शनिवार, 11 नवंबर 2017

चेन्नई, चंदन और चटकार


चेन्नई और खासकर सम्पूर्ण तमिलनाडु को।हिंदी विरोधी मानने का प्रचार किया गया। अधिकांश लोग यह मानकर चल रहे कि तमिलनाडु में हिंदी का प्रचार-प्रसार बेहद कठिन है। ऐसी सोच रखनेवाले यह नहीं देखते कि दक्षिण हिंदी प्रचार सभा अबाध गति से हिंदी शिक्षण कर रहा। इस प्रकार के लोग चेन्नई की सड़कों पर नहीं घूमते जिससे वह इस तथ्य से अनभिज्ञ रह जाते हैं कि कहीं-कहीं दरवाजे पर हिंदी टीचिंग का बोर्ड लटकता दिखाई देता है। यह सब चल रहा है अनवरत बिना किसी शोर शराबे के। अभिभावक अपने बच्चों को केंद्रीय विद्यालय में दाखिला दिलाने को उत्सुक दिखते हैं जिसका एक प्रमुख उद्देश्य हिंदी ज्ञान प्राप्त करना भी है।

इसी प्रसंग में यदि बात चेन्नई में राजभाषा कार्यान्वयन की करें तो मामला शांत और आराम करता हुआ प्रतीत होता है। बैंक या कार्यालयों में राजभाषा का मूल कार्य भी अधूरा बिखरा पड़ा नज़र आता है। मुख्य नाम बोर्ड और कुछ संवैधानिक पट्ट पट्टिकाएं जिनका निर्माण एक स्थान पर बड़ी संख्या में वितरण हेतु होता है वह त्रिभाषिक या द्विभाषिक नज़र आती है। शेष कार्य बदस्तूर अंग्रेजी में जारी है। नई पीढ़ी के कर्मियों को कार्य में राजभाषा प्रयोग का जोश, उल्लास और उत्साह नहीं मिल रहा। हिंदी की आवधिक रिपोर्टों को प्रेषित न किया जाना अधीनस्थ कार्यालयों की आदत है। नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति केवल सदस्य कार्यालयों तक सिमटी है।

चेन्नई का एक नवीनतम उदाहरण है। अभी हाल में उत्तरभारत से एक अधिकारी स्थान्तरित होकर सपत्नी चेन्नई आये। फो दिनों मरीन ही पास पड़ोस के लोगों से परिचय हुआ।।उस बिल्डिंग में सभी दक्षिण भारतीय रहते थे। पड़ोसी ने अपने लड़के को हिंदी पढ़ने के लिए भेज दिया और दूसरे दिन से बिल्डिंग के कुछ और विद्यार्थी हिंदी पढ़ने के लिए आने लगे। कुछ फिनों बाद उस अधिकारी से जब पूछा गया कि उनकी ष्टिमाती का हिंदी ट्यूशन कैसा चल रहा। उत्तर मिला अचानक विद्यार्थियों ने आना बंद कर दिया। उत्सुकतावश प्रश्न किया गया कि क्या उनकी पत्नी के9 अंग्रेजी आती है उत्तर ना था। हिदी को।अंग्रेजी में पढ़ाती तो विद्यार्थी नहीं जाते।

एक और ज्वलंत उदाहरण । एक कार्यालय में दो वरिष्ठ नागरिक कार्यवश आये और संबंधित स्टाफ से एक वरिष्ठ तमिल में बात करना चाहा टैब अंग्रेजी में बात करने का अनुरोध किया गया। उन वरिष्ठ ने तमिल सीखने की सलाह दी। अचानक दूसरे वरिष्ठ बोल पड़े ऐसी अनुचित राय मत दीजिए। इन लोगों का दो तीन वर्ष में स्थानांतरण हो जाता है।। तमिल एक कठिन भाषा है यह नहीं सीख पाएंगे। बेशक आप।हिंदी सीख लीजिये, यह एक आसान भाषा है। दिलचस्प बात यह कि दोनों तमिल भाषी थे और अच्छी हिंदी में बातें कर रहे थे। यह जानकारी एक तीसरे वरिष्ठ ने देते हुए कहा कि फोनों तमिल।भाषी हैं पर बातें हिंदी में कर रहे।

तीसरा ज्वलंत उदाहरण। मुम्बई से चेन्नई यात्रा करते समय एक भजन मंडली समूह मिला जो तमिल भजन करने मुंबई गय्या था। उस समूह के मुखिया ने कहा कि मुम्बई जाकर यह ज्ञान हुआ कि हिंदी के बिना गुजारा नहीं। हम सब हिंदी सीखेंगे। 

नई पीढ़ी स्टाफ के रूप में हिंदी सीखने की लालसा लिए है। ख़ुद के प्रयास से ऐसे स्टाफ हिंदी बोलने का प्रयास भी करते हैं किंतु इनकी अभिला अभी तक अधूरी है। चेन्नई में कार्यरत स्टाफ हिंदी सीखने को तत्पर हैं किंतु इन्हें कार्यालयीन समय में हिंदी सीखने का प्रयास नदारद है। प्राज्ञ, प्रवीण और प्रबोध प्रशिक्षण की जानकारी नहीं और न ही प्रोत्साहन राशि के बारे में अवगत हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि चेन्नई चंदनीय सुगंध और शीतलता को लिए है बस एक दमदार और प्रभावशाली राजभाषा का तिलक लगानेवाला चाहिए।
धीरेन्द्र सिंह

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