कपास के विभिन्न रूपों को लोग बखूबी जानते हैं पर बहुत कम लोगों को जानकारी है कि कपास के विभिन्न गुणों में एक गुण इसके तरन्नुम का है। कपास और तरन्नुम ? कृपया चौंकिए मत। आज जबकि देश में विभिन्न नई योजनाओं, नवोन्मेषी कल्पनाओं का दौर चल रहा है तब ऐसी स्थिति में कपास में नवोन्मेषी गुण न निकले, भला यह कैसे संभव हो सकता है ? इस सोच को अभी मूर्त रूप दिए देता हूँ फिर आप ही बोल पड़ेंगे कि "अरे हॉ, यह तो सब जानते हैं"। रूई को धुनते समय धुन्न,धुन्न,धुन्न की आवाज़ से कौन अपरिचित हो सकता है ? कपास की सफाई करते समय तार से टकरानेवाली अंगुलियॉ इस धुन के सिवा कोई और धुन निकाल ही नहीं सकती। रूई की धुनाई के समय तार से टकरा-टकराकर अंगुलिया कौन सी धुन निकालती हैं इस पर संगीत ज्ञाता शोध कर सकते हैं, सितार, वायलिन, गिटार आदि बजाते समय चलनेवली अंगुली तथा कपास की सफाई के समय तार से सपर्क करनेवाली अंगुलियों में तारसप्तक के कौन से सुर समान हैं, यह संगीतशास्त्री ही बखूबी समझा सकते हैं।
ना, ना ऐसा बिलकुल मत सोचिए कि रूई धुनक्कड़ से मिलकर ही कपास का सुर सुनाई पड़ता है। सच्चाई तो यह है कि कपास धुन देश, काल, समय, आदि से परे है। व्यक्ति चाहे जागता रहे अथवा सोता रहे तरन्नुम-ए-कपास बदस्तूर जारी रहता है। यह अपने वजूद को कभी तकिए में दिखाता है, कभी गद्दे में तो कभी तेल के रूप में तो कभी मंदिर के दिए की बाती के रूप में, कभी शारीरिक जख्म पर अपनी कोमलता का स्पर्श देते हुए, कभी भावनात्मक आंधियों में इत्र के फाहे के रूप में सुगंध बिखेरते हुए आदि अनेक रूप और अंदाज़ में कपास जिंदगी के प्रत्येक पहलू की 'तपास' (जॉच) करते रहता है। कहा जाता है कि सफेद रंग सभी रंगों का सरताज़ है ठीक उसी तरह कपास भी जीवन के ऊँचे तख़्त का बेताज बादशाह है। एक ऐसा बादशाह जिसके अहसास से इंसानों की सॉस-सॉस जुड़ी है पर उसमें खामोशी है। एक ऐसी खामोशी जिसे सब कुछ मालूम है, एक ऐसी शांति जो जीवन हर ढंग में हमेशा शांति ही लाती है। इसे यदि कपास की महानता न कहें तो और कौन सा नाम देंगे ?
कपास की शक्ति को हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी पहचाना और चरखे के साथ जोड़कर कपास को देश के सुदूर गॉवों में पहुँचाकर एक ·ोत आर्थिक शांति का सूत्रपात किया। महिलाओं को आर्थिक आज़ादी का सुख प्रदान किया। कपास का यह तरन्नुम महिलाओं विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के होंठों पर गीत बनकर उमड़ा जिसकी धुनें आज भी गॉवों में बदस्तूर जारी हैं। कपासीय परिधान वर्तमान आधुनिकता की दौड़ में भी अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है। प्राय: जीवन में यही होता है कि सर्वव्यापी की आम चटपटी चर्चाएॅ नहीं होतीं, उसका आकर्षक चित्तमोहक चतुरदर्शनी प्रदर्शन नहीं होता बल्कि वह एक तरंग, उमंग के साथ जीवन के प्रवाह में समरस हो जाती है, जैसे कि मानव जीवन में कपास। यह सर्वविदित है कि कपास कृषि ने किसानों के जीवन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं परन्तु यह आवश्यक है कि दुखों को सहने की शक्ति मिले। कपास की दुख भंजन क्षमताओं से व्यक्ति बखूबी परिचित है। सोचिए कि यदि खेलते समय लगी खरोंच पर कोई दवा लगानी होती है तो कपास की खोज शुरू हो जाती है और प्रत्येक घर में