वर्ष 2025 सनातन की लहर का वर्ष माना जाएगा। वर्ष 144 के बाद ग्रह, नक्षत्रों का यह अद्भुत संयोग सनातनियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा। राजकीय, राष्ट्रीय और प्रशासकीय सहयोग ने इस महापर्व को एक गति और ऊंचाई प्रदान की। निजी चैनल और सोशल मीडिया ने विशेष प्रयास कर महाकुम्भ को नई गरिमा प्रदान की। प्रतिदिन कोई न कोई फोटो संगम स्नान की महत्ता और आवश्यकता की मुनादी दे रहा था और कहीं न कहीं यह बोल रहा था कि यदि महाकुम्भ 2025 में नहीं गए तो स्वर्णिम अवसर से चूक जाएंगे। यह मूक सलाह और प्रोत्साहन आए दिन हजारों नए श्रद्धालु निर्मित कर रहे थे।
शनिवार रात्रि 11.30 पर प्रयागराज में संगम घाट के पहले ही कार को रोक दिया गया। महाकुम्भ में टेंट लगाए परिचित से जब पार्किंग विषयक दिशानिर्देश मांगा तो कहा गया एग्रिकल्चर पार्किंग में पसर्क कर दें और वहां परिचित पहुंच रहे हैं। परिचित अपनी मोटरसाइकिल से आये और हम लोगों को दो फेरी मैं टेंट तक ले गए। पार्किंग से टेंट तक की दूरी लगभग 20 किलोमीटर थी। एक परिचित द्वारा यह प्रयास दिल को छू गया। मोटरसाइकिल से पार्किंग से सेक्टर 4-5 स्थित टेंट में जाते समय सड़क को भीड़ से दबा पाया। जिस कौशल और जिस खतरनाक अंदाज में मोटरसाइकिल चला रहे थे कि लगा अब नहीं तब हादसा होगा। इतनी भीड़ में पैदल चलना कठिन है उस भीड़ में दोपहिया वाहन कैसे चल सकता है। सकुशल टेंट पहुंचकर राहत की सांस ली यद्यपि चलना नहीं पड़ा था।
सभी टेंट में एकत्रित हो गए तो गंगा स्नान पर चर्चा हुई। परिचित ने कहा कि त्रिवेणी संगम एक मीडिया जनित आकर्षण है। जिस स्थान पर अमृत गिरा था उसके चारों ओर 3 किलोमीटर तक एक ही प्रभाव रहता है इसलिए टेंट से 500 मीटर दूर स्थित घाट पर स्नान किया जाना ठीक रहेगा। हमलोग पिछले 24 घंटे से लगातार सड़क पर कार संग दौड़ते रहे इसलिए आंखों में नीद भरी थी। भोर की बेला थी और हमसब टेंट में अपने-अपने बिस्तर पर लुढ़क गए। रविवार दोपहर को नींद पूरी हुई और फिर से चर्चा आरम्भ हुई गंगा स्नान की। परिचित ने कहा कि चूंकि आज नितिन गडकरी आए हैं इसलिए बोट सेवा बंद है। भोजन पश्चात तन की ऊर्जा ने मन की ऊर्जा को अपने होने का आभास दिया। यह तय हुआ कि सोमवार की सुबह 5 बजे बोट चलेगी तथा प्रति व्यक्ति रुपए दो हजार किराया होगा, परिचित ने बोटवाले से बात भी कर ली। यह निर्णय हुआ कि आज की शाम करीब के दशाश्वमेध घाट पर स्नान किया जाए।
हम पुलिया पारकर घाट के पास पहुंचे तो परिचित ने कहा कि संगम पर यह सड़क जाती है। जाकर देखे तो पाया लोगों को रोका गया है। पुलिस से पूछने पर कि कब खुलेगा उत्तर मिला नहीं कहा जा सकता। हम लौटकर नीचे कारीबवाले घाट की ओर बढ़े। घाट नीचे था और उसके साथ ऊंचाई पर संगम जानेवाली सड़क थी। नीचे से हम सड़क की ओर भी देख रहे थे कि कुछ हलचल दिखाई दे तो हम भी सड़क पर चढ़ जाएं। घाट पर उचित स्थान की खोज में आगे बढ़ते जा रहे थे कि अचानक एक दृश्य देख रुक गए। घाट से ऊंचाई पर स्थित सड़क पर लोग सड़क की ऊंचाई से जुड़े पत्थरों पर चढ़कर सड़क पर पहुंच रहे थे। एक हाँथ की दूरी लिए पत्थरों की पैच अनगढ़ सीढियां जैसी चयन पर चढ़ना था।जो अनुचित और असामाजिक कृत्य था। पत्थर टूटकर नीचे घाटपर न गिरे इसलिए पत्थरों को तार से बांधा गया था। श्रद्धा के समक्ष विवेक कमजोर पड़ गया।
