गुरुवार, 27 जनवरी 2011

राजभाषा सम्मेलन के अनछुए पहलू

राजभाषा के वृहद और व्यापक समीक्षा और संभावनाओं के लिए राजभाषा सम्मेलन का चलन है. प्रायः सभी कार्यालय प्रतिवर्ष राजभाषा सम्मेलन का आयोजन करते हैं. इस आयोजन की प्रमुख विशेषता केवल आयोजन की विभिन्न प्रस्तुतियों तक ही सिमित नहीं होती है बल्कि आयोजन की तैयारियों में भी विशेषताएं होती हैं. यदा-कदा सम्मेलन के निष्कर्षों का उल्लेख हुआ है किन्तु सम्मेलन के आदि और अंत पर न तो कोई चर्चा हुई है और न ही कहीं इसका उल्लेख है इसलिए यह आवश्यक लगा कि राजभाषा सम्मेलन के कुछ अनछुए पहलुओं की चर्चा की जाये.

अंक के लिए आवश्यक है कई कार्यालय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन राजभाषा के विभिन्न पक्षों पर गंभीरतापूर्वक चर्चा करने के बजाय इसलिए करते हैं कि इसके आयोजन पर राजभाषा पुरस्कार प्राप्ति के लिए अंक मिलते हैं. ऐसे कार्यालय इस मत के अनुयायी होते हैं कि पत्र,परिपत्र आदि के द्वारा वे सफलतापूर्वक राजभाषा सन्देश को प्रेषित और कार्यान्वित कर सकते हैं इसलिए सम्मेलन उन्हें इंक प्राप्ति के लिए एक आवश्यक औपचारिकता लगती है जिसका निर्वहन करते हैं. अभी तक ना तो कोई ऐसा आधार है और ना ही कोई सर्वेक्षण है जिसके आधार पर अंक के लिए आयोजित सम्मेलनों का प्रतिशत बतलाया जा सके इसलिए बस चर्चा ही काफी है.

रमणीय स्थल का चयन सम्मेलन आयोजन का प्रथम चरण है स्थल का चयन. अब तक के राजभाषा सम्मेलनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आयोजन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है रमणीय स्थल का चयन. सम्मेलन की कार्यसूची में बहुत कम लोगों की रूचि होती है ज्यादातर लोग आयोजन स्थल की रमणीयता के अध्हर पर सम्मेलन की सफलता को आंकते हैं. रमणीय स्थल से दो लाभ होते हैं एक लाभ यह कि सम्मेलन में सम्मिलित होने कि एक ललक उत्पन्न होती है और दूसरा लाभ यह कि परिवार का सदस्य भी साथ चलने को तैयार हो जाता है जिसे दूसरे शब्दों में सरकारी खर्चे पर पारिवारिक भ्रमण भी कहा जा सकता है. इसे ही कहते हैं आम के आम और गुठलियों के दाम.

संचालन का दायित्व – कुछ समय पहले तक कार्यालय के किसी राजभाषा अधिकारी का ही यह दायित्व होता था कि वह सम्मेलन के सत्रों का संचालन करे किन्तु हाल-फिलहाल संचालन में भी रमणीयता लाने कि परम्परा आरम्भ हो गयी है अतएव अब यह आवश्यक नहीं कि संचालनकर्ता राजभाषा से बखूबी परिचित हो बल्कि जरुरी यह हो गया है कि संचालनकर्ता अपने रूप-रंग और अदा से सम्मेलन को कितना मोहित कर सकता है. रमणीय स्थल पर यदि मोहक संचालनकर्ता ना हो तो भला सोने पर सुहागा कैसे होगा. यही कारण है कि संचालन का कार्यभार यथासंभव युवती को सौंपा जता है भले ही राजभाषा उससे कोसों दूर क्यों ना हो. संचालन में होनेवाली त्रुटियाँ क्षम्य हो जाती हैं वैसे भी ज्ञात है कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं.

