राजभाषा कार्यान्वयन प्रेरणा और प्रोत्साहन से किया जाता है, यह सर्वविदित है। इसी क्रम में श्रेष्ठ राजभाषा कार्यान्वयन के विभिन्न महत्वपूर्ण पुरस्कारों को भी प्रदान किया जाता है। पुरस्कार जीतना हमेशा अच्छा होता है और प्रत्येक कार्यालय इसे पाने के लिए राजभाषा कार्यान्वयन में श्रेष्ठ कार्यनिष्पादन में व्यस्त रहता है। इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार प्राप्त करना प्रत्येक कार्यालय की चाहत होती है क्योंकि वर्तमान में राजभाषा कार्यान्वयन की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए इससे बड़ा पुरस्कार कोई नहीं है। सब लोग जानते हैं कि प्रत्येक योजना अपने आप में विशिष्ट और विशेष लक्ष्यों के प्राप्ति के लिए एक प्रेरक होती है। इस प्रकार राजभाषा के कई पुरस्कार हैं जो अपनी विशिष्टता के लिए राजभाषा जगत में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। राजभाषा के इन पुरस्कारों को पाने के लिए होड सी लगी हुयी है। ऐसी प्रबल और स्वस्थ प्रतिद्वंदिता में कुछ ऐसी भी घटनाएँ हो जाती हैं जो राजभाषा कार्यान्वयन के इस प्रयास को प्रभावित करती हैं।
किसी भी सरकारी कार्यालय के उच्च प्रशासक से राजभाषा विषयक चर्चा करने पर राजभाषा पुरस्कार चर्चा का एक प्रमुख विषय रहता है। इन चर्चाओं में यह भी टिप्पणी रहती है कि पुरस्कारों को "मैनेज" किया जाता है। यहाँ यह प्रश्न उभरता है कि उच्च प्रशासक किस आधार पर अपरोक्ष में इस प्रकार कि बातें कर जाते हैं? यहाँ यह नहीं समझा जाना चाहिए कि सभी सरकारी कार्यालयों के प्रशासक अपरोक्ष में ऐसी ही बातें करते हैं । कभी कहीं किसी उच्च प्रशासक से इस तरह कि बातें अनौपचारिक बातचीत के दौरान सुनने को मिलती है। यदि उनसे इस तरह कि बातों का आधार पूछा जाय तो प्रायः यही उत्तर मिलता है कि उनके कार्यालय के राजभाषा अधिकारी द्वारा यह बात बार-बार उनसे कही जाती है। यदि देखा जाय तो इस प्रकार कि बातें अक्सर ऐसे ही राजभाषा अधिकारी करते हैं जिन्हें अपने कार्यकाल में राजभाषा का एक भी पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ है।
क्या राजभाषा कार्यान्वयन वस्तुतः राजभाषा के विभिन्न पुरस्कारों से दबी है या कि चतुराईपूर्वक उसे पुरस्कारों से दबाने की असफल कोशिशें की जा रही हैं। राजभाषा कार्यान्वयन के विभिन्न चुनौतीपूर्ण कार्यों को करने की आवश्यक कौशल न रखनेवाले राजभाषा अधिकारी इस प्रकार के अतार्किक शोर मचाते हैं और अपनी राजभाषा कार्यान्वयन विषयक कमजोरी को छुपने का प्रयास करते हैं। राजभाषा के विभिन्न पुरस्कारों के निर्णय का आधार होता है। सरकारी कार्यालयों के राजभाषा का प्रत्येक सजग विभाग अन्य कार्यालयों की राजभाषा प्रगति की जानकारी रखता है। राजभाषा की विभिन्न बैठकों में कार्यालयों के राजभाषा विषयक प्रगति की चर्चा व समीक्षा की जाती है। सब कुछ स्पष्ट रहता है फिर भी उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को कल्पित कथा सुनाकर कुछ राजभाषा अधिकारी राजभाषा को बदनाम करने की भूमिका निभाते हैं।
यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि उच्च प्रशासनिक अधिकारी सामान्यतया राजभाषा विषयक सूचनाओं के लिए अपने कार्यालय के राकभाषा विभाग पर निर्भर रहते हैं। उच्च प्रशासनिक अधिकारी राजभाषा कार्यान्वयन की वास्तविकता से परिचित हों इसीलिए नगर राजभाषा कार्यन्वयन समिति की बैठकों में कार्यालय प्रमुख की सहभागिता पर बल दिया जाता है। अब समय आ गया है कि वृहद परिप्रेक्ष्य में राजभाषा को संबन्धित राजभाषा विभाग से बाहर निकाल कर एक नयी व्यापकता दें जिससे राजभाषा कार्यालय के प्रत्येक स्तर तक अपने स्पष्ट रूप में रहे। राजभाषा कार्यन्वयन के लिए पुरस्कार अति आवश्यक है किन्तु राजभाषा पुरस्कारों को विचित्र अफवाहों के दल-दल से बचाना भी बहुत जरूरी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें