शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

दरकती देवनागरी लिपि – आगे

हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स के 14 जनवरी 2015 के अंक में अंग्रेजी लेखक चेतन भगत ने कहा था “रोमन लिपि अपनाओ, हिंदी भाषा बचासो।” इस शीर्षल के नीचे रोमन लिपि में लिखा था “Waqt ke saath-saath bhasha ko bhi badlana zaruri hai.” यह लरखं आया और चला गया। इस मुद्दे पर न तो वर्ष 2015 में किसी ने चिंता व्यक्त की और न ही वर्ष 2024 तक कोई व्यापक चर्चा-परिचर्चा हुई। इस अवधि में यह अवश्य हुआ कि बोलकर टाइप करने की सुविधा सबको उपलब्ध हुई। हिंदी की अनेक सरकारी और गैर-सरकारी विभिन्न संस्थानों ने रोमन लिपि का प्रयोग कर टाइप करने पर न तो विरोध किया न चर्चा की, केवल परिचर्चा होकर इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर मूक सहमति बनी। एक कारण यह भी दिया गया कि यदि रोमन से हिंदी टाइप करने की सुविधा होगी तो देवनागरी लिपि का ज्ञान न रखनेवाले भी हिंदी का उपयोग कर सकेंगे।

 

आज स्थिति क्या है? अधिकांश हिंदी रोमन लिपि के सहयोग से लिखी जा रही है। यह एक स्वाभाविक सुविधा मोह है या उस कथन का एक यथार्थ रूप जिसमें कहा गया है “सुख-सुविधा से जीना।“ सुविधा को अधिकांश भारतीय अपना चुके हैं। वर्तमान में कोई ऐसी युक्ति, सुविधा या प्रौद्योगिकी मंत्र है जिसके द्वारा ऐसे लोगों को देवनागरी टंकण के लिए मोहित, प्रेरित या प्रोत्साहित किया जा सके? उत्तर यफी नहीं है तो फिर आगे क्या ? प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी प्रेमी वर्ग बहुत कम सोचता है। इस वर्ग का प्रयास प्राप्त प्रौद्योगिकी सुविधाओं को सीखने का अधिक होता है। विडंबना यह कि एक सुविधा को सीखते-सीखते दूसरी उन्नत सुविधा आ जाती है और इस प्रकार सीखने का क्रम जारी रहता है।

 

सीखना एक अच्छी क्रिया हौ किन्तु इसके संग उस संबंधित चिंतन और मनन भी होना चाहिए। क्या रोमन लिपि हिंदी वर्णमाला के प्रभाव को कम देगी? यहां यह कहना जरूरी है कि अंग्रेजी ने हिंदी वर्णमाला के प्रभाव को कम कर दिया है। हिंदी जगत में पुस्तक प्रकाशन, आदर, सम्मान, पुरस्कार आदि में व्यस्त हैं। वर्तमान में कोई भी सक्षम और सशक्त हिंदी आधार इस विषय पर नहीं सोच रहा है। उत्तरप्रदेश के हिंदी माध्यम के विद्यार्थी से देवनागरी लिपि में चैट कर रहा था। उस लड़के ने कहा कि उसे अंग्रेजी में चैट करना आता है। मैंने अंग्रेजी भाषा में छाIत करना आरंभ किया। एह लड़का अंग्रेजी भाषा देख झुंझलाया और कहा अंग्रेजी में लिखिए। थोड़ी देर बाद समझ पाया कि वह हिंदी को रोमन लिपि में टाइप करने को कह रहा। यही उसकी अंग्रेजी थी।

 

भविष्य अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के हाँथ में है। अप्रत्याशित चमत्कार की संभावना कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सदैव बनी रहती है। देवनागरी लिपि के प्रयोग का कोई नया ढंग और ढर्रा इससे मिल सकती है। आगे हिंदी टंकण और उसमें देवनागति लिपि का सीधे प्रयोग और प्रभाव की युक्ति के आने की संभावना है और तब कहीं वर्तमान प्रयोग में परिवर्तन हो सकता है।

 

