मंगलवार, 24 नवंबर 2009

मराठी अस्मिता और भारतीय भाषाऍ

भाषा के लिए सुर्खियों में रहनेवाला महानगर मुंबई संभवत: एकमात्र महानगर है जो वर्षों से मराठी अस्मिता की बातें कर रहा है, संघर्ष कर रहा है। यह केवल कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसे मराठी भाषियों का समर्थन भी प्राप्त है। यदि मैं कहूँ कि कुछ प्रतिशत गैर मराठियों का भी समर्थन प्राप्त है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मराठी अस्मिता किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह विशेष द्वारा उछाला गया मुद्दा नहीं है बल्कि यह मराठी भाषी जनसामान्य की सोच है अतएव इस मुद्दे को जनाधार प्राप्त है। दुकान के नाम पट्ट को देवनागरी में लिखना एक आरम्भिक अभियान है जो प्रदर्शन में देवनागरी लिपि तथा मराठी भाषा के परिचय और प्रयोग का प्रथम चरण है। चूँकि यह एक जनआंदोलन है इसलिए इसमें एक चिंतन है, एक लक्ष्य है। मराठी अस्मिता को केवल स्थानीय समस्या मानकर चलना एक भूल होगी।



क्या है मराठी अस्मिता ? क्या यह केवल मराठी भाषा और मराठी भाषियों के हितों से जुड़ा हुआ मुद्दा है या कुछ और ? यहॉ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस आंदोलन में मुझे एक स्वाभिवकता नज़र आती है न कि राजनीति अतएव मराठी अस्मिता के इस आंदोलन में राजनीतिक महात्वाकांछाऍ नहीं हैं। भारत देश की आर्थिक राजधानी कही जानेवाली मुंबई विश्व के स्पंदनों का बखूबी अहसास करती है। इन स्पंदनों में यदि कोई स्पंदन मुखर है तो वह है भूमंडलीकरण। सूचनाओं, व्यवसायों, सांस्कृतिक प्रभावों आदि के बीच आज प्रत्येक राष्ट्र की प्रमुख समस्या अपनी पहचान को बनाए रखना हो गई है। यह पहचान बनाए रखने के लिए अन्य देशों के प्रभाव से बचना भी बहुत आवश्यक है। स्वंय की पहचान को बनाए रखना और उसे बचाए रखना एक प्रमुख समस्या है जिसका समाधान कहीं और नहीं प्रत्येक राष्ट्र की अपनी संस्कृति और भाषा में छुपा है। महाराष्ट्र की संस्कृति और मराठी भाषा को बचाए रखना, बसाए रखना और विकसित करते रहना ही मराठी अस्मिता है।



भारत देश का एक प्रमुख महानगर तथा वित्तीय राजधानी होने के कारण मुंबई बहुभाषी तथा बहुसंस्कृतिक है जहॉ पर कई भारतीय तथा कुछ विदेशी भाषाऍ पुष्पित तथा पल्लवित हो रही हैं। ऐसी स्थिति में यदि मराठी भाषा का आकलन किया जाए तो उसमें गिरावट नज़र आती है जो निश्चय ही चिन्ता का विषय है। कुछ वर्ष पहले तक मराठी रंगमंच अपनी लोकप्रियता के ऊँचे पायदान पर था लेकिन अब वह पायदान नहीं है। मराठी भाषी विद्यार्थी हमेशा 10 वीं तथा 12वीं कक्षा में महाराष्ट्र राज्य में प्रथम आते हैं फिर भी मराठी माध्यम के विद्यालय बंद होते जा रहे हैं। योग्यता के मानदंड में मराठी भाषा को अपेक्षित महत्व नहीं दिया जाता रहा है। महाराष्ट्र राज्य में दुकान, फर्म, प्रतिष्ठान आदि खोलकर राज्य की भाषा में बोर्ड आदि प्रदर्शित न करना स्थानीय भाषा को नकारने का संकेत देता है। एक उन्नत राज्य होने के कारण मराठी भाषा की बातें जोर-शोर से करना महाराष्ट्र के प्रबुद्ध समाज की एक स्वाभाविक प्रक्रिया ही कही जाएगी।





