सोमवार, 27 मई 2024

महाराष्ट्र और भाषा

भाषा और महाराष्ट्र


भारतीय राज्यों में भाषा के प्रति रुचि राज्य की भाषा के प्रति विशेष रूप से परिलक्षित होती है। महाराष्ट्र राज्य के सरकारी कार्यालयों में मराठी भाषा में कार्य भी होता है तथा मराठी भाषा के प्रयोग के प्रति जागरूकता एवं आक्रामकता की भी झलक मिलती है यद्यपि आक्रामकता का रूप याद-कदा ही प्रदर्शित किया जाता है। महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे महानगर में बोलचाल की सभी भाषाओं की स्पष्ट झलक मिलती रहती है। यहां यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि तमिलनाडु को छोड़कर अन्य किसी राज्य में भाषा के प्रति एक प्रतिबद्ध और कटिबद्ध रूप दिखलाई पड़ता है। भाषा की दृष्टि से महाराष्ट्र ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जो संलग्न है।


अंग्रेजी भाषा की शिक्षा में महत्व विवादित भी रहता है और और विश्व का सवाल देते हुए अंग्रेजी की उपयोगिता को स्वीकार कर लिया जाता है। महाराष्ट्र ने इस दिशा में एक ठोस महतबपूर्ण कदम बढ़ाते हुए राज्य के जूनियर महाविद्यालय स्तर पर अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है पर महाराष्ट्र का यह निर्णय भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। एक समय था जब यू एस ए कनाडा, यू के या खाड़ी देशों में जाना पसंद करते थे जहां की भाषा अंग्रेजी थी। वर्तमान में श्रमिकों और व्यवसायियों की मांग ऐसे देश में होने लगी जहां अंग्रेजी भाषा का प्रभाव नहीं है। 


जूनियर महाविद्यालय स्तर पर महाराष्ट्र सरकार ने भाषा विषय को सरल, सहज और सदुपयोगी बनाते हुए एक भारतीय भाषा और दूसरे विदेशी भाषा के चयन का विकल्प दिया है। अपनी आवश्यकतानुसार विद्यार्थी अपने भाषा ज्ञान को विकसित कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में राज्य की मराठी भाषा और केंद्र की हिंदी भाषा भी भी अन्य भारतीय भाषाओं की तरह कतारबद्ध हैं। देश और विदेश में हिंदी भाषा का शोर करनेवाले हिंदी के नेता तथा हिंदी की संस्थाएं इस विषय पर हमेशा की तरह भ्रमित अभिव्यक्तियां करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए प्रयासरत रहेंगे।


देवनागरी लिपि तथा हिंदी प्रदेश के हिंदी बोल में अंग्रेजी के शब्द बहुतायत में मिलते रहते हैं। महानगर के प्रमुख दैनिक में इस विषयक रिपोर्ट का शीर्षक निम्नलिखित है:-


“स्टेट करिकुलम फ्रेमवर्क का ड्राफ्ट जारी”


यथार्थ में हिंदी का वर्तमान रूप यही है। शायद भविष्य में मराठी भाषा देवनागरी लिपि में लेखन का नेतृत्व करे क्योंकि भाषा के प्रति महाराष्ट्र सी स्पष्टता तथा अनुकूल कार्रवाई हिंदी भाषी राज्यों में नहीं मिलती है।

संलग्नक : यथोक्त

धीरेन्द्र सिंह





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