शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

राजभाषा की दुनिया

दुनिया, विस्तृत विशाल दुनिया, दुनिया के भीतर दुनिया, यह अजीब दुनिया, आदि, इन भावों में डूबी अनेकों कथा-कहानियॉ, गीत आदि हम सबने सुना है और दुनिया को कम और इसके रहस्य को समझने का अधिक प्रयास अधिक किया है। सदियों से इंसान दुनिया में किसी नई तलाश के लिए भटक रहा है। तलाश की इस अनवरत प्रक्रिया में एक दुनिया राजभाषा की भी दुनिया है। सागर में सुदूर किसी टापू की तरह पड़ी इस दुनिया के इर्द-गिर्द से असंख्य नाविक गुज़र रहे हैं परन्तु इनमें से की कोलम्बस इस दुनिया को नहीं मिला। सामान्यतया इस दुनिया में हलचल रहती है। इस दुनिया के मूल निवासी प्रत्येक गुजरने वाली नाव या पोत की और ईशारा कर अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करते रहते हैं। इस दुनिया की मूल भाषा राजभाषा है जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है परन्तु बोलचाल की हिंदी से दूर दिखती है. इसलिए इस भाषा को समझने में अकसर लोगों को कठिनाईयों का अनुभव होता है। ऐसा कई बार हुआ है कि नाव या पोत इस दुनिया में रूकते हैं किंतु भाषा पूरी तरह समझ में ना आने से अपनी यात्रा पर निकल पड़ते हैं। दुनिया अबूझी की अबूझी रह जाती है।

आईए, हम इस दुनिया की यात्रा करते हैं। यह यात्रा कितनी सफल होगी वह आपकी सोच और आपकी दूरदर्शिता निर्धारित करेगी। मेरी भूमिका तो मात्र एक सामान्य गाइड की होगी। इस दुनिया में प्रवेस करते ही पहली जॉच होगी कि आगंतुक किस भाषिक क्षेत्र का है तदनुसार उसे क, ख तथा ग क्षेत्र के अनुसार पत्र दिया जाता है। यह प्रक्रिया अत्यंत सरल है इसलिए इसमें किसी प्रकार की त्रुटि नहीं होती है। यहॉ यह ध्यान देनेवाली बात यह है कि भाषिक क्षेत्र का पार्मूला केवल भारतीयों पर ही लागू है। यदि विदेशी अर्थात अंग्रेजी भाषिक आगंतुक प्रवेश करता है तो सबसे पहले उसे भारत सरकार के राजभाषा अधिनियम धारा 3(3) के अंतर्गत जॉचा जाता है। यह जॉच प्रक्रिया विशेष विशेषज्ञतायुक्त है अतएव इसमें प्राय: चूक होने की संभावना बरकरार रहती है। अंग्रेजी को हिंदी करना मात्र अंग्रेजी शब्द के स्थान पर हिंदी शब्द रखना नहीं होता है बल्कि संबंधित विषय के भाव को अभिव्यक्ति प्रदान करनी होती है। इसमें कैसी उलझन होती है इसका उदाहरण निम्नलिखित अधूरे वाक्यांश द्वारा प्रस्तुत है –

Parcel is being addressed to their branch or correspondent bank

पार्सल है उनकी शाखा या संवाददाता बैंक को संबोधित किया जा रहा है.

क्या कहेंगे आप कि इस दुनिया में ऐसे ही राजभाषा वाक्य की रचना होती है। जी हॉ, एक हद तक आपकी सोच सही तो हो सकती है पर इस दुनिया में भी अनेकों धुरन्धर हैं जो चुपचाप राजभाषा के विकास में लगे हुए हैं। ऐसे लोग ना तो शोरबाजी करते हैं और ना ही निरर्थक मंचबाजी इसलिए प्राय: चर्चाओं में नहीं रहते हैं। इस दुनिया की प्रथम रीति यह है कि –

राजभाषा की प्रतिभाओं को विकास का पूर्ण अवसर नहीं मिल रहा है।

भूलिएगा नहीं कि मैंने अवसर की बात नहीं की है बल्कि पूर्ण अवसर की बात की है क्योंकि बगैर पूर्णता के किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं की जा सकती है।

यदि मैं कहूं कि मैंने सत्य को बेबाकी से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है तो यह भी उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि कई ऐसे लोग हैं जिन्हें पूर्ण अवसर मिल रहा है परन्तु ऐसे लोग अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस अवसर का अधिक प्रयोग कर रहे हैं अन्यथा राजभाषा की दुनिया में दो चीजों की होड़ क्यों लगी होती। शायद आप भी जानते हों इस होड़ को। यह हैं डॉक्टरेट डिग्री की प्राप्ति तथा पुस्तक प्रकाशन की होड़। यह कार्य अधिकांशत: कार्यालयीन सुविधाओं के सहयोग से पूर्णता प्राप्त करते हैं वैसे अपवाद तो हर जगह पाया जाता है।
अतएव राजभाषा की दुनिया का दूसरा तथ्य है कि –

प्राप्त सुविधाओं की सहायता से विशेषतया डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करना तथा स्वनाम की पुस्तक प्रकाशित कर में व्यक्तिगत विकास की यात्रा की और बढ़ना।

