गुरुवार, 24 जून 2010

राजभाषा और न्यायपालिका

विश्व  के सबसे बड़े जनतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका हमेशा से उल्लेखनीय और प्रशंसनीय रही है परन्तु यह भी एक तथ्य है कि आम जनता को सामान्यतया उच्च न्यायालय की भाषा हमेशा अपरिचित और अबूझी लगती रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि उच्च न्यायालय में अंग्रेजी भाषा का ही वर्चस्व है। भारत के संविधान में कहा गया है कि -

अनुच्छेद 210: विधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा - (1) भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधान-मंडल में कार्य राज्य की राजभाषा या राजभाषाओं में या हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा

परंतु, यथास्थिति, विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद् का सभापति अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को,जो पूर्वोक्त भाषाओं में से किसी भाषा में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा ।

अध्याय 3 - उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा

अनुच्छेद 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में और अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा--

(1) इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा

उपबंध न करे तब तक--

() उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी भाषा में होंगी,

() (i) संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में पुरःस्थापित किए जाने वाले सभी विधेयकों या प्रस्तावित किए जाने वाले उनके संशोधनों के,

(ii) संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा पारित सभी अधिनियमों के और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित सभी अध्यादेशों के ,और

(iii) इस संविधान के अधीन अथवा संसद या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निकाले गए या बनाए गए सभी आदेशों, नियमों, विनियमों और उपविधियों के, प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे।

(2) खंड(1) के उपखंड () में किसी बात के होते हुए भी, किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है,हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगाः

परंतु इस खंड की कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश को लागू नहीं होगी।

(3) खंड (1) के उपखंड () में किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी राज्य के विधान-मंडल ने,उस विधान-मंडल में पुरःस्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड के पैरा (iv‌) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिए अंग्रेजी भाषा से भिन्न कोई भाषा विहित की है वहां उस राज्य के राजपत्र में उस राज्य के राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद इस अनुच्छेद के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जाएगा।

संविधान के उपरोक्त अनुदेशानुसार उच्चतम न्यायालय की भाषा तो अंग्रेजी रहेगी किन्तु उच्च् न्यायालय की भी भाषा अंग्रेजी बनाए रखना कितना प्रासंगिक है ? इस प्रकार के अनेकों प्रश्न समय-समय पर उठते रहते हैं तथा एक बौद्धिक हलचल मचाते रहते हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल (प्रशासन) ने वकीलों के एसोसिएशन की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल को भेजे ज्ञापन पत्र में कहा है कि उच्च न्यायालय में हिंदी को लेकर विचार किया जा रहा है लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया है। यद्यपि राजस्थान, इलाहाबाद और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में इसका प्रयोग नहीं किया जा रहा। जिस बात को विधि महाविद्यालयों की कक्षाओं से उठानी चाहिए उसे न्यायालय परिसर में उठाने से कितना लाभ मिल पाएगा यह विचारणीय है। यह एक कटु सत्य है कि हिंदी में विधि की स्तरीय पुस्तकों की संख्या बहुत कम हैं और इससे भी अधिक चिंता वाली बात यह है कि विधि विषय पर हिंदी में मूल लेखन ना के बराबर है। विधि संबंधी हिंदी में एक भी लोकप्रिय पत्रिका नहीं है। इस तरह के अनेकों मुद्दे हिंदी को विधिक भाषा बनने से रोके हुए है। आवाजें इन क्षेत्रों में उठनी चाहिए, हलचलें यहॉ होनी चाहिए।

न्यायपालिका में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व इतना अधिक है कि इस प्रकार की भी टिप्पणियॉ की जाती हैं कि अदालतों की भाषा हिन्दी करने से देश की एकता और अखंडता प्रभावित होगी, इससे भाषाई अहमवाद फैलेगा और पूर देश में राजनैतिक तथा कानूनी बदअमनी का माहौल बनेगा। यह ध्यान रखना चाहिए कि देश के हर नागरिक और हर कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित किए गए कानून को समझने का अधिकार है। इसके लिए एक ही भाषा है, और वह है अंग्रेजी। इस प्रकार की टिप्पणी करनेवाले सामान्य जनता की भाषा हिंदी को भूलकर अंग्रेजी की जब इस उन्मुक्तता से चर्चा करते हैं तो उनकी सोच पर संदेह होने लगता है। जिस देश की एकता, संपर्क आदि को बनाए रखने में हिंदी अपने आप को प्रमाणित कर चुकी है उस भाषा के लिए ऐसी टिप्पणी ना जाने क्यों गले के नीचे नहीं उतरती है। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि जिस भाषा में जज प्रवीण नहीं है, क्या उस भाषा में जज फैसला दे सकता है ? यदि ऐसा हुआ तो इससे कानून के प्रावधानों का गलत अर्थ निकलेगा। यह तर्क व्यवहारिक है अतएव इसके लिए न्यायपालिका में मुंबई उच्च न्यायालय की अनुशंसा जैसी तैयारी होनी चाहिए जिसमें यह उल्लेख है कि राज्य सरकार सिविल जज तथा न्यायपालिका के प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट पद हेतु आवेदन करनेवाले अभ्यर्थियों का मराठी में परीक्षा लेने की अनुमति प्रदान करे।