हमने सोचा लोग चढ़ रहे हैं तो हम भी चढ़कर संगम स्नान कर लेते हैं। परिचित और एक व्यक्ति ने कहा कि वह नहीं चढ़ेंगे गिरने का खतरा है। हम में से एक ने कहा कि जल्दी निर्णय लो वरना यहां भी पुलिस आकर हादसे के डर से चढ़ना रोक देगी। इतना सुनते ही मैं पत्थरो को बांधे तारों को पकड़ते हुए चढ़ गया पर अंतिम पत्थर से सड़क थोड़ी ऊंची थी और मैं सोच रहा था किं कैसे सड़क तक पहुंचने के लिए चढूं कि अचानक एक हाँथ ने मुझे पकड़ा फिर दूसरे हाँथ को भी किसी ने पकड़ा और मुझे सड़क पर खींच लिया। अप्रत्याशित पर सुखद था। सामने पड़ी एक बेंच पर बैठकर साँसों को नियंत्रित किया तब तक हम सभी इकठ्ठे हुए और संगम घाट की ओर चल पड़े। पीछे मुड़कर देखे तो सड़क मौन थी मतलब अभी भी लोग रुके हैं। एक विजय की भावना ने ऊर्जा प्रदान की। खूब पानी और नींबू शरबत पीकर संगम घाट पहुंच गए।
त्रिवेणी संगम पर गंगा जी में घुटने तक जाकर मैंने डुबकी लगाने का प्रयास किया तो लगा बैठ गया हूँ एक टीला पर संतुलन थोड़ा डगमगाया और वहां पर गंगा का गहरा न होना खला क्योंकि अब तक के वीडियो में घुटने तक पानी में लोगों को डुबकी लगाते देखा था। आगे बढ़ा जहां पर आगे जाने की रोक थी। वहां डुबकी सफल रही। देखा तो लड़के-लड़कियां स्वीमिंग पूल समझकर मस्ती कर रहे थे। आध्यात्म की डुबकी में उन लड़कों और लड़कियों की यह अप्रयुक्त थाप मुझे अच्छी नहीं लगी और मैं बाहर आ गया। घाट किनारे ही कपड़ा बदला और मुझे कहा गया कि 32 नंबर खंभे के पास बैठकर कपड़ों और जूट चप्पलों की रखवाली करूं। बैठ गया।
चेंजिंग रूम सहजता से उपलब्ध थे और करीब थे इसके बावजूद भी अधिकांश कपड़े घाट पर ही बदल रहे थे। पुरुष और लड़के भींगे हुए केवल चड्ढी में घूम रहे थे जो अशोभनीय लग रहा था पर वह बेखबर थे। लड़कियां और महिलाएं घाट पर ही कपड़े बदल रही थीं। कुछ तो दो महिलाओं के सहयोग से तौलिया आदि का ओट कर वस्त्र बदलने की क्रिया को सफलतापूर्वक पूर्ण कर रही थीं। कुछ भीड़ की परवाह किए बिना वस्त्र बदल रही थीं तो कुछ का ओट ठीक नहीं था। एक अजीब घृणित परिवेश था। उसी में सेल्फी और फोटोग्राफी एक अजीब स्थिति निर्मित कर देती थी। वह लाल साड़ीवाली दो बार मेरे इतने करीब आकर फोटो खिंचवाई कि उसकी साड़ी मुझे स्पर्श कर रही थी। चिल्ला उठा “सब लोग संभल कर आएं यहां फोटोग्राफी हो रही है।“ इतने कपड़े और जूते चप्पल लेकर कहीं जा भी तो नहीं सकता था। चिल्लाना सफल रहा।
सोमवार को हमें वापस आना था लेकिन समस्या थी कि पार्किंग तक कैसे पहुंचा जाए। चौराहे पर खड़े होकर अनेक मोटरसाइकिल और इलेक्ट्रिक रिक्शा से पूछ चुके थे सबका उत्तर था नैनी की तरफ नहीं जाएंगे। परिचित टेंट के एक व्यक्ति को लेकर बोट से स्नान करने निकल चुके थे। अब क्या? एक इलेक्ट्रिक रिक्शा को खाली देख पार्किंग तक चलने को कहा। न जाने हमारी किस बात से प्रभावित होकर वह हमसे बातें करने लगा। कुछ और लोग भी आये और बोले जितना किराया मांगोगे देंगे पर वह तैयार न हुआ। अपना रिक्शा छोड़कर हमारी समस्या को सुना और अपनी समस्या बतलाया कि नैनी की ओर जाते समय पुल पर इलेक्ट्रिक रिक्शा चढ़ नहीं पाता इसलिए वह असमर्थ है पर वह हमारी सहायता के लिए अपने रिक्शे पर बैठाकर हमारे लिए वाहन ढूंढने लगा। अंत में एक रिक्शा स्टैंड पर खोज करते हुए अचानक एक व्यक्ति आया और बोला कि उसके पास कार है और वह छोड़ देगा। चार हजार रुपए में लगभग 20 किलोमीटर स्थित हमारे पार्किंग तक पहुंचा दिया। भीड़ में रेंगते हुए हमारी कार प्रयागराज से बाहर निकली। विभिन्न ऊर्जाओं और अनुभूतियों से भरी महाकुम्भ यात्रा बहुत कुछ दे गई।
धीरेन्द्र सिंह
18.02.2025
19.09