चुनौतियॉ और राजभाषा एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह लगते हैं। हिंदी दिवस,14 सितंबर के उपलक्ष्य आयोजित हिंदी सप्ताह, पखवाड़ा या हिंदी माह के आयोजन के समय राजभाषा जगत में दीवाली, ईद, क्रिसमस आदि जैसा वातावरण रहता है। इस अवधि के दौरान स्टाफ को एकत्रित करना एक बड़ी चुनौती होती है। जी नहीं, कृपया ऐसा मत सोचिए कि यह चुनौती हमेशा रही है। स्टाफ को राजभाषा के किसी आयोजन में इकटअठा करना पिछले 5-6 वर्षों की समस्या है। इसका कारण यह है कि राजभाषा की दुनिया में जो आयोजन वर्ष 1984 में किए जाते थे वह अब भी जारी है। परिवर्तन के नाम पर पुरस्कार आदि की राशि बढ़ गई है किन्तु इसमें गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया है। इसलिए स्टाफ की यह सोच रहती है कि क्यों जाकर बोर होएं इससे अच्छा है कि हिंदी के नाम पर आज जल्दी कार्यालय से चले जाने की सुविधा का उपभोग करें। राजभाषा अधिकारी आयोजन, संयोजन से जूझते हुए अपने उच्चाधिकारी को भीड़ इकट्ठा होने की आश्वासन देते रहता है। इस तथ्य की पुष्टि लगभग सभी कार्यालय के राजभाषा विभाग, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के आयोजन इतिहास के अवलोकन से सहज ही उपलब्ध हो जाता है। इससे तीसरी तथ्य स्पष्ट होता है कि –
राजभाषा की दुनिया में चमक है किंतु अपेक्षित दमक नहीं है इसके बावजूद भी प्रशंसाएं मिलती रहती हैं।

राजभाषा कार्यान्वयन समिति की तिमाही बैठक की कार्यसूची तथा कार्यवृत्त के अवलोकन से यह तथ्य भी उभरता है कि वर्षों से एक ही कार्यसूची तथा लगभग एक जैसे कार्यवृत्त पर राजभाषा की दुनिया दौड़ रही है। कई जगह तो समिति में लिए गए निर्णयों पर कोई ठोस कार्रवाई ही नहीं होती और आधारहीन कारण समिति के समक्ष प्रस्तुत कर कार्यवृत्त की पुष्टि कर ली जाती है। समय-समय पर इस कार्यवृत्त में सदस्यों के नाम बदल जाते हैं। राजभाषा कार्यान्वयन की दिशा निर्धारित करनेवाली यह एक सशक्त समिति अपनी क्षमताओं का बहुत कम उपयोग कर पाती है। इससे यह चतुर्थ निष्कर्ष निकलता है कि –

राजभाषा की दुनिया प्राप्त शक्तियों का उपयोग नहीं कर पाती है तथा बैठकों में परम्पराएं निभाने जैसी झलक मिलती है।

राजभाषा कार्यान्वयन को समुचित गति प्रदान करने तथा आवश्यक दिशानिर्देश देने के लिए अधीनस्थ कार्यालयों का निरीक्षण किया जाना आवश्यक है। यह अनुभव किया गया है कि यह निरीक्षण केवल आवश्यकता पूर्ति के लिए की जाती है। राजभाषा अधिकारी कुछ लोगों से मिलकर लौट आता है या मात्र उपस्थिति दर्ज कराने के उद्देश्य से अधीनस्थ कार्यालय के स्टाफ से मिलता है और निरीक्षण रिपोर्ट तैयार करना अपने एक दायित्व का इतिश्री मान लेता है। स्टाफ से मिलना, बातचीत कर उनकी समस्याओं का तत्काल समाधान करना नहीं हो पाता परिणामस्वरूप राजभाषा कार्यान्वयन को गति नहीं मिल पाती। यह राजभाषा कार्यान्वयन की पॉचवी स्थिति दर्शाता है कि –
राजभाषा निरीक्षण एक औपचारिकता बन गया है जिसका राजभाषा कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

यह अंतिम पड़ाव है। अंतिम पड़ाव इसलिए कि इस व्यापक दुनिया का भ्रमण अत्यधिक समय लेनेवाला है। मेरी कोशिश उन महत्वपूर्ण मदों की दर्शाना है जिससे राजभाषा को काफी हानि हो रही है। राजभाषा कार्यान्वयन के स्पंदनों को बखूबी दर्शानेवाली हिंदी की तिमाही रिपोर्ट की स्थिति विवादास्पद बनती जा रही है। इस रिपोर्ट को तैयार करते समय पिछली तिमाही की रिपोर्ट की नकल की जाती है तथा आंकड़ों में थोड़ा सा हेर-पेर कर रिपोर्ट प्रेषित कर दी जाती है। यदि इस रिपोर्ट में दर्शाए आंकड़ों का सत्यापन किया जाए तो कड़ों के समर्थन हेतु कागजात, प्रलेख आदि नहीं मिल पाते हैं। विभिन्न प्रमख कार्यालयों से यह रिपोर्ट व्यवस्थित प्रेषित की जाती है और यथोचित रिकॉर्ड भी रखा जाता है किन्तु अधीनस्थ कार्यालयों में यह स्थिति नहीं है। ज्ञातव्य है कि इसी रिपोर्ट के आधार पर राजभाषा के विभिन्न पुरस्कार निर्धारित के जाते हैं। इससे छठवॉ तथ्य स्पष्ट होता है कि –

राजभाषा कार्यान्वयन का परम लक्ष्य मात्र राजभाषा के विभिन्न पुरस्कार प्राप्त करना है।

यदि यह सिलसिला जारी रहा तो एक स्थिति ऐसी आ जाएगी कि राजभाषा कार्यान्वयन केवल काग़जों में सिमट कर रह जाएगी। समय रहते चेत जाना समाज और राष्ट्र के लिए हितकर होगा।