सोमवार, 22 सितंबर 2025

हिंदी के सिपाही - गौतम अदाणी


 हिंदी के सिपाही - गौतम अदाणी


अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी दिनांक 22 सितंबर 2025 को एक निजी चैनल पर लाइव थे। आज रुककर अदाणी को सुनने का मन किया इसलिए चैनल नहीं बदला। अंग्रेजी में चार-पांच वाक्य बोलने के बाद अंग्रेजी में बोले गए वाक्यों को अदाणी ने हिंदी में कहा वह भी काव्यात्मक रूप में। यह सुनते ही स्क्रीन पर मेरी आँख ठहर गयी। अदाणी ने फिर अंग्रेजी में कहा और भाव और विचार को काव्यात्मक हिंदी में प्रस्तुत किये। ऐसा चार बार हुआ। आरम्भ से नहीं देख रहा था अचानक चैनल पर टकरा गया था।


सत्यमेव जयते कहकर अदाणी ने अपना संबोधन पूर्ण किया और मैं तत्काल इस अनुभूति को टाइप करने लगा। हिंदी दिवस 14 सितंबर को अपनी महत्ता जतलाते और विभिन्न आयोजन करते पूर्ण हुआ किन्तु इस अवधि में कोई ऐसा व्यक्तित्व नहीं मिला जिसे टाइप करने की अब जैसी आतुरता जागृत हुई हो। अंग्रेजी में बोलनेवाले किसी भी चेयरमैन को अंग्रेजी और फिर काव्य में उसी भाव को दो या अधिकतम चार पंक्तियों में बोलते अदाणी से पहले किसी को नहीं देखा।


क्यों टाइप कर रहा हूँ इस अनोखी घटना को ? एक श्रेष्ठतम धनाढ्य गौतम अदाणी हैं इसलिए ? यह सब नहीं है इस समय विचार में बस हिंदी है। हिंदी यदि अदाणी जैसे चेयरमैन की जिह्वा पर काव्य रूप में बसने लगे तो हिंदी कार्यान्वयन में इतनी तेजी आएगी कि स्वदेशी वस्तुओं पर स्वदेशी भाषा और विशेषकर हिंदी होगी। एक सुखद संकेत मिला और लगा हिंदी अपना स्थान प्राप्त कर भाषा विषयक अपनी गुणवत्ता को प्रमाणित करने में सफल रहेगी। मैंने चेयरमैन गौतम अदाणी के मुख से अपने संबोधन में कई बार हिंदी कविता का उपतोग करने की कल्पना तक नहीं  थी। 


धीरेन्द्र सिंह

22.09.2025

15.37

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गुरुवार, 18 सितंबर 2025

हँसीबभी कहां खुशी के लिए

हंसी भी कहाँ, खुशी के लिए


वर्षों ऑनलाइन जीवन का एक सक्रिय भाग रहने के कारण यह स्पष्ट हुआ कि अधिकांशतः झूठी हंसी आदत सी हो गयी है। किसी भी पोस्ट पर की गई टिप्पणियों की यदि आवधिक समीक्षात्मक विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि गिनी-चुनी प्रतिक्रिया ही हृदय और मस्तिष्क की उपज होती है शेष मात्र औपचारिकता होती है। इस प्रकार की औपचारिकताएं एक क्षद्म और आधारहीन छवि निर्मित करने के लिए किया जाता है। यह मौलिकता से किया गया छलावा है


क्यों शब्दों में दिखावा हो रहा है ? यदि किसी को व्यक्तिगत रूप से दिखावे से बचने का अनुरोध करें तो वह कभी नहीं मानेगा कि उसकी टिप्पणियां इमोजी आधारित दिखावा हैं। ऐसे लोग पोस्ट पर आना ही छोड़ देते हैं। सभी हिंदी समूह का यही दर्द है कि रचनाओं पर प्रतिक्रियाएं नहीं मिलती हैं। विभिन्न समूह के एडमिन आदि टिप्पणियों आदि के लिए कई युक्तिगों का प्रयोग करते हैं फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है। अब यहां यह भी कहा जा सकता है कि शीर्षक हंसी का है तो चर्चा प्रतिक्रिया की क्यों की जा रही है?


