हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स के 14 जनवरी 2015 के अंक में अंग्रेजी लेखक चेतन भगत ने कहा था “रोमन लिपि अपनाओ, हिंदी भाषा बचासो।” इस शीर्षल के नीचे रोमन लिपि में लिखा था “Waqt ke saath-saath bhasha ko bhi badlana zaruri hai.” यह लरखं आया और चला गया। इस मुद्दे पर न तो वर्ष 2015 में किसी ने चिंता व्यक्त की और न ही वर्ष 2024 तक कोई व्यापक चर्चा-परिचर्चा हुई। इस अवधि में यह अवश्य हुआ कि बोलकर टाइप करने की सुविधा सबको उपलब्ध हुई। हिंदी की अनेक सरकारी और गैर-सरकारी विभिन्न संस्थानों ने रोमन लिपि का प्रयोग कर टाइप करने पर न तो विरोध किया न चर्चा की, केवल परिचर्चा होकर इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर मूक सहमति बनी। एक कारण यह भी दिया गया कि यदि रोमन से हिंदी टाइप करने की सुविधा होगी तो देवनागरी लिपि का ज्ञान न रखनेवाले भी हिंदी का उपयोग कर सकेंगे।
आज स्थिति क्या है? अधिकांश हिंदी
रोमन लिपि के सहयोग से लिखी जा रही है। यह एक स्वाभाविक सुविधा मोह है या उस कथन का
एक यथार्थ रूप जिसमें कहा गया है “सुख-सुविधा से जीना।“ सुविधा को अधिकांश भारतीय अपना चुके हैं।
वर्तमान में कोई ऐसी युक्ति, सुविधा या प्रौद्योगिकी मंत्र है जिसके द्वारा ऐसे लोगों
को देवनागरी टंकण के लिए मोहित, प्रेरित या प्रोत्साहित किया जा सके? उत्तर यफी नहीं है तो
फिर आगे क्या ? प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी प्रेमी वर्ग बहुत कम सोचता है। इस
वर्ग का प्रयास प्राप्त प्रौद्योगिकी सुविधाओं को सीखने का अधिक होता है। विडंबना यह
कि एक सुविधा को सीखते-सीखते दूसरी उन्नत सुविधा आ जाती है और इस प्रकार सीखने का
क्रम जारी रहता है।
सीखना एक अच्छी क्रिया हौ किन्तु
इसके संग उस संबंधित चिंतन और मनन भी होना चाहिए। क्या रोमन लिपि हिंदी वर्णमाला के
प्रभाव को कम देगी? यहां यह कहना जरूरी है कि अंग्रेजी ने हिंदी वर्णमाला के प्रभाव
को कम कर दिया है। हिंदी जगत में पुस्तक प्रकाशन, आदर, सम्मान, पुरस्कार आदि
में व्यस्त हैं। वर्तमान में कोई भी सक्षम और सशक्त हिंदी आधार इस विषय पर नहीं सोच
रहा है। उत्तरप्रदेश के हिंदी माध्यम के विद्यार्थी से देवनागरी लिपि में चैट कर रहा
था। उस लड़के ने कहा कि उसे अंग्रेजी में चैट करना आता है। मैंने अंग्रेजी भाषा में
छाIत करना
आरंभ किया। एह लड़का अंग्रेजी भाषा देख झुंझलाया और कहा अंग्रेजी में लिखिए। थोड़ी देर
बाद समझ पाया कि वह हिंदी को रोमन लिपि में टाइप करने को कह रहा। यही उसकी अंग्रेजी
थी।
भविष्य अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता
(AI) के हाँथ में है। अप्रत्याशित चमत्कार की संभावना कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सदैव
बनी रहती है। देवनागरी लिपि के प्रयोग का कोई नया ढंग और ढर्रा इससे मिल सकती है। आगे
हिंदी टंकण और उसमें देवनागति लिपि का सीधे प्रयोग और प्रभाव की युक्ति के आने की संभावना
है और तब कहीं वर्तमान प्रयोग में परिवर्तन हो सकता है।
धीरेन्द्र सिंह
30.08.2024
23.15