नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति, हिन्दी के संक्षेपाक्षर नराकास की तुलना में अंग्रेजी के संक्षेपाक्षर टोंलिक के रूप में अधिक जानी जाती है। इस समिति की देख-रेख भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय द्वारा की जाती है जिसके प्रभारी उप-निदेशक (कार्यान्यवन) होते हैं । विभिन्न नगरों में चयनित एक
कार्यालय को इस समिति के संयोजन का कार्यभार दिया जाता है जो वर्ष में दो बार इस
समिति की बैठक आयोजित करता है। सदस्य कार्यालयों की तिमाही रिपोर्ट की समीक्षा और
आवश्यक सुझाव (प्रमुखतया उप-निदेशक (कार्यान्यवन) द्वारा) के अपने प्रमुख कार्य के साथ-साथ यह समिति सम्पूर्ण वर्ष अपने सदस्य
कार्यालयों के सहयोग से राजभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन करती रहती है। विजेताओं को पुरस्कार भी देती है। समिति हिन्दी
कार्यशाला और प्रशिक्षण का भी आयोजन करती है। इस प्रकार राजभाषा कार्यान्यवन में नगर
राजभाषा कार्यान्यवन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
नराकास यहीं तक सीमित नहीं रहती है बल्कि सदस्य कार्यालयों से प्राप्त हिन्दी
की तिमाही रिपोर्ट के आधार पर प्रत्येक वर्ष कार्यालयों को पुरस्कृत भी करती है।
नराकास द्वारा पुरस्कार प्रदान करना राजभाषा कार्यान्यवन का एक अभिन्न हिस्सा है।
अधिकांश सदस्य कार्यालय नगर राजभाषा समिति को प्रमुखतया पुरस्कार समिति के रूप मैं
पहचानते हैं। हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट को तैयार करते समय अधिकांश सदस्य कार्यालय के राजभाषा अधिकारी इस बात पर विशेष ध्यान देते हैं कि रिपोर्ट प्रथम पुरस्कार से लेकर प्रोत्साहन पुरस्कार तक उपलब्ध किसी एक पुरस्कार को अवश्य प्राप्त करे । पुरस्कार लालसा की यह ललक जाने-अनजाने में हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट के आंकड़ो में भी
अनावश्यक छेड़-छाड़ कर जाती है जिससे रिपोर्ट आंकड़ों में यथार्थ से भिन्न नजर आती
है।
नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति के प्रमुखतया भारत सरकार, गृह मंत्रालय, क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय, राजभाषा विभाग के उप-निदेशक (कार्यान्यवन) और समिति के पदेन सदस्य-सचिव समिति की गतिविधियों से पूर्णतया और संपूर्णता से जुड़े होते हैं। समिति के पदेन अध्यक्ष
और समिति के सदस्य विभिन्न कार्यपालक प्रमुखतया नीति आदि से संबन्धित मामलों से
जुड़े होते हैं। सदस्य कार्यालयों के राजभाषा अधिकारी उप-निदेशक (कार्यान्यवन) और पदेन सदस्य-सचिव से संपर्क में रहते हैं और अनवरत राजभाषा की एक बेहतर छवि निर्मित करने के प्रयास में रहते हैं। आखिर मामला एक अदद पुरस्कार का है जिसकी प्रतीक्षा सभी सदस्यों को होती है। नराकास
का पुरस्कार राजभाषा के पुरस्कारों का वह पायदान है जिसे प्राप्त कर कार्यालय सफलतापूर्वक अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब होता है। यह कामयाबी आगे अन्य पुरस्कारों और सम्मान को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सघन
प्रयासों से उपलब्धियों का गगन छूने का प्रथम द्वार नराकास का पुरस्कार
है।
हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट के बल पर गतिमान राजभाषा पुरस्कार की होड में सभी