समूह के निष्क्रिय सदस्य अत्यधिक दुखी और निराश सदस्य हैं क्योंकि वह हैं या नहीं इससे कुछ उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। अपने अस्तित्व के प्रति उदासीन निष्क्रिय सदस्य मात्र समूह संख्या वृद्धि के कारक होते हैं। दूसरा वर्ग उन रचनाकारों का है जो अपनी रचना पोस्ट कर उससे कट जाते हैं न तो किसी दूसरे की पोस्ट पर दिखलाई पड़ते हैं और न ही अपने पोस्ट की टिप्पणियों का खयाल रखते हैं या उत्तर देते हैं। ऐसे सदस्य अवसाद रोग से पीड़ित होते हैं जो अपनी भावनाओं को अपनी रचना में उड़ेल निवृत्त हो जाते हैं।  यहां फिर प्रश्न उभरेगा कि शीर्षक हंसी की है तो चर्चा इन सदस्यों की क्यों ? असामाजिकता हिंदी समूह की एक बड़ी चुनौती है।


हंसते नहीं है अब लोग क्योंकि ऐसे लोगों की मान्यता है कि हंसना असामाजिक कृत्य है । यदि हंसते तो अपनी मांगों को अभिव्यक्त करते तथा दूसरों की भावनाओं से भी जुड़ते। ऐसे सदस्य जो तर्कहीन उटपटांग पोस्ट कॉपी कर अन्य समूह में पोस्ट करते है वह हास्य निर्मित करने का प्रयास करते हैं। खिलखिलाकर हंसे नहीं या ठहाका न लगाया तो दिन उदास सा बीत जाता है। आजकल लोग हंसना भूल रहे हैं जो एक समस्या है। हंसना बंद क्या कर दिए रचनाएं उबाऊ और थकाऊ आने लगी है और जबरदस्ती का लेखन लगने लगा है।


धीरेन्द्र सिंह

18.09.2025

20.22



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शनिवार, 13 सितंबर 2025

हिंदी दिवस - सिमटती संभावनाएं


हिंदी दिवस – सिमटती संभावनाएं


प्रति वर्ष 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सवी आयोजन केंद्रीय कार्यालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों, उपक्रमों में आयोजित किया जाता है। भारतीय संविधान में 14 सितंबर देवनागरी लिपि में हिंदी के राजभाषा रूप में दर्ज है। पंडित जवाहरलाल नेहरू जब भारत देश के प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने अंग्रेजी को सह-राजभाषा के रूप में संविधान में स्थान प्रदान किया। वर्तमान में राजभाषा हिंदी मात्र उत्सव स्वरूपा है और सभी सरकारी कार्यालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों तथा उपक्रमों में काम बेहिचक अंग्रेजी में हो रहा है।  इन कार्यालयों आदि में मूल कार्य हिंदी में हो इसके लिए गठित है राजभाषा विभाग जिसमें पदस्थ हैं राजभाषा अधिकारी तथा बैंकों, उवक्रमों में यह अधिकारी हिंदी को छोड़कर कार्यालय के अन्य कार्य खूब करते हैं। इस परिच्छेद में प्रमुख ध्यान देनेवाले तथ्य नेहरू और हिंदी या राजभाषा अधिकारी हैं।


उपरोक्त कार्यालयों में हिंदी या राजभाषा में कार्य करने के लिए संबंधित कार्यालय और उनके विभिन्न विभाग की प्रचुर शब्दावली है जो विवाह के एलबम की तरह उपयोग की जाती हैं। हिंदी में कार्य कैसे किया जाए इसके लिए प्रत्येक कार्यालय हिंदी कार्यशाला का आयोजन करता है जिसे मजाक में प्रशिक्षणार्थी “पेड़ हॉलिडे” के रूप में जानते हैं। कार्यालयों में विभिन्न प्रतियोगिताएं होती हैं जिनमें पिछले वर्ष भाग लिए हिंदीभाषी ही भाग लेते हैं कोई इतर मातृभाषा वाला स्टॉफ भाग नहीं लेता । 14 सितंबर के आसपास खूब प्रतियोगिताएं हिश् हैं, गायन, अभिनय, नृत्य आदि आयोजन होते हैं। 14 सितंबर को भव्य मंच सजता है और विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता पुरस्कार प्राप्त करते हैं। हिंदी का जयकारा विभिन्न भाषणों में लगता है और इस प्रकार हिंदी दिवस सम्पन्न होता है। कागज से लेकर कम्प्यूटर तक अंग्रेजी भाषा अपना एकक्षत्र साम्राज्य बनाए रखती है। इस प्रकार अमन-चैन से भारत देश के संविधान सम्मत राजभाषा (हिंदी) तथा सह-राजभाषा (अंग्रेजी) प्रसन्न रहती हैं। 


धीरेन्द्र सिंह

13.09.2025

15.07






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