शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

राजभाषा और हिदी का द्वंद

राजभाषा और हिंदी में फर्क कर पाना केन्द्रीय कार्यालय में कार्यरत कर्मियों के लिए भी संभव नहीं है तब ऐसी स्थिति में विभिन्न कार्यालयों में जानेवाले नागरिकों से राजभाषा में अधिकाधिक कार्य करने की अपेक्षा स्वत: बौनी प्रतीत होने लगती है। हाल ही में एक संगोष्ठी में सम्मिलित होने का अवसर मिला जिसमें केन्द्रीय कार्योलयों, बैंकों, आदि के प्रतिनिधि सहभागी थे। संगोष्ठी राजभाषा कार्यान्वयन के एक पक्ष पर थी। भव्य आरम्भिक औपचारिकताओं के बाद संगोष्ठी के पहले वक्ता ने बोलचाल की हिंदी पर बोलना आरम्भ किया जो मेरे लिए आश्चर्यजनक था फिर भी स्वंय को सांत्वना देते हुए अगले वक्ता की प्रतीक्षा करने लगा इस उम्मीद के संग कि शायद अगला वक्ता हिंदी के बजाए राजभाषा हिंदी पर बोले किंतु मेरी प्रतीक्षा वक्ता दर वक्ता बढ़ती चली गई।  सभी वक्ता बोलचाल की हिंदी,विभिन्न चैनलों की हिंदी, बॉलीवुड की हिंदी, तमिलनाडु की हिंदी आदि पर बोले जा रहे थे और तालियॉ भी बटोरे जा रहे थे। कृपया इस संगोष्ठी को सामान्य संगोष्ठी मत समझिएगा काफी दिग्गज पदनाम मंच को सुशोभित कर रहे थे। हद तो तब हो गई जब राजभाषा अधिकारी भी आकर राजभाषा विषय पर बोलचाल की हिंदी की विशेषता, लोकप्रियता, विस्तार आदि के बारे में बोल गए और मेरे समक्ष एक ज्वलंत प्रश्न छोड़ गए कि बोलचाल की हिंदी और कार्यालयों में लिखित राजभाषा हिंदी के अंतर को इन वक्ताओं ने क्यों नहीं समझा ?

किसे दोषी ठहराया जाए, किस स्तर पर हुई चूक की ओर इंगित किया जाए आदि अनेकों प्रश्न मुझे झकझोरने लगे। आखिर में संगोष्ठी के विषय़ तथा वक्ताओं की प्रस्तुति पर अपने विचार आमंत्रित करने के लिए मुझे भी बुलाया गया फिर क्या था विचारों का बादल फट पड़ा और मेरी सोच काफी तीखे अंदाज़ में संगोष्ठी में पसर गई। दो-तीन लोग मेरे बाद भी बोलने वाले थे इसलिए मैं उत्सुक था अपने विचारों पर तत्काल प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए। वह घड़ी भी आ गई तथा मेरे बाद के वक्ता ने कहा कि राजभाषा कार्यान्वयन के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है तथा जोश और उत्साह में राजभाषा कार्यन्वयन तत्काल प्रभाव नहीं दे पाता है आदि-आदि। मैं यह सुनकर हतप्रभ रह गया और कितने वर्ष, और कितना धैर्य ? राजभाषा की संगोष्ठी में इस तरह के विचार यदि प्रस्तुत किए जाएंगे तो क्या इससे राजभाषा कार्यान्वयन की गति प्रभावित नहीं होगी ? क्या इससे राजभाषा से जुड़े कर्मियों का उत्साह प्रभावित नहीं होगा  ? क्यों नहीं उस मंच से यह स्पष्ट किया गया कि बोलचाल की हिंदी, चैनलों की हिंदी, बॉलीवुड की हिंदी से कार्यालयों में लिखी जानेवाली हिंदी में फर्क होता है। सरकारी कामकाज की शब्दावली ना तो बोलचाल की शब्दावली से समरसता स्थापित कर सकती है और ना ही बोलचाल के शब्दों को राजभाषा में बेधड़क पिरोया जा सकता है। राजभाषा कार्यान्वयन की यह कितनी सामान्य बात है जिससे अभी भी सरकारी कार्यालयों के अधिकांश स्टाफ अनजान हैं। इन कार्यालयों के राजभाषा विभाग को इस दिशा में सार्थक प्रयास कर बोलचाल की हिंदी और कार्यालयों में लिखित हिंदी के अंतर को स्पष्ट करना होगा वरना हिंदी और राजभाषा का यह द्वंद राजभाषा कार्यान्वयन को काफी क्षत्ति पहुंचा सकता है।

यदि आपको भी कभी इस तरह की संगोष्ठी में उपस्थित होने का अवसर मिले और राजभाषा की पटरी पर बोलचाल हिंदी की गाड़ी दौड़ाई जाए तो कृपया हस्तक्षेप का लाल संकेत देकर उसे रोकिएगा। केवल रोकिएगा ही नहीं बल्कि राजभाषा की पटरी पर कामकाजी हिंदी की गाड़ी को चला भी दीजिएगा। राजभाषा कार्यान्वयन में यह आपका अद्वितीय योगदान होगा। राजभाषा कार्यान्वयन में जब तक आपका खुलकर सहयोग नहीं होगा तब तक इस तरह की गंभीर त्रुटियॉ जारी रहेंगी।


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1 टिप्पणी:

  1. धीरेन्द्र जी
    राजभाषा हिंदी का स्वरूप कॆसा हो?इसके संबंध में सामान्य कर्मचारी क्या,अधिकारियों तक को जानकारी नहीं हॆ.जिनको कुछ जानकारी हॆ भी वह उच्चाधिकारियों से इस संबंध में अपेक्षित सहयोग न मिल पाने के कारण व अपने व्यक्तिगत हितों को ध्यान में रखकर-मॊन धारण कर लेते हॆं.राजभाषा की यह स्थिति देखकर पीडा तो हम जॆसे को होती हॆ-जो इस भाषा से भावनात्मक स्तर पर जुडे हॆं.

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