बुधवार, 25 अगस्त 2010

देवनागरी लिपि विरूद्ध रोमन लिपि हिन्दी

हिंदी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने तथा इंटरनेट तथा एसएमएस के बढ़ते जाल ने हिंदी की देवनागरी लिपि को चुनौती देना आरम्भ कर दिया है। यह चुनौती है रोमन लिपि में हिंदी लिखने की प्रक्रिया की शुरूआत। प्राय: इंटरनेट और मोबाइल द्वारा रोमन लिपि में हिंदी लिखने का चलन दिखलाई पड़ने लगा है। लिखित हिंदी की यह समस्या यद्यपि अभी अपने आरम्भिक चरण में है किन्तु चिंताजनक बात यह है कि रोमन लिपि का उपयोग हिंदी लिखने की शैली युवा पीढ़ी में तेज़ी के साथ प्रसारित हो रही है। यदि इस दिशा में सामाजिक, व्यापारिक तथा प्रौद्यौगिकी स्तर पर पहल नहीं की गई तो यह संभावना प्रतीत हो रही है कि भविष्य में देवनागरी लिपि के संग रोमन लिपि की हिंदी अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दे। आखिरकार भाषा की जीवंतता उसकी उपयोगिता पर भी निर्भर करती है।

सामाजिक स्तर पर पहल के लिए देवनागरी लिपि के प्रयोग, प्रचार तथा प्रसार के लिए समाज के प्रत्येक स्तर पर जागरूकता लाई जाए। प्रसंगवश उल्लेख कर रहा हूं कि हिंदी के एक प्राध्यापक रोज सुबह 7 बजे के लगभग मुझे सूक्तियॉ एसएमएस करते हैं जो केवल अंग्रेजी में होती हैं। मैंने अब तक किसी भी रूप में अपनी आपत्ति नहीं दर्शाई है क्योंकि वह मूलत: अंग्रेजी में होती है परन्तु मेरे मन में यह विचार ज़रूर आता है कि प्राध्यापक कभी हिंदी में सूक्तियॉ क्यों नहीं प्रेषित करते हैं। यह लिखते समय यह विचार ऊभरा है कि यदि मैं उन्हें 2-4 सूक्तियॉ देवनागरी लिपि में प्रेषित कर दूँ तो शायद इससे लाभ हो। इस तरह के लेख लिखने और सोचने से तो अच्छा है हिंदी में एसएमएस कर देना। यद्यपि इस प्रकार की पहल से एक साथ व्यापक परिवर्तन नहीं नज़र आता है किन्तु परिवर्तन होता ज़रूर है। रोमन लिपि में हिंदी का लेखन प्रमुखतया एसएमएस तथा ई-मेल पर ही दिखलाई पड़ती है। य़दि इस क्षेत्र में देवनागरी लिपि का उपयोग सतत बढ़ाया जाए तो उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त होंगे।

व्यापारिक स्तर पर देवनागरी लिपि का प्रयोग एसएमएस तथा ई-मेल में लगातार बढ़ रहा है। भले ही इस वृद्धि का प्रमुख कारण व्यापारिक लाभ हो किन्तु यह उल्लेखनीय है कि व्यापारिक स्तर पर देवनागरी लिपि का प्रयोग यह प्रमाणित करता है कि अपनी बात को देवनागरी लिपि का प्रयोग कर व्यापकता से पहुंचाया जा सकता है। व्यापारिक प्रतिष्ठानों का बोर्ड अंग्रेजी में लगाना एक आवश्यकता है, एक फैशन है अथवा एक आदत है यह एक विवाद का विषय हो सकता है किन्तु अंग्रेजी में बोर्ड लगता जरूर है। जिस स्थान पर अंग्रेजी का संबंध नहीं है उसके बोर्ड भी जब अंग्रेजी में दिखते हैं तब आश्चर्यय होता है जैसे कि कबाड़ी की दुकान, जहॉ पर अंग्रेजी में न कुछ लिखा जाता है और न ही अंग्रेजी बोलनेवाले ही वहॉ रहते हैं। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि अंग्रेजी में बोर्ड प्रदर्शन आवश्यकता से कहीं अधिक चलन से प्रभावित है। चलन में परिवर्तन किया जा सकता है जबकि आवश्यकता बनी रहती है।