हाल ही में मुंबई उच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश तथा न्यायालय के सभी न्यायाधीशों से यह अनुरोध किया है कि ऐसी प्रणाली तलाश की जाए कि मराठी दस्तावेजों के अंग्रेजी अनुवाद के बगैर याचिका मराठी में दायर की जा सके। इस विषय पर मुंबई उच्च न्यायलय के न्यायाधीशों ने कहा कि उन्होंने पाया है कि अंग्रेजी अनुवाद की तुलना में मराठी मूल की प्रतियॉ ज्यादा विश्वसनीय रही हैं। यह मात्र उदाहरण स्वरूप है जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका को भाषा मुद्दे पर गहन विचार कर तदनुरूप कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि यह समय की मॉग है। देश का 26/11 के चर्चित मुकदमे के न्यायाधीश एम.एल. तहलियानी के उर्दू ज्ञान ने मुकदमे के कठिन क्षणों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की क्योंकि अभियुक्त को उर्दू भाषा ही आती थी। इस तरह के अनेकों तथ्य हैं जो दर्शाते हैं कि न्यायपालिका को क्रमश: हिंदी को उच्च न्यायालय में स्थापित करने हेतु प्रयास आरंभ करना चाहिए।

यह सर्वविदित तथ्य है कि न्यायपालिका में हिंदी लाने के लिए विधि महाविद्यालयों तथा विधि के विद्वानों की सार्थक पहल और प्रयास के बिना विधि क्षेत्र में प्रभावशाली एवं जनोपयोगी हिंदी की कल्पना नहीं की जा सकती है। इस कार्य को निम्नलिखित रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है –

1. विधि विषयक सहज, सुबोध एवं बोधगम्य हिंदी पुस्तकों की उपलब्धता।

2. हिंदी में विधि विषयक हिंदी पत्रिका का प्रकाशन।

3. विधि महाविद्यालयों में विधि एव हिंदी को लेकर एक कार्यशील पहल तथा प्रयास जिसमें विधि संकाय सहित विधि विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता हो।

4. विधि शब्दावली का नियमित प्रकाशन जिसमें हिंदी में प्रयोग किए जा रहे अद्यतन शब्दावलियॉ नियमित रूप से सम्मिलित की जाती रहें।

5. विभिन्न कार्यालयों द्वारा अपनी गृहपत्रिकाओं में हिंदी में विधि विषयक लेखों का समावेशन तथा विधिक लेखन को प्रोत्साहन।

6. न्यायालयों में अधिवक्ताओं द्वारा हिंदी कार्य।

उक्त प्रयासों से राजभाषा कामकाज में विधिक लेखन आदि को बल मिलेगा तथा विभागीय विधिक कार्रवाईयों में हिंदी में अनगढ़ अनुदित भाषा के बजाए क सहज, स्वाभाविक हिंदी भाषा का प्रवाह होगा जिसका प्रत्यक्ष सबसे अधिक लाभ कर्मचारियों को होगा।

धीरेन्द्र सिंह







2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर और उपयोगी आलेख। न्यायिक कार्य का जनता की भाषा में होना अनिवार्य है। न्याय यदि पक्षकारों की भाषा में नहीं होता है तो वह अन्याय होगा।

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  2. "यह ध्यान रखना चाहिए कि देश के हर नागरिक और हर कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित किए गए कानून को समझने का अधिकार है। इसके लिए एक ही भाषा है, और वह है अंग्रेजी।" इस प्रकार की टिप्पणी करने वाला व्यक्ति कानून और अंग्रेज़ी दोनों ही नहीं समझता है। उसकी मानसिकता अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ दोनों का गुलाम हो सकती है। हाई कोर्ट के कोर्ट चैंबर से बाहर परिसर में वकीलों और जजों की भाषा अंग्रेज़ी नहीं प्रादेशिक भाषा ही होती है। अतः भारतीय भाषाओं में कोर्टों का कार्य संभव क्यों नहीं है? सभी राज्यों में लोवर कोर्टों में अधिकतर मामले राज्य की भाषा में ही दाखिल किए जाते हैं। फिर अंग्रेज़ी की बंदिश कहां है। दर असल, हमीं नहीं चाहते कि कोर्टों की भाषा देशी भाषाएं हों।

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