बुधवार, 18 फ़रवरी 2009

यार मिला

रश्मियों सी गति मिली
सूरज जैसा आब मिला
झिलमिल सांझ अंधेरे में
एक लुढ़कता ख़्वाब मिला

डाली लचक झूमकर गाए
विहंग वृंद भी चहचहाए
पुष्प गंध-रंग बिखराए
गालों पर लट पेंग लगाए

हरी घास की कोमलता में
धड़कन का अहसास मिला
नयनों की राहों को
राही का विश्वास मिला

और उतरते सूरज से
धरती को अपना प्यार मिला
खुशकिस्मत मिल बातें करें
किस्मत से अपना यार मिला।

धीरेन्द्र सिंह.

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