पलकों में अगन जो समाई है
बलमा लगे बड़ा हरजाई है,
खाट का ठाठ अधूरा रह गया
बैरी बन गई यह कमाई है.
सूरज ना अच्छा, चॉद ना अच्छा
तारों की चादर खिलखिलाई है,
सूखे पत्तों को हवा खड़खड़ाए
लगे कदमों की वही अंगनाई है.
हवाओं का है कैसा यह ईशारा
बदली क्यों आज लड़खड़ाई है,
रोम-रोम सिसक-सिसक सहमे
धड़कनों का धड़कनों से लड़ाई है.
प्यार के संसार में है पुकार
चाहत बनी चुलबुली चतुराई है,
अंगडाई निमंत्रण को आगे बढ़ाए
आहत न करो और, दुहाई है.
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