेत्रीय कार्यान्यवन
कार्यालय से क्षेत्र विशेष की ज्वलंत समस्याओं को प्राप्त कर उनका समाधान किया जाये
तो सम्मेलन और प्रभावशाली हो जाएगा।
6.
सम्मेलन में लिए गए निर्णयों का कार्यान्यवन:
सम्मेलन में यह भी प्रसंग चर्चा में रहता है कि लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों का कार्यान्यवन कहाँ होता है। लगभग प्रत्येक
वर्ष यह सम्मेलन बहुत कुछ राजभाषा कार्यान्यवन के लिए दे जाता है जिसको सुनकर सम्मेलन स्थल तालियों की गड़गड़ाहट
से काफी समय तक गूँजता रहता है किन्तु सम्मेलन के कई दिनों तक कार्यान्यवन की प्रतीक्षा कमतर होते-होते लुप्त
हो जाती है और कुछ महीनों में नया सम्मेलन आ जाता है। यह भी चर्चा होती है कि हर वर्ष
होनेवाले इस सम्मेलन का एक-दूसरे सम्मेलन से कोई नाता नहीं रहता है यद्यपि प्रत्येक सम्मेलन कि कार्यसूची एक समान होती है।
कथ्य: संबन्धित क्षेत्रीय कार्यालय यदि सम्मेलन का कार्यवृत्त तैयार
कर अपने क्षेत्र के कार्यालयों को प्रेषित कर दे और आगामी सम्मेलन में कार्यवृत्त के
महत्वपूर्ण निर्णयों की कृत कार्रवाई की सूचना प्रदान
कर दे तो सम्मेलन और अधिक प्रभावशाली हो
जाएगा।
7.
कार्यालय अध्यक्ष की उपस्थिती का लाभ उठाया जाये: सम्मेलन में कार्यालय अध्यक्ष आते हैं और चले जाते हैं। पुरस्कार
विजेता कार्यालय अध्यक्ष पुरस्कार ग्रहण कर बैठ जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह भी विचार
आता है कि सिर्फ बैठने के लिए सम्मेलन
में क्यों जया जाये। राजभाषा विभाग का जो भी अनुदेश, दिशानिर्देश होगा उसका पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित कर लिया जाएगा। शायद यह भी
एक कारण हो सकता है कि पुरस्कार विजेता कार्यालय अध्यक्ष के अतिरिक्त अन्य कार्यालयों
से कार्यालय अध्यक्ष अपेक्षाकृत कम आते हैं।
कथ्य: सम्मेलन का कुछ समय कार्यालय अध्यक्ष के लिए निर्धारित किया
जाये और पुरस्कार विजेता कार्यालयों के कार्यालय
अध्यक्ष से राजभाषा कार्यान्यवन पर बोलने का अनुरोध किया जाये। अन्य कार्यालय के अध्यक्षों
को भी बोलने के लिए आमंत्रित किया जाये। राजभाषा कार्यान्यवन के लिए यह प्रक्रिया
विशेष लाभदायक साबित होगी।
यहाँ ना तो कोई सुझाव देने की कोशिश की जा रही है और ना ही
किसी पक्ष को उत्तरदायी बनाकर सवालों की बौछार की जा रही है। बस एक प्रयास किया जा
रहा है सम्मेलनों में प्रतिवर्ष बुदबुदाहट में उठे प्रश्नों को पिरोकर प्रस्तुत करने
और एक समाधान के द्वारा उस दिशा में नए कर्म करने या नए निर्णय लेने का, आखिर जब बात राजभाषा कार्यान्यवन की उठती है तो नयी संभावनाओं को तलाशने के लिए मन स्वतः
सक्रिय हो उठता है। यह राजभाषाई मन के नूतन दिशा गमन लिए चाहत की अकुलाहट भरी
प्रस्तुति मात्र है।
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