रविवार, 1 अगस्त 2010

राजभाषा अनुराग का मिथक

हिंदी जब से सरकारी कामकाज की भाषा के लिए राजभाषा के रूप में सजने-संवरने लगी है तब से राजभाषा अनुरागियों की सतत वृद्धि हो रही है और राजभाषा कार्यान्वयन भी प्रगति दर्शा रही है। इस अनुराग को बहुत करीब से और बहुत वर्षों से देखते- निरखते मुझे राजभाषा अनुरागियों में विशेष आकर्षण दिखलाई देने लगा जिससे इसकी टोह लेने की एक समर्पित भावना मुझमें पनपने लगी। अकसर यह पाया जाता है कि राजभाषा जब किसी कर्मचारी के टेबल पर रबती है तो उसकी स्थिति अधिकांश टेबलों पर शरणार्थी की रहती है। सरकारी कर्मचारी के टेबल पर चूंकि अंग्रेजी का काम अधिक होता है और उसमॆ कार्य करने के अभ्यस्त होते हैं इसलिए हिंदी का जब भी कोई कागज कर्मचारियों के टेबल पर पहुंचता है तब उसकी स्थिति शरणार्थियों जैसी ही होती है। इसमें ना तो कर्मचारी को दोष है और ना उस हिंदी के कागज का यदि दोष है तो रोमन लिपि में लिखने के अभ्यस्त हॉथो को देवनागरी लिपि में लिखने की ज़हमत उठाने की। इस काल्पनिक ज़हमत को उठाने से मुक्ति मिलना संभव नहीं होता इसलिए उसपर कोई तीखी प्रतिक्रिया भी संभव नहीं होती। इन बंधनों की विवशता में एकाएक अनुराग उत्पन्न हो जाता है जिसमें भावनाओं से अधिक विवशताओं का बोलबाला रहता है।

विवशता मिश्रित यह अनुराग राजभाषा को गति प्रदान कर रहा है। यदि विवशता (जो काल्पनिक होती है) ना होती तो ? तो कर्मचारी बिना समय गंवाए बोल उठता कि हिंदी में काम करने नहीं आता है कृपया हिंदी विभाग में यह कागज भेजें। यदि राजभाषा विभाग भी नहीं होता तो ? तो सरकारी कार्यालयों में राजभाषा का कार्यान्वयन नहीं हो पाता। क्या यह सच है ? या फिर यह सच है कि गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग है इसलिए कार्यालयों को लक्ष्य के अनुसार राजभाषा में अपना कार्यनिष्पादन दर्शाना पड़ता है। हॉ, यही सच है कि यदि गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग ना होता तो राजभाषा का वर्तमान निखरा रूप अपने अस्तित्व में नहीं आता। इससे यह प्रमाणित होता है कि जैसे गंगा को गंगोत्री से जोड़कर ही गंगा के उद्गम तक पहुंचा जा सकता है वैसे ही राजभाषा को गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग से जोड़कर ही राजभाषा अनुराग को समझा जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि राजभाषा कार्यान्वयन की धूरी गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग है किन्तु क्या भारतीय संविधान राजभाषा कार्यान्वयन के इसी रूप की और इंगित करता है ? इस प्रश्न का सटीक जवाब विभिन्न कार्यालयों के पास है जिसपर ना तो अधिकांश कार्यालयों के विभाग चिंतन करना चाहते हैं और ना चर्चा। ध्येय यही है कि राजभाषा का अनुराग ऐसा ही बना रहे।

राजभाषा के अनुराग को ऐसे ही बनाए रखने में विभिन्न कार्यालयों के राजभाषा विभागों के एक उद्देश्य की पूर्ति अवश्य होती है कि राजभाषा दिनोंदिन कर्मचारियों के बीच अपनी लोकप्रियता में वृद्धि कर रही है। इस लोकप्रियता के आकर्षक चादर तले उपयोगिता को खूबसूरती से छिपाया जाता है। कौन छिपाता है इसे यह प्रश्न उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्वपूर्ण है इस अनुरागी प्रवृत्ति का विश्लेषण। किसी भी कार्यालय में आप जाईए दीवारों से लेकर कम्प्यूटरों तक में हिंदी के विभिन्न घोष वाक्यों आदि से राजभाषा के अनुराग का जोरदार प्रदर्शन किया जाता है। कार्यालय द्वारा हिंदी में किए गए कार्यों की इस तरह तलाश की जाती है जैसे भूसे के ढेर में सूई ढूंढी जा रही हो। यह प्रवृत्ति जहॉ एक तरफ हिंदी के अनुराग को प्रदर्शित करती है वहीं दूसरी और यह भी दर्शाती है कि संसदीय समिति आदि द्वारा यदि निरीक्षण ना किया जाता तो शायद राजभाषा के कार्यनिष्पादनों का ना तो समुचित रिकॉर्ड रखने की कोशिश की जाती और ना ही उसे सहेजने का प्रयास किया जाता। क्या इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजभाषा अनुराग में कहीं कोई दबाव कार्य करता है ? यदि ऐसा कहीं है तो वह राजभाषा नीति के विपरीत है तथा इस अनुरागी प्रवृत्ति की विभिन्न स्तरों पर निवारक उपाय किए जाने चाहिए।

राजभाषा की कोई बैठक हो अथवा राजभाषा पर बोलने पर जब कोई अवसर मिले तब कई प्रेरणापूर्ण बातें होती हैं, कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं और उर्जापूर्ण संचार तथा स्प्न के साथ राजाभाषामयी भविष्य दिखता है किन्तु समय के साथ-साथ प्रेरणापूर्ण बातें तथा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय हाशिए पर चले जाते हैं जिसकी कौई विश्ष खोज-कबर नहीं ली जाती है। इसके अतिरिक्त इनका समुचित रिकॉर्ड होता है तथा इनको बार-बार प्रदर्शित कर राजभाषा अनुराग को जतलाया जाता है। राजभाषा कार्यान्वयन जगत में लिए गए निर्णयों पर कृत कार्रवाई की गहन समीक्षा नहीं की जाती हाँ जिसकी वजह से अधिकांश कार्यालय राजभाषा का उपयोग राजभाषा अनुराग प्रदर्शन के लिए करते हैं। राजभाषा कार्यान्वयन के हित में वर्तमान राजभाषा अनुराग की प्रवृत्ति घातक है। इससे सहज और स्वाभाविक राजभाषा कार्यान्वयन की गति में बाधा पहुंचती है। राजभाषा अनुराग का प्रदर्शन वर्तमान में राजभाषा कार्यान्वयन का एख प्रमुख बाधक है। साहस के संग राजभाषा कार्यान्वयन करने से राजभाषा कार्यालय के प्रत्येक टेबल पर लेकप्रिय और उपयोगी हो जाएगी। राजभाषा अनुराग को मंचों, निरीक्षणों, प्रदर्शनियों आदि के अतिरिक्त टेबलों, कार्य की आदतॆ, फाईलों आदि में भी पहुंचने की आवश्यकता है।