पंजीकरण – सम्मेलन का प्रथम चरण पंजीकरण का होता है जहाँ प्रतिभागी पाना नाम, पदनाम, कार्यालय का पता आदि दर्ज कर अपना हस्ताक्षर करते हैं. पंजीकरण के समय प्रतिभागी अति सक्रिय रहते हैं क्योंकि इसी समय प्रतिभागियों को बैग आदि प्रदान किया जाता है. अति सक्रियता इसलिए रहती रहती है कि यह अंदेशा रहता है कि कहीं बैग समाप्त ना हो जाये और सम्मेलन कि एकमात्र प्रत्यक्ष निशानी से प्रतिभागी वंचित ना रह जाये फिर भले ही इसके लिए लाइन तोड़नी पड़े या धक्का-मुक्की करना पड़े सब जायज है. यहं पर यह उल्लेख करना भी जायज है कि कुछ ऐसे प्रतिभागी भी होते हैं जो इस सिद्धांत के अनुयायी होते हैं कि यदि एक बैग लिया तो क्या लिया मज़ा तो तब है जब एक से अधिक बैग प्राप्त किया जाये. भीड़ से अलग दिखने के लिए अतरिक्त प्रयास तो आवश्यक होता है. इसी सिद्धांत के अनुआयियों द्वारा पंजीकरण को एक युद्धभूमि में परिवर्तित करने का प्रयास किया जाता है और आयोजक चाहे जितनी युगत लगा ले वह सबको बैग नहीं दे पाता और खेदपूर्वक बैग समाप्त होने कि सूचना देनी पड़ती है.

अल्पाहार का समय – चाय की प्यालियों के संग सब मिलते हैं और आपसी कुशल-मंगल के बाद इस तैयारी में लग जाते हैं की दोपहर के भोजन के बाद किस दर्शनीय स्थल पर सुविधापूर्वक पहुंचा जा सकता है. दर्शनीय स्थल पर जाने की टोलियाँ बन्ने लगती हैं और यात्रा के विभिन्न पक्षों पर चर्चा होने लगती है और इस चर्चा के दौरान यह भी ज्ञात नहीं रहता कि सम्मेलन कि अगली कार्यवाई प्राम्भ हो चुकी है. बार-बार के बुलावे के बाद कुछ लोग अपने स्थान पर पहुँचते हैं. यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि दोपहर के भोजन के बाद सम्मेलन से चले जाना एक आम बात है जिसके दो प्रमुख कारण हैं, पहला कारण यह कि भोजन हो जाता है तथा दूसरा कर्ण यह कि भोजन के बाद प्रौद्योगिकी का सत्र होता है जिसे समझ पाना आसान नहीं होता है इक्योंकी ऐसे लोग प्रौद्योगिकी से काफी दूर होते हैं.

दोपहर का भोजन – यद्यपि सम्पूर्ण कार्यक्रम कि जानकारी सभी प्रतिभागियों के पास उपलब्ध होती है इसलिए जैसे ही भोजन के लिए कुछ समय शेष रहता है किछ लोग कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर भोजन पर टूट पड़ते हैं. जल्दीबाजी इसलिए करते हैं कि भोजन कि कतार से बच जाते हैं और जल्दी से अपने भोजन समाप्त कर भ्रमण के लिए प्रस्थान कर पाते हैं.

ज्यादातर लोगों का राजभाषा सम्मेलन से बस इतना ही अनुराग रहता है. इसके बावजूद भी राजभाषा सम्मेलन सफल और प्रभावी होते हैं. यदि थोड़ी और गंभीरता आ जाये तो राजभाषा कार्यान्वयन बेहद प्रभावशाली और परिणामदायी हो जायेगी.







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7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय धीरेन्द्र सिंह जी
    आपका कहना सही है सर ऐसा अक्सर होता है ..और हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं ....आपने बहुत सूक्षमता से प्रकाश डाला है ....आपका आभार

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  2. आदरणीय धीरेन्द्र सिंह जी नमस्कार
    बिलकुल सही लिका आपने ..

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  3. आपने सही कहा है।
    यह किसी एक सम्मेलन की बात नहीं है....सभी कार्क्रम, कांन्फ्रेंस, मीटिंग वगैरह-वगैरह की बात है....जितनी लुभावनी जगह उतना सफल आयोजन...

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  4. क्या इसमे प्रदेश सरकारों के कार्यालय भी शामिल हैं ?

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  5. श्री देवेन्द्र जी सामान्यतया यह केंद्रीय सरकार, राष्ट्रीयकृत बैंकों तथा उपक्रमों पर लागू है।

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  6. आवश्‍यक है इस प्रकार का एक आयोजन ....

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