यह बहुत संभाल कर रखा जाता है। जैसा कि आप सब लोग जानते हैं कि संभाल कर रखी गई वस्तु ढूँढते समय जल्दी नहीं मिलती तो प्राय: घरों में कपास शोधन में भी ऐसा ही होता है और अंतत: उपलब्धि मिलती है। इसके अतिरिक्त खूबसूरती को निखारने के लिए, रूप को सॅवारने के लिए भी कपास अपनी अहम भूमिका निभाता है जिससे सौंदर्य गुनगुनाता है और व्यक्तित्व निखर जाता है। गौरतलब है कपास की सादगी। वस्तुत: यदि रगों की दुनिया पर शोध किया जाए तो संपूर्ण वि·ा में प्रसारित ·ोत, धवल सी सौम्य-शांति का उद्भव, उद्गम और उत्कर्ष केवल कपास के द्वारा ही हुआ है। अतएव, इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वि·ा शांति का अग्रदूत कपास है, चूँकि अपनी कोमलता के कारण यह उड़ नहीं सकता इसलिए परिस्थितिजन्य व्यवहारिक कठिनाईयों को देखते हुए यह स्थान कबूतर को प्रदान कर दिया गया।
इश्क की दुनिया में कपास का एकछत्र राज्य है जिसके कारण शायरी, गज़ल, नज्म, गीत आदि में मदहोश कर देनेवाली खुश्बू छा गई। साठ के दशक में कपास को इत्र में डूबोकर कान में फिट कर महक का मौज बिखेरता आशिक जब अपने दिल पर अपनी हथेली रख कर अपनी माशूका से बातें करता था तब फिज़ाओं में भी खलबली मच जाती थी। उद्यान के रंग-बिरंगे पुष्पों ने विरोध में अपनी एक यूनियन तक बना डाली तथा निर्णय लिया कि इत्र के विरूद्ध लड़ाई शुरू की जाए। यह लड़ाई का सिलसिला कुछ दिनों तक चला, फूलों ने अपने रंगों को और चमकीला बनाया, अपनी खुश्बू को और मादकता में डूबोया किंतु सफलता न मिली और फिर कहीं से उनके सूचना तंत्र ने खबर दी कि इत्र से कहीं ज्यादा भूमिका तो कपास की है जो इत्र को अपने में इस तरह छुपा लेता है कि उसकी महक दिनभर फैलती रहती है और हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। पुष्प यूनियन के पास इसका उत्तर नहीं था अतएव उनकी यूनियन टूट गई और कपास के कारण इत्र इश्क की दुनिया में बरकरार रहा।
जन्म से लेकर मृत्यु तक कपास की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कपास और जिंदगी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। शिशु कोमल, सुंदर, मासूम होता है उसी तरह खेत में उपजी कपास फसल भी कोमल, मासूम और शुभ्र होती है। जैसे-जैसे शिशु बड़ा होते जाता है वैसे-वैसे ज़िंदगी उसे अपने रंग में रंगते जाती है और अंतत: वृद्धावस्था आता है जहॉ पर शिशु का रूप-रंग-ढंग सब बदल जाता है इसी तर्ज़ पर कपास भी अपना रंग-रूप बदलता है खेत का शुभ्र, कोमल कपास जब व्यवहार में उपयोग लाया जाता है तो उसके रंग और कोमलता में परिवर्तन हो जाता है तथा ऐसा लगता है कि कपास एक लंबी संघर्षपूर्ण और महत्वपूर्ण जीवन यात्रा कर के आया है। एक संदेश, एक दर्शन के साथ कपास यह संकेत देता है कि जीवन की यात्रा में जुगलबंदी की महत्वपूर्ण भूमिका है तथा बगैर तरन्नुम के जीवन में कोई भी बड़ा काम नहीं हो सकता है। कपास यह भी बतलाता है कि जिंदगी में जहॉ कहीं भी तरन्नुम मिल जाता है वहीं पूर्णता आ जाती है। कपास का यह संदेश लगातार संसार को मिल रहा है, कपास बेधड़क अपनी मखमली यात्रा कर रहा है। आईए, हम सब भी कपासमय हो जाएॅ और शुभ्र-धवल परिवेश में एकाग्रचित्त होकर अपनी अंतर्यात्रा करें।
धीरेन्द्र सिंह
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