रश्मियों सी गति मिली
सूरज जैसा आब मिला
झिलमिल सांझ अंधेरे में
एक लुढ़कता ख़्वाब मिला
डाली लचक झूमकर गाए
विहंग वृंद भी चहचहाए
पुष्प गंध-रंग बिखराए
गालों पर लट पेंग लगाए
हरी घास की कोमलता में
धड़कन का अहसास मिला
नयनों की राहों को
राही का विश्वास मिला
और उतरते सूरज से
धरती को अपना प्यार मिला
खुशकिस्मत मिल बातें करें
किस्मत से अपना यार मिला।
धीरेन्द्र सिंह.
बुधवार, 18 फ़रवरी 2009
यार मिला
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कविता
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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