धीरेन्द्र सिंह

30.08.2024

23.15




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गुरुवार, 22 अगस्त 2024

टेढ़ी होती हिंदी

बांकपन हिंदी का एक ऐसा शब्द है जिसके माध्यम से अनेक सरस अभिव्यक्तियां की जाती रही हैं। यदि यही बांकपन हिंदी भाषा की अभिव्यक्तियों को टेढ़ा कर दे तो क्या कहा जा सकता है? किसे इसके लिए दोषी ठहराया जाएगा? निरुत्तर हो जाता है व्यक्ति क्योंकि जब भाषा निरंतर क्रमशः टेढ़ी होती जाती है तो इस “बांकपन” की सहज अनुभूति नहीं होती है बल्कि व्यक्ति का मानस भी भाषा के संग “बांकपन” ग्रहण करते टेढ़ा होते जाता है। भाषा इस प्रकार अपना तांडव करती है जो आजकल हिंदी भाषा में जोरों पर है। दोषी को ढूंढने के प्रक्रिया में चिंतन अंततः वहीं जाकर ठहर जाता है जहां पर हिंदी के विभिन्न दायित्व निर्वहन करनेवाले ज्ञानी होते हैं। लीजिए हिंदी के लिए हिंदी वाले ही दोषी? क्या यह एक कुंठाग्रस्त अभिव्यक्ति नहीं है? क्या इसे पूर्वाग्रह नहीं कहा जा सकता है? 


वर्षों से ही हिंदी भाषा में अनेक शब्द प्रवेश कर रहे हैं और वह शब्द सीधे हिंदी शब्द को आघात नहीं पहुंचा रहे हैं। हिंदी में “की” और “किया” पर दिल्ली तथा आसपास के शहरवासी सीधे आक्रमण कर “की” को “करा” बना दिये हैं और “किया” को “करी” में परिवर्तित कर चुके हैं। इन क्षेत्र के अधिकांश धड़ल्ले के साथ हिंदी के शब्दों को पदच्युत कर “करा-करी” बोल रहे हैं। आश्चर्य तो तब हुआ जब उच्चतम भारतीय पद के लिए प्रशिक्षण संस्थान चलानेवाली भी “करा-करी” से स्वयं को न बचा पाई। हिंदीभाषी क्षेत्र द्वारा हिंदी शब्दों पर इतना प्रखर प्रहार वर्तमान भारतीय शब्द विज्ञान में नहीं मिलेगा। यह मात्र एक उदाहरण स्वरूप है। भारत की अन्य भाषाओं के शब्द भी हिंदी शब्द को खिसकाने का प्रयास किए पर या तो उनका प्रयोग राज्य विशेष तक सीमित रहा या क्रमशः लुप्त हो गया। “करा-करी” में दृढ़ता दिखलाई पड़ रही है।


 हिंदी भाषा पर अंग्रेजी का प्रभाव जग जाहिर है।  पहले बोलचाल में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग खूब होता था। दो दशक पहले हिंदी के वाक्यों में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग शिक्षित होने का एक अघोषित प्रमाण माना जाता था। इस अवधि में हिंदी की वाक्य रचना और शब्दावली चयन टेढ़ी होना आरंभ की जिसे शाब्दिक परिवर्तन के रूप में माना जा सकता था। इस अवधि के विशेषकर गद्य रचनाकार भी लेखन में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने लगे। इसी समयावधि में टाई संस्कृति भी जोरों पर थी। अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा ने भी हिंदी और अंग्रेजी मिश्रित खिचड़ी भाषा के उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। अंग्रेजी भाषा ने हिंदी के मौखिक प्रयोग में परिवर्तन ला दिया।


भारतीय भाषाओं ने भी अपनी शब्दावली के द्वारा हिंदी को परिवर्तित करने का प्रयास आरंभ कर दिया है जिससे हिंदी में अपरिचित शब्दावली प्रायः मिल जाते हैं। “बवाल काटा” का अर्थ क्या निकाला जाए? सजा काटने के अनुरूप यह “बवाल काटा” परिलक्षित होता है। प्रतिदिन हिंदी में ऐसे शब्दों का प्रयोग मिल रहा है जो दशक पूर्व तक नहीं थे। हिंदी परिवर्तित हो रही है, विकसित हो रही है या टेढ़ी हो रही है इसका सहज मूल्यांकन प्रत्येक हिंदी भाषा प्रेमी कर सकता है।


