शुक्रवार, 25 जून 2021

राजभाषा के थके सिपाही

जब तक एक सियाह घने राजभाषा बादल गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के रूप में छाए रहते हैं तब तक सरकारी बैंकों में देवनागरी लिपि में कामकाज की झलक मिल जाती है। कम्प्यूटर के प्रचलन से प्रौद्योगिकी ने जिस तरह से विकास किया उस गति से राजभाषा कार्यान्वयन अपना विकास नहीं कर सका परिणामतः वर्तमान में भी सरकारी कामकाज में देवनागरी लिपि का प्रयोग दोयम दर्जे का है। संविधान के सशक्त पक्ष का वर्तमान समय लाभ नहीं उठा पा रहा है। इन बैंकों के राजभाषा के आंकड़े भले ही लक्ष्य के अनुसार अपनी रिपोर्ट दें इससे यह कदापि नहीं प्रमाणित होता है कि राजभाषा कार्यान्वयन प्रगति पर है।इस चिंताजनक परिस्थिति का एक बड़े मंच पर विश्लेषण और कार्यान्वयन के लिए एक सक्षम जुझारू नेतृत्व की आवश्यकता है। सामान्य तौर पर देखने से यह लगता है कि राजभाषा के कार्य से जुड़े अधिकारी थक चुके हैं शायद उन्होंने मन में यह जान लिया है कि राजभाषा कार्यान्वयन महज एक सरकारी लक्ष्य पूर्ति का कागजी आंकड़ा है। प्रौद्योगिकी से इतर क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को महत्व दिया जा रहा है और इस प्रकार हिंदी का प्रचार और प्रसार हो रहा है। क्या मात्र हिंदी के विकास से राजभाषा स्वयं विकसित हो जाएगी? इसी प्रश्न के दायरे में राजभाषा उलझी हुई है।

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