प्रौद्योगिकी के बारे में ना तो कुछ कहा जा सकता है और ना ही उसकी गति को पकड़ी जा सकती है। पल-पल में परिवर्तन होते रहता है। इस प्रौद्योगिकी की दुनिया में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएं भी अपना स्थान बनाए हुए हैं और उनमें भी निरन्तर प्रगति हो रही है किन्तु ब्लैकबेरी द्वारा अपने मोबाइल में हिंदी की सुविधा न दिया जाना कभी-कभी प्रतिकूल परिस्तितियॉ निर्मित कर देती हैं। यद्यपि देवनागरी लिपि का प्रयोग कर अपने कार्य करनेवाले अधिकांश लोग सीमित रूप में ही प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हैं इसलिए फिलहाल देवनागरी लिपि में प्रौद्योगिकी का भरपूर सहयोग है।

उक्त कथ्यों तथा तथ्यों के बावजूद भूमंडलीकरण के दौर में एक भाषा दूसरी भाषा पर आक्रमण कर रही है तथा विकास की तेज गति भाषाओं के रूप-रंग में परिवर्तन भी कर रही है। भाषा वैज्ञानिकों की राय है कि इस परिवर्तन से बचा नहीं जा सकता है यद्यपि इसके व्यापक प्रतिकूल प्रभाव से बचा जा सकता है। देवनागरी लिपि के बजाए रोमन लिपि में हिंदी को लिखा जाना एक व्यापक परिवर्तन की ही आहट है। हिंदी के लिए रोमन लिपि कहीं आवश्यकता भी प्रतीत होती है जैसे पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से बातें करना। उस स्थिति में व्यक्ति क्या करे जब एक को देवनागरी लिपि न आती हो और दूसरे को उर्दू के शब्दों का ज्ञान ना हो। हिंदी फिल्मों का व्यापक प्रचार-प्रसार बोलचाल की हिन्दी को विश्व के कई देशों में प्रचारित-प्रसारित कर रही है किन्तु इसके साथ देवनागरी लिपि का प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है परिणामस्वरूप सहज राह रोमन लिपि में हिंदी ही मिलती है। प्रौद्योगिकी के युग में राष्ट्र की सीमाएं नहीं रह गई है सूचनाओं आदि की सम्प्रेषण तेज गति से हो रहा है और सम्पूर्ण विश्व की भाषाओं में परिवर्तन दिखलाई पड़ रहा है। इसके बावजूद भी देवनागरी लिपि के संग हिंदी से जुड़े सभी लोगों को यह चाहिए कि यह सुनिश्चित किया जाए कि देवनागरी लिपि का ही प्रयोग हो। इससे देवनागरी लिपि का प्रचार-प्रसार होगा। यह इसलिए कहा जा रहा है कि अधिकांश स्थितियॉ तो आदत से जुड़ी होती है। यह भी एक अजीब स्थिति है कि इस ब्लॉग का नाम राजभाषा देवनागरी और रोमन लिपि दोनों में है, ऐसा क्यों? यहॉ पर तो देवनागरी लिपि से भी काम चल सकता था। इसका उत्तर है कि पहले इस ब्लॉग का नाम केवल देवनागरी लिपि में था किन्तु राजभाषा से जुड़ी द्विभाषिकता की आदत ने मुझे राजभाषा रोमन लिखने के लिए विवश किया, वरना मुझे यह नाम अधूरा प्रतीत हो रहा था।




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2 टिप्‍पणियां:

  1. धीरेंद्र जी की चिंता शतप्रतिशत सही और जायज़ है। रोमन वर्णमाला और रोमन लिपि अत्यंत दोषपूर्ण हैं। जिन ध्वनियों का हम उपयोग कर सकते हैं उन्हें लिखने में नितांत असमर्थ है। जो लोग रोमन लिपि का इस्तेमाल करके हिंदी लिख रहे हैं या हिंदी लिखने के लिए रोमन प्रणाली का उपयोग करने की सलाह देते हैं वे जाने अनजाने हिंदी भाषा व संस्कृति का अहित कर रहे हैं। मुझे तो बड़ा आश्चर्य होता है जब हिंदी अधिकारी भी ट्रांसलिटरेशन पद्धति द्वारा हिंदी टाइप करने की सलाह देते हैं। मैं इसके सख्त ख़िलाफ़ हूं और अपने हर कार्यक्रम में हिंदी लिपि और लेखन पद्धति पर ही बल देता हूं। इस विषय पर व्यापक और गंभीरता से वैज्ञानिक चर्चा की ज़रूरत है। कंप्यूटर पर हिंदी टाइपिंग के लिए केवल दो ही लेआउट का उपयोग किया जाए और इन्हीं का प्रशिक्षण दिया जाए।

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  2. घटिया और बदजात भाषा है अग्रेज़ी

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