धीरेन्द्र सिंह

23.08.2024

08.47



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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

हिंदी के समूह और हिंदी

आए दिन हिंदी के नए समूह बन रहे हैं। हिंदी भाषा के विकास के लिए हिंदी समूह का गठन एक अच्छी परंपरा है। प्रौद्योगिकी ने अभिव्यक्ति के लिए इतने आयाम निर्मित कर दिया है और इतने नए आयाम खुल रहे हैं कि इस दशक को अभिव्यक्ति का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है। विगत कुछ महीनों से हिंदी के विभिन्न समूहों का निकट से अवलोकन कर रहा हूँ। यह अवलोकन हिंदी के विकास क्रम का एक स्वतंत्र सर्वेक्षण है। वर्तमान में हिंदी साहित्य के लिए सक्रिय विभिन्न समूहों ने अब तक निम्नलिखित जानकारियां दी हैं :-


1. हिंदी का वर्तमान में सर्वश्रेष्ठ समूह की पड़ताल जब आरंभ किया तो कुल पांच हिंदी समूह सर्वश्रेष्ठता के दावेदार मिले :-


क. सबसे पहले मुझे “शब्दालय” समूह मिला जहां पर उच्च कोटि की काव्य पोस्ट लगभग प्रतिदिन पढ़ने को मिलती है। एडमिन और मॉडरेटर इतने सक्रिय और हिंदी विकास के प्रेमी थे कि मुझे लगा इस समूह में मेरी कोई भूमिका नहीं है और पूर्णतया सक्षम समूह है। इस समूह को मैंने छोड़ दिया। नए चार समूह मिले जिनमें सर्वश्रेष्ठ होने की चिंगारी लिए सर्वश्रेष्ठ हैं, वह समूह हैं:-


1., काव्यस्थली

2. गोपाल दास नीरज साहित्य संस्थान समूह

3. कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखें

4. बेमिसाल साहित्यिक मंच


उक्त चारों समूह में एडमिन और मॉडरेटर की सक्रिय भूमिका का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हुआ कि “काव्यस्थली” समूह पहले अपने रचनाकारों का मूल्यांकन करती है और उनकी पोस्ट पर विश्लेषणात्मक दृष्टि बनाए रखती है। इस प्रक्रिया के दौरान एडमिन या मॉडरेटर रचनाकार से एक भावनात्मक संबंध निर्मित कर लेते हैं अपनी प्रतिक्रियाओं के द्वारा। कुछ समय बाद रचनाकार को यह विशेष अधिकार समूह देता है कि बिना मॉडरेशन के वह रचनाकार सीधे समूह में अपनी रचना पोस्ट कर सकता है। यह एक समूह द्वारा किसी रचना को प्रदत्त एक शीर्ष सम्मान है। यही "काव्यस्थली" की अनोखी विशिष्टता है।


“गोपाल दास नीरज साहित्य संस्थान” में गद्य, पद्य प्रकाशित होते हैं। इस समूह ने रचना प्रेषण विधा पर रोक नहीं लगाया है। यदि कहूँ कि हिंदी के समस्त समूह में से सर्वश्रेष्ठ एडमिन और मॉडरेटर इस समूह में हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जल संरक्षण के लिए जिस तरह नदियों में बांध बनाए जाते हैं उसी प्रकार अपने रचनाकारों की सृजनशीलता को आदर देने के लिए एडमिन, मॉडरेटर सम्मान का एक बांध बना देते हैं। सभी एडमिन और मॉडरेटर रचनाकार की पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देते हैं जिससे पोस्ट की गुणवत्ता भी बनी रहती है। यदि कभी रचना मद्धम हुई तो इनकी प्रतिक्रियाएं कोमलता से आगाह कर देती हैं कि थोड़ी और ऊंचाई और गहराई होती तो बात ही कुछ और होती! यहां के एडमिन और मॉडरेटर अहं से ढूर हैं यह तथ्य ज्ञात होने पर हतप्रभ भी हुआ। बेहद श्रम करते हैं और रचनाओं की गुणवत्ता बनाए रखते हैं।


