गुरुवार, 1 नवंबर 2012

राजभाषा कहें या हिन्दी


सरकारी कार्यालयों में राजभाषा शब्द बहुत कम सुनाई पड़ता है अधिकतर हिन्दी शब्द का ही चलन है। इसका विपरीत प्रभाव राजभाषा के बुनियादी ढांचे पर पड़ा है। कार्यालयों में हिन्दी शब्द के प्रचलित हो जाने से राजभाषा शब्द के संग जो गंभीरता होनी चाहिए थी वह निर्मित नहीं हो पायी है। हिन्दी की जगह राजभाषा शब्द के प्रचलन से कार्यालयों में राजभाषा के प्रति एक स्वाभाविक रुझान बढ़ता किन्तु आरंभ से हिन्दी विभाग, हिन्दी अधिकारी, हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट आदि शब्दों ने कार्यालय कर्मियों के दिल-दिमाग में बसना आरंभ किया और अब हिन्दी ने अपनी एक जगह बना ली है। राजभाषा शब्द का प्रयोग यदा-कदा ही होता है। हिन्दी अपनी सशक्त उपस्थिति और लोकप्रियता के कारण कार्यालयों में राजभाषा शब्द को प्रचलित नहीं होने दे रही है। अगर विशेष प्रयास किया जाये तब राजभाषा जबान पर चढ़ती है पर इतनी कोशिश करनेवाले भी कम हैं। दूसरी बात यह है की अगर जबान पर चढ़ी हिन्दी से काम चल जाता है तो राजभाषा से नया रिश्ता क्यों जोड़ा जाय, यह धारणा भी कार्य करती है।

हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट का नाम राजभाषा की तिमाही रिपोर्ट होना उचित होगा। चूंकि यह रिपोर्ट राजभाषा कार्यान्यवन की एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट है इसलिए यदि इस रिपोर्ट का नाम राजभाषा की तिमाही रिपोर्ट हो जाएगा तो कर्मियों द्वारा तत्काल ही राजभाषा शब्द को अपनाने की प्रक्रिया आरंभ हो जाएगी। राजभाषा विषयक विभिन्न बैठकों, अवसरों आदि पर राजभाषा के बजाय हिन्दी शब्दों का अधिक प्रयोग किया जाना राजभाषा के निर्माणाधीन कार्य संस्कृति को प्रभावित करता है। यदि राजभाषा शब्द को लोकप्रिय बनाने का सघन प्रयास नहीं किया जाएगा तो कालांतर में राजभाषा और हिन्दी के मध्य अस्तित्व का एक अंतर्द्वंद आरंभ हो सकता है जिसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव राजभाषा पर पड़ेगा। यह पाया गया है कि राजभाषा विषयक प्राप्त पत्रों पर अंग्रेजी में टिप्पणी सामान्यतया ओ एल (आफ़िसियल लेंग्वेज) शब्द के साथ लिखी जाती है किन्तु ऐसे पत्रों पर सामान्यतया हिन्दी में टिप्पणी लिखते समय राजभाषा के बजाय हिन्दी शब्द का प्रयोग किया जाता है। हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट नाम राजभाषा के स्थान पर हिन्दी शब्द प्रयोग करने के प्रमुख कारणों में एक है।

हिन्दी दिवस का आयोजन – यह वाक्य इतना सशक्त और प्रभावशाली है कि इसका प्रभाव न केवल कार्यालय पर बल्कि समाज पर भी पड़ता है। हिन्दी दिवस को यदि राजभाषा दिवस लिखा जाय तो राजभाषा का महत्व और उसकी उपयोगिता और प्रखर रूप से मुखरित होगी। बैनर, निमंत्रण पत्र, प्रेस विज्ञप्ति आदि में यदि हिन्दी दिवस शब्द का प्रयोग किया जाएगा तो स्वाभाविक रूप से हिन्दी दिवस शब्द ही प्रयोग किया जाएगा और राजभाषा शब्द नैपथ्य में रह जाएगा। हिन्दी शब्द अपने संग बोलचाल की हिन्दी का विभिन्न और व्यापक रूप लेकर आती है जिससे कार्यालय का प्रत्येक कर्मी काफी जुड़ा हुआ अनुभव करता है और अपने कामकाज में परिचित शब्दावलियों, वाक्य संरचनाओं आदि को लाने का प्रयास करता है जिसे राजभाषा सहजता से स्वीकार नहीं करती है। एक तरफ हिन्दी शब्द का वृहद स्तर पर प्रयोग और दूसरी तरफ राजभाषा कार्यान्यवन का प्रयास और इनके मध्य उलझन भरा प्रयोगकर्ता जो पारिभाषिक, तकनीकी आदि शब्दों में भी बोलचाल की हिन्दी की सरलता और सहजता को ढूंढता है।

हिन्दी नित प्रतिदिन अपने विभिन्न रूप-रंगों, अंदाज़-विन्यास में प्रगति करती जा रही है और अपना नया स्थान निर्मित कर रही है। राजभाषा भी अपनी नयी शब्दावलियों से सज-धज रही है। हिन्दी एक वट वृक्ष की तरह है जबकि अपनी पूरी संभावनाओं के संग स्थूलतः राजभाषा एक पौधे के रूप में ही पनप पायी है। राजभाषा के वट वृक्ष के निर्मित होने की संभावनाएँ हैं किन्तु हिन्दी के चादर तले राजभाषा दबी हुयी प्रतीत होती है। हिन्दी का राजभाषा पर यह दबाव अनायास हो गया है। एक-दूसरे में घुली-मिली, रची-बसी राजभाषा और हिन्दी अपने मध्य विभाजन की एक हल्की लकीर भी खींचने की अनुमति नहीं देती है। देवनागरी लिपि की हिन्दी और राजभाषा की चर्चा करना ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि गंगा और यमुना की चर्चा की जा रही हो। देवनागरी लिपि का यह भाषाई संगम देवनागरी लिपि की क्षमता का परिचायक है किन्तु इतनी विविधता और वैशिष्ठ्य के बाद यह प्रश्न उभरता है कि राजभाषा कहें या हिन्दी?

हिन्दी के बजाय राजभाषा शब्द का प्रयोग करना इसलिए आवश्यक है कि इससे व्यवहार में प्रयोग हेतु  राजभाषा को अपना स्थान मिल सकेगा। हिन्दी शब्द के प्रयोग से कामकाज की भाषा में जिस सरलता और सहजता की मांग स्वतः उठती है उसपर रोक लग सकेगी। राजभाषा शब्द के प्रचलन और लोकप्रियता से सरकारी कामकाज में राजभाषा और गहरी पैठ लगाने में सफल होगी। राजभाषा शब्द जितना लोकप्रिय होगा उतनी ही सरलता से सरकारी कर्मी पारिभाषिक और तकनीकी शब्दों को अपनाएँगे। राजभाषा शब्द यदि जुबान पर चढ़ जाएगा तो हिन्दी और राजभाषा के मध्य एक हल्की विभाजन रेखा निर्मित हो सकेगी जो अलगाव का प्रतीक ना होकर संगम का एहसास देगी। अतएव राजभाषा को राजभाषा कहें और सरकारी कार्यालयों में अपेक्षाकृत हिन्दी शब्द का कम प्रयोग करें तो यह राजभाषा कार्यान्यवन के लिए सहायक साबित होगा।  



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