राजभाषा अधिकारी होते हैं यह सच नहीं है। नराकास में भी प्रमुखतया दो प्रकार के
सदस्य कार्यालय होते हैं। प्रथम कार्यालय वह कार्यालय है जो हिन्दी की तिमाही
रिपोर्ट भरते समय आंकड़ों की सत्यता की पूरी जांच करता है फिर रिपोर्ट में आंकड़े
दर्ज़ करता है। इस प्रकार के कार्यालय पुरस्कार को एक अंधी दौड़ मानते हैं जिसमें
हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट की गरिमा प्रभावित होती है। ऐसे कार्यालय राजभाषा
कार्यान्यवन को राजभाषा के पुरस्कारों से जोड़कर नहीं देखते हैं बल्कि उसकी प्रगति
कार्यालय के प्रत्येक टेबल और फ़ाइल में देखना ज्यादा पसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त
इन्हें यह अच्छा भी नहीं लगता कि राजभाषा निरीक्षण के दौरान निरीक्षण अधिकारी
आंकड़ों के सत्यता की पुष्टि मांगे और पुष्टि से संबन्धित कागजात ना
हो। राजभाषा का सही और उचित ढंग से कार्यान्यवन इस प्रकार के कार्यालय ही करते हैं, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
दूसरे प्रकार के सदस्य कार्यालय जीत को ही पहचान मानते हैं। ऐसे कार्यालयों
में कार्यरत राजभाषा अधिकारी स्वयं को और अपने कार्यालय को हमेशा सुर्खियों में
रखना पसंद करते हैं। दूसरे सदस्य कार्यालय उनसे आगे ना निकल जाएँ इसकी इन्हें
हमेशा चिंता रहती है परिणामस्वरूप हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट के आंकड़े दूब के समान बढ़ते रहते हैं। राजभाषा के कामकाज को प्रोत्साहित करने
के लिए आरंभ किया गया पुरस्कार अब एक नशा बनता जा रहा है जो राजभाषा के लिए एक प्रतिकूल स्थिति है। पुरस्कार
प्राप्ति के लिए आंकड़ों की सत्यता को कसौटी पर ना परखा जाना राजभाषा की भावी
नीतियों में बाधक साबित होंगी। यद्यपि वार्षिक कार्यक्रम 2011-2012 में राजभाषा के
विभिन्न लक्ष्यों को एक निर्धारित प्रतिशत ना देकर एक रेंज दिया गया है किन्तु
पुरस्कार का निर्धारण करते हुये इन तथ्यों का पूर्ण अनुपालन बहुत कम किया जाता है। इस
दिशा में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे नगर राजभाषा कार्यान्यवन को मात्र पुरस्कार आबंटन समिति के रूप में पहचान निर्मित होने की प्रक्रिया को रोका जा सके।
क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय यद्यपि निरीक्षण आदि के माध्यम से हिन्दी की तिमाही
रिपोर्ट में दर्शाये गए आंकड़ों की सत्यता की जांच करते रहता है फिर भी दर्शाये गए आंकड़ों
को कभी किसी क्षेत्रीय कार्यालय ने चुनौती दी हो ऐसी स्थिति की जानकारी नहीं है। इससे
हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट में मनचाहे आंकड़ों को भरने की सुविधा मिलती है। एक ही नगर
में कुछ कार्यालय लक्ष्य से नीचे होते हैं जबकि कुछ लक्ष्य से काफी आगे होते हैं। समिति
की बैठकों में इस विषमता पर व्यापक चर्चा कर उचित दिशानिर्देश देना चाहिए। यह कह कर
मामले को रफा-दफा केर देना कि तिमाही रेप्र्त पर हस्ताक्षर प्राधिकारी का है अतएव जिन
आंकड़ों को संबन्धित कार्यालय का प्राधिकारी एवं राजभाषा कार्यान्यवन समिति का अध्यक्ष हस्ताक्षर केर पुष्टि करता है उन आंकड़ों कि सत्यता कि जांच करना उचित प्रतीत
नहीं होता है, ऐसी सोच को बदलने कि आवश्यकता है। नराकास को और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है।
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