“कुछ तुम लिखो, कुछ हम लिखें” और “बेमिसाल साहित्यिक मंच” इन दोनों समूह में दूरदर्शी और तेज-तर्रार महिलाएं हैं। इन दोनों समूह में महिला प्रधान प्रशासन है और यह सनुभव किया गया है कि इनकी दृष्टि रचनाकार की परख रखती है और किसी नियमावली में आंशिक संशोधन भी करना पड़ता है तो यह विदुषी महिलाएं सकारात्मक निर्णय लड़ने में नहीं हिचकती हैं। महिला सशक्तिकरण और महिला संचासलित हिंदी के अभिनव समूह हैं।


2.  सर्वश्रेष्ठ और श्रेष्ठ के बीच के समूह :- इस वर्ग में आनेवाले समूह रचना अपने सिद्धांतों और रचना के नीचे रचनाकार की पोस्ट के बीच एक संतुलित सामंजस्यता को निर्मित करने में संघर्षरत दिखते हैं। ऐसे हिंदी समूह हैं :-


1. काविश

2. साहित्य कुंज

3. साहित्यनामा पत्रिका

4. Hindi Poetry/ - हिंदी कविता

5. गुलज़ार की यदि 

6. शब्द कलश – शब्दों का विशाल संग्रहालय

7. अनसुलझी कहानियां

8. हिंदी लेखक परिवार (समूह)


यहां पर आकर यह सहज प्रश्न उभरता है कि यह वर्गीकरण किस आधार पर? हिंदी के कुल 80 से भी अधिक समूहों की सदस्यता लेकर महीनों तक इन समूहों की गतिविधियों और पोस्ट चयन आदि का विश्लेषण किया गया। उक्त आठ समूह में यदि आंशिक सुधार संबंधित एडमिन, मॉडरेटर द्वारा किया जाए तो सर्वश्रेष्ठ हिंदी समूह बनने में अधिक समय नहीं लगेगा।


हिंदी समूह किस प्रकार अपने रचनाकारों को लेखन में गतिशील और सक्रिय बने रहने में योगदान करते है, यह सर्वप्रथम आकलन किया गया। दूसरा पक्ष था एडमिन और मॉडरेटर स्तर पर पहल और दिशानिर्देश। कुल दो समूह के एडमिन अभिमान तथा गुटबंदी में पाए गए और दोनों एडमिन पुरुष हैं। एडमिन और मॉडरेटर के समक्ष यह चुनौती है कि कैसे रचनाकार को लेखन के प्रति आकर्षित कर लेखन गुणवत्ता को बढ़ाया जाए। अधिकांश समूह हिंदी लेखन की प्रतियोगिताएं करते हैं और विजेताओं को सॉफ्ट प्रति में प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं। रचनाकार को यह छूट दी जाती है कि वह अपनी रचना के नीचे अपना फोटो लगा सकते हैं जो एक प्रकार की लेखन गति को एक लुभावनी पहल है।


शेष हिंदी समूह कहीं दिशाहीन नजर आते हैं  कहीं कुछ समूह सदस्यता संख्या बढ़ाने के लिए अभद्र फोटो व लेखन में लिप्त मिले। अच्छे रचनाकारों के लिए अच्छे समूह भी हैं जिनमें से कुछ की चर्चा उपरोक्त परिच्छेद में कई गयी है। उच्च स्तरीय लेखन क्रमशः सर्वश्रेष्ठ और श्रेष्ठ समूह में बढ़ रहा है। एक सुखद साहित्यिक भोर की ओर बढ़ते हिनफी समूह हिंदी लेखन के वर्तमान के सक्रिय इंजन हैं।


धीरेन्द्र सिंह

16.08.2024

18.08


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