यदि व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो मुंबई से मराठी अस्मिता की उठती हुई आवाज़ केवल मराठी तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह अन्य भारतीय भाषाओं को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है। मराठी भाषा के प्रचार-प्रसार के अभियान से हिंदी को सीधे फायदा हो रहा है। हिंदी तथा मराठी की लिपि देवनागरी होने के कारण लक्ष्य का केन्द्रबिन्दु देवनागरी लिपि है अतएव देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार से हिंदी को भी लाभ प्राप्त होगा। गुजराती भाषा की भी स्थिति लगभग ऐसी है। मराठी भाषा का प्रतिद्वंद्वी कोई भी भारतीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय भाषा नहीं है। इसकी प्रतिद्वद्विता महाराष्ट्र की भाषिक परिस्थितियों से है। महाराष्ट्र में मराठी भाषा को महत्व मिले जिससे सर्वत्र मराठी भाषा दिखे, मराठी माध्यम से पढ़े विद्यार्थियों को नौकरी आदि में अपेक्षित स्थान मिले आदि। भारत के संविधान में भी भाषा विषयक व्यवस्था में संघ की राजभाषा हिंदी होने के साथ-साथ संविधान की आठवीं सूची में दर्ज़ सभी भाषाओं को महत्व देने का निर्देश है। भारतीय भाषाओं को एक नई पहचान देने में मराठी अस्मिता की चर्चाऍ और प्रयास अग्रणी भूमिका निभा रही है। भविष्य में संपूर्ण विश्व में भाषिक और सांस्कृतिक द्वंद की संभावना प्रतीत हो रही है।

धीरेन्द्र सिंह

4 टिप्‍पणियां:

  1. महाराष्ट्र में मराठी होना कोई गैर बात नहीं है. यहां आनेवाले हर आदमी को मराठी आनी ही चाहिए. We are proud to be Marathi...

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  2. महोदय
    मराठी अस्‍िमता की बात तो ठीक है पर राष्‍ट्रीय अस्‍िमता की बात पर आप खामोश हैं। मराठी बढेगी तो निश्‍चय ही महाराष्‍ट्र के लोगों को इसका फायदा होगा,यह बात प्रत्‍येक मराठी मानुष को माननी चाहिए। यदि महाराष्‍ट्र को एक सर्वसंपन्‍न राज्‍य बनाना है तो मराठी का विकास जरूरी है। और यदि देश का विकास करना है तो हिंदी को अपनाना जरूरी है यह बात सभी को समझनी होगी।

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  3. शकीलजी, देश का विकास करना है तो हिंदी को अपनाना होगा, यह मुद्दा मुझे समझ मे नही आया। सिर्फ़ उत्तर भारत मे बोलने जाने वाली इस ज़बान को लेकर विकास का मुद्दा कैसे हो सकता हे? जुनुबी भारत में कही हिंदी नही बोली जाती फिर भी भारत के विकास मे सबसे ज़्यादा हाथ उन्होने ही बटोरा है। बेंगलूरू, हैद्राबाद और चेन्नई तो भारत की आयटी सिटी बनती जा रही है। वहां हिंदी आने से कोई काम नहीं चलता बल्कि प्रादेशिक भाषा आनी चाहिए। उनपर आप कुछ बोलेंगे नहीं। सिर्फ़ महाराष्ट्र के लोगों को ही गालियां देते रहेंगे...

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  4. माननीय महोदया
    महाराष्‍ट्र के लिए आपके प्रेम का पूरा सम्‍मान करता हूं लेकिन राष्‍ट्रप्रेम के प्रति भी ऐसी ही ज्‍वाला होनी चाहिए। महाराष्‍ट्र के लोगों का पूरा सम्‍मान करते हैं गालियां देने की बात तो हमारे अंतर्मन के किसी कोने में भी नहीं है। प्रादेशिक भाषा पर मैंने अपने विचार व्‍यक्‍त नहीं किए हैं वो बिल्‍कुल अलग विषय है। यहां बात राष्‍ट्र को एकसूत्र में पिरोने वाली भाषा की हो रही है और मेरी समझ से हिंदी ही सारे राष्‍ट्र को एकसूत्र में पिरोने की क्षमता रखती है अन्‍य कोई भाषा नहीं अंग्रेजी तो बिल्‍कुल भी नहीं। प्रादेशिक भाषाएं प्रदेश के लोगों को तो एक साथ जोड सकती हैं परंतु सारे राष्‍ट्र को जोडने के लिए हिंदी भाषा के विकास के रूप में हम प्रयास कर रहे हैं। आशा है अपने राज्‍य के लोगों के प्रति जो आपकी भावनाएं है उससे ऊपर उठकर देश के बारे में भी सोंचे।

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