मंगलवार, 3 अगस्त 2010

राजभाषा का वर्तमान

भारत के संविधान से लेकर भारत के आम नागरिक की राजकाज की भाषा के रूप में राजभाषा हिंदी ने जितना निखार प्राप्त किया है वह सहज ही लोगों को आकर्षित कर देता है। सभी सरकारी कार्यालयों के स्थाई प्रकार के कागज़ात, प्रलेख, मैनुअल आदि बिना चुके हिंदी और अंग्रेजी में ही मिलेंगे। इतना ही नहीं बल्कि विभिन्न बैठकों में हिंदी मिलती है, वार्षिक आम सभा में हिंदी मिलती है और यहॉ तक कि बोर्ड रूम भी हिंदी की पहुंच से बाहर नहीं है। राजभाषा का यह सशक्त और सक्षम रूप राजभाषा को एक सशक्त आधार देता,है और यह प्रमाणित करता है कि किसी भी उन्नत भाषा के समकक्ष राजभाषा को स्वीकारा जा सकता है। स्वीकारा जा सकता है शब्द लिखने की विवशता है क्योंकि तमाम गुणों के बावजूद भी राजभाषा को स्वीकारा जा रहा है अभी तक पूर्णतया स्वीकारा नहीं गया है। पूर्ण स्वीकृति उस समय होगी जब कार्यालयों में अधिकांश मूल कार्य राजभाषा में ही किया जाएगा। इसके बावजूद भी राजभाषा की प्रगति निरंतर जारी है तथा इसमें विभिन्न स्तरों पर विकास की प्रक्रिया जारी है।

वर्तमान में कार्यालयों के प्रत्येक टेबल पर राजभाषा के न केवल कागजात मिलेंगे बल्कि हिंदी के कुछ हद तक जानकार भी मिलेंगे। अब राजभाषा को लेकर कर्मचारियों में विरोध नहीं होता है बल्कि राजभाषा को सीखने की ललक दिखलाई पड़ती है जो राजभाषा के बढ़ते कदमों का एक सशक्त प्रतीक है। आज यदि पीछे मुड़कर देखें तो स्पष्ट ज्ञात होता है कि राजभाषा ने अपने विकास की एक कीर्तिपूर्ण ऐतिहासिक यात्रा पूरी की है। एक वह भी समय था जब कार्यालयों में हिंदी के कागजात मुश्किल से दिखलाई पड़ते थे तथा यह माना जाता था कि कामकाज की भाषा के रूप में राजभाषा सफल नहीं हो पाएगी तथा एक सरकारी अभियान के रूप में यूं ही चलती रहेगी। वर्तमान में राजभाषा नित नए शब्दों से सजती जा रही है तथा कामकाज में इसका प्रयोग लगातार बढ़ते जा रहा है। यह कहना कि राजभाषा की प्रगति सौ दिन चले अढ़ाई कोस है तो यही कहा जा सकता है कि इस प्रकार की सोच रखनेवाले राजभाषा कार्यान्वयन की चुनौतियों तथा कठिनाईयों से पूरी तरह से परिचित नहीं हैं।

कार्यालय की एक पीढ़ी जिसकी शुरूआत 70 के दशक में हुई थी अब वह सेवानिवृत्ति के दायरे में है। यही वह पीढ़ी है जिसे यह बतलाया गया था कि अंग्रेजी के बिना जीवन की प्रगति कठिन है तथा इसके बिना नौकरी की सोच मात्र शेखचिल्ली का ख्वाब ही रह जाएगा। अस्सी की दशक में आई पीढ़ी को ज्ञात हो गया था कि हिंदी को अनदेखा करना कठिन है इसलिए इस पीढ़ी ने राजभाषा से खुद को जोड़ लिया तथा उसके बाद राजभाषा की कठिनाईयॉ बहुत कम हो गई। हिंदी भी कार्यालयों के काम में उपयोग में लाई जाती है यह अब सर्वसामान्य का स्वीकार्य तथ्य है। इसका तात्पर्य यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि वर्तमान में राजभाषा समस्यामुक्त है। विकास की गति के संग चलने के लिए प्रत्येक भाषा को लगातार संवरते और निखरते रहना पड़ता है, राजभाषा भी इससे अछूती नहीं है। सत्तर और अस्सी के दशक की चुनौतियॉ लगभग समाप्त हो गई हैं किंतु नई चुनौतियॉ निरन्तर ऊभर रही हैं। द्वन्द्व और चुनौतियॉ विकास प्रक्रिया का एक स्वाभाविक अंग हैं और राजभाषा भी स्वंय के विकास संग इस दौर से गुजर रही है।

वर्तमान की राजभाषा प्रौद्योगिकी की कसौटी पर कसी जा रही है। नित नए सॉफ्टवेयरों के बावजूद भी प्रयोक्ता को प्रौद्योगिकी उन्मुख बनाना प्रत्येक कार्यालय का लक्ष्य है। देवनागरी की की बोर्ड से लेकर ट्रांसलिटरेशन तक के विस्तार में कहीं न कहीं कर्मचारी के पसन्दनुसार फिट करना आसान कार्य नहीं है। इसके अतिरिक्त विभिन्न कार्यालयों के कामकाज भी प्रौद्योगिकी के दायरे में है जिसमें हिंदी की सुविधा जोड़ना और उसमें कार्य करने के लिए प्रशिक्षित करना एक प्रमुख लक्ष्य है। प्रौद्योगिकी से वर्तमान नई पीढ़ी जुड़ी हुई है जबकि पुरानी पीढ़ी विशेषकर सत्तर और कुछ हद तक अस्सी के दशक की पीढ़ी स्वंय को प्रौद्योगिकी के अनुकूल ढालने में काफी कठिनाईयों का अनुभव कर रही है जिसमें परिवर्तन करना राजभाषा कार्यान्वयन की एक प्रमुख चुनौती है। यहॉ इस तथ्य का उल्लेख करना भी प्रासंगिक है कि एक समय माऊस ठीक से न पकड़ सकनेवाला कर्मचारी अब बेहिचक अपना काम उसी माऊस से सहजतापूर्वक और सरलतापूर्वक कर लेता है। यह कर्मचारी सत्तर के दशक का ही है। प्रौद्योगिकी से जुड़ने की प्रक्रिया में काफी हैरानी वाली बातें हुई जिसमें सर्वप्रमुख यह है कि जितनी तेजी से प्रौद्योगिकी को कर्मचारियों ने अपनाया वह कल्पना से परे है। राजभाषा इन्हीं झंझावातों में सफलतापूर्वक कार्यनिष्पादन दर्शा रही है।

राजभाषा में सुलभ कार्यालयीन साहित्य भी राजभाषा के उपयोग में अनवरत वृद्धि कर रहा है। कार्यालय के किसी भी विभाग के किसी भी विषय पर राजभाषा में साहित्य है जिससे कर्मचारी आसानी से तथा विश्वासपूर्वक राजभाषा में कार्य कर रहे हैं। इस कार्य को और सरल बनाने में संबंधित कार्यालयों की वेबसाइटों ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। इन वेबसाइटों पर कार्यालयीन साहित्य भी हिंदी में उपलब्ध है सिर्फ एक क्लिक की दूरी पर। आंतरिक कामकाज हो अथवा जनता के साथ सम्पर्क हो हर जगह राजभाषा का उपयोग हो रहा है। विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अधिकांशत: हिंदी का प्रयोग कर राजभाषा के महत्व को प्रतिपादित किया जा रहा है। अब विभिन्न कार्यालयों के उच्चाधिकारी भी जिस उत्साह और प्रेरणा से राजभाषा कार्यान्वयन में संलग्न हैं वह वर्तमान में राजभाषा कार्यान्वयन के लिए उर्जा का कार्य कर रहा है। इस तरह प्रगति की अनेकों गाथाएं हैं किंतु मेरा उद्देश्य तो मात्र यह दर्शाना था कि वर्तमान में राजभाषा अत्यधिक सकारात्मक दौर से गुजर रही है और नित ने आब के साथ अपनी सार्थकता प्रमाणित कर रही है। राजभाषा अपने स्वर्णिम काल की और बढ़ रही है।

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