अनुशासन शब्द एक निर्धारित व्यवस्था का द्योतक है। देश, काल, समय और परिस्थिति के अनुरूप अनुशासन में यथावश्यक परिवर्तन होते रहता है। अनुशासन के लिए हमेशा एक सजग, सतर्क तथा कठोर पर्यवेक्षक की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि स्वनुशासित होना बेहतर होता है। स्वनुशासन प्राय: जागरूक लोगों में पाया जाता है। राजभाषा भी जागरूक है इसलिए अनुशासित है। नियम, अधिनियम, राष्ट्रपति के आदेश, वार्षिक कार्यक्रम आदि राजभाषा को अनुशासन की पटरी पर सदा गतिमान रखते हैं। तो क्या राजभाषा लोग है? नहीं, ऐसे कैसे सोचा जा सकता है? इसमें न तो भावनाओं का स्पंदन है और न ही विचारों का प्रवाह है, यह तो मात्र नीति दिशानिर्देशक है। लोग तो राजभाषा अधिकारी हैं जो राजभाषा के बल पर एक प्रभावशाली पदनाम के साथ राजभाषा कार्यान्वयन कर रहे हैं। जब कभी भी राजभाषा के लिए अनुशासन शब्द का प्रयोग किया जाएगा तो राजभाषा अधिकारी स्वत: ही जुड़ जाएगा। अतएव राजभाषा अधिकारियों के अनुशासन पर चर्चा की जा सकती है। प्रश्न यह उभरता है कि क्या राजभाषा अधिकारियों के अनुशासन पर चर्चा प्रासंगिक एवं आवश्यक है? यदि राजभाषा कार्यान्वयन प्रासंगिक है तो राजभाषा अधिकारियों पर चर्चा भी समीचीन है।
कैसे की जाए राजभाषा अनुशासन की चर्चा? राजभाषा अधिकारी तो एक अनछुआ सा विषय है. यदा-कदा कभी चर्चा भी होती भी है तो राजभाषा अधिकारी की तीखी आलोचनाओं के घेरे में उलझकर चर्चाएं ठहर जाती हैं। वर्तमान परिवेश में जितना बेहतर प्रदर्शन राजभाषा अधिकारी कर पाएंगे उतना ही प्रभावशाली राजभाषा कार्यान्वयन होगा। राजभाषा कार्यान्वयन संबंधित राजभाषा अधिकारी के कार्यनिष्पादनों का प्रतिबिम्ब है। राजभाषा अधिकारियों को स्वनुशासित होने के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए जा सकते हैं –
1. आत्मविश्वास
2. भाषागत संचेतना
3. राजभाषा नीति का ज्ञान
4. सम्प्रेषण कौशल
5. अनुवाद कौशल
6. बेहतर जनसंपर्क
7. रचनात्मक रूझान
8. कार्यान्वयन कुशलता
9. प्रतिबद्धता
10. प्रदर्शन कौशल
उक्त के आधार पर अनुशासन की रेखा खींची जा सकती है। ज्ञातव्य है कि सशक्त आधार तथा कुशलताओं के बल पर बेहतर से बेहतर कार्यनिष्पादन किया जा सकता है। राजभाषा अधिकारी अपनी-अपनी क्षमताओं के संग राजभाषाई उमंग का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। आवधिक तौर पर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की समीक्षा भी होती रहती है। इस प्रकार की समीक्षाएं राजभाषा कार्यान्वयन में सतत् सुधार के अतिरिक्त अनुशासन बनाए रखने में भी सहायक है। इस तथ्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि राजभाषा कार्यान्वयन संबंधित कार्यालय के कामकाज का एक हिस्सा है अतएव इसे कार्यालय की धारा के संग चलना पड़ता है अन्यथा कार्यान्वयन सुचारू रूप से नहीं हो सकता है। चूँकि कार्यान्वयन कार्यालय के कामकाज से जुड़ा है इसलिए कार्यालय के अनुशासन से भी बंधा है। इसके बावजूद भी यदि राजभाषा अधिकारी उक्त मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है तो वह अनुशासित नहीं है अर्थात प्रभावशाली राजभाषा कार्यान्वयन के लिए सक्षम नहीं है।
धीरेन्द्र सिंह.
कैसे की जाए राजभाषा अनुशासन की चर्चा? राजभाषा अधिकारी तो एक अनछुआ सा विषय है. यदा-कदा कभी चर्चा भी होती भी है तो राजभाषा अधिकारी की तीखी आलोचनाओं के घेरे में उलझकर चर्चाएं ठहर जाती हैं। वर्तमान परिवेश में जितना बेहतर प्रदर्शन राजभाषा अधिकारी कर पाएंगे उतना ही प्रभावशाली राजभाषा कार्यान्वयन होगा। राजभाषा कार्यान्वयन संबंधित राजभाषा अधिकारी के कार्यनिष्पादनों का प्रतिबिम्ब है। राजभाषा अधिकारियों को स्वनुशासित होने के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए जा सकते हैं –
1. आत्मविश्वास
2. भाषागत संचेतना
3. राजभाषा नीति का ज्ञान
4. सम्प्रेषण कौशल
5. अनुवाद कौशल
6. बेहतर जनसंपर्क
7. रचनात्मक रूझान
8. कार्यान्वयन कुशलता
9. प्रतिबद्धता
10. प्रदर्शन कौशल
उक्त के आधार पर अनुशासन की रेखा खींची जा सकती है। ज्ञातव्य है कि सशक्त आधार तथा कुशलताओं के बल पर बेहतर से बेहतर कार्यनिष्पादन किया जा सकता है। राजभाषा अधिकारी अपनी-अपनी क्षमताओं के संग राजभाषाई उमंग का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। आवधिक तौर पर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की समीक्षा भी होती रहती है। इस प्रकार की समीक्षाएं राजभाषा कार्यान्वयन में सतत् सुधार के अतिरिक्त अनुशासन बनाए रखने में भी सहायक है। इस तथ्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि राजभाषा कार्यान्वयन संबंधित कार्यालय के कामकाज का एक हिस्सा है अतएव इसे कार्यालय की धारा के संग चलना पड़ता है अन्यथा कार्यान्वयन सुचारू रूप से नहीं हो सकता है। चूँकि कार्यान्वयन कार्यालय के कामकाज से जुड़ा है इसलिए कार्यालय के अनुशासन से भी बंधा है। इसके बावजूद भी यदि राजभाषा अधिकारी उक्त मानदंडों पर खरा नहीं उतरता है तो वह अनुशासित नहीं है अर्थात प्रभावशाली राजभाषा कार्यान्वयन के लिए सक्षम नहीं है।
धीरेन्द्र सिंह.
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