प्रौद्योगिकी का विकास भूमंडलीकरण
का एक प्रभाव है। भारत देश भी प्रौद्योगिकी को उतनी ही तेजी और तन्मयता से अपना
रहा है जिस तरह विश्व के अन्य उन्नत देश इसे
स्वीकार कर रहे हैं। महज एक कंप्यूटर के द्वारा एक व्यक्ति अपनी लगभग सारी आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकता है। वर्तमान में कंप्यूटर कथाओं में मशहूर अलादीन का चिराग हो गया है। यह स्थिति विश्व की एक समान्य प्रचलित स्थिति कही जा सकती है। इस
उत्साहवर्धक स्थिति में दो स्थितियाँ कार्यरत हैं जिसमें प्रथम है उन्नत शहर और
द्वितीय हैं विकास की ओर बढ़ाने को प्रयासरत कस्बे और गाँव। इन दो स्थितियों का यदि
विश्लेषण किया जाये तो यह तथ्य स्पष्ट होगा कि भारत के अधिकांश कस्बों और गाँव में
प्रौद्योगिकी के लिए आवश्यक विद्युत आपूर्ति प्रायः बाधित रहती है परिणामस्वरूप
प्रौद्योगिकी की उपयोगितामूलक प्रगति बाधित होती है। इसके अतिरिक्त कंप्यूटर के द्वारा अपने
आवश्यक कार्यों के निबटान के बजाय जनसम्पर्क के द्वारा कार्य करना देश के समान्य
व्यक्ति को अधिक संतोषजनक लगता है। राजभाषा और प्रौद्योगिकी के क्षितिज निर्माण के
दो प्रमुख कारण अति महत्वपूर्ण हैं।
वर्तमान में राजभाषा प्रौद्योगिकी में ना तो पूरी तरह
प्रचलित है और ना ही पूर्णतया अप्रचलित है अतएव यह कह पाना कि विशेषकर राजभाषा कार्यान्यवन में प्रौद्योगिकी बाधक है, पूर्वाग्रह के सिवाय कुछ नहीं है।
राजभाषा और प्रौद्योगिकी के क्षितिज निर्माण में सर्वप्रथम राजभाषा अधिकारियों और राजभाषा कार्यान्यवन से जुड़े कर्मियों में प्रौद्योगिकी की कम जानकारी बाधक है। प्रौद्योगिकी के
द्वारा राजभाषा के कार्यों को संपादित करने की
धीमी गति और अंग्रेजी के बिना कम्प्युटर पर कारी करना कठिन है जैसी धारणाएँ कहीं न कहीं राजभाषा की गति
को प्रभावित करती हैं। ऐसी सोचवाले अधिकांश राजभाषा कार्यान्यवन से जुड़े लोगों को
इस तथ्य से भी अवगत होना चाहिए कि भाषा प्रौद्योगिकी में बाधक नहीं है बल्कि बाधक अपूर्ण सोच है।
अपूर्ण सोच से सिंचित मानसिकता को स्वाभाविक मानसिकता में परिवर्तित करने के लिए
हिन्दी, राजभाषा और प्रौद्योगिकी कि अद्यतन प्रगति और उपलब्धियों कि जानकारी अत्यावश्यक है। इस प्रकार की जानकारियों के लिए महज अध्ययन पर ही निर्भर रहना परिणामदायी नहीं माना
जाना चाहिए बल्कि इसके लिए स्वयं कार्य करना भी जरूरी है। राजभाषा कार्यान्यवन से जुड़े कितने प्रतिशत लोग राजभाषा का अपना सम्पूर्ण कार्य प्रौद्योगिकी की सहायता से करते हैं यह एक शोध का विषय है।
एशिया के देशों से यदि राजभाषा हिन्दी की तुलना करें तो यह
स्थिति स्पष्ट होती है की चीनी, जापानी, कोरियन आदि राजभाषाएँ हिन्दी की तुलना
में कहीं आगे हैं। प्रौद्योगिकी में राजभाषा हिन्दी का अन्य विकसित और कतिपय विकासशील देशों से पीछे होने का प्रमुख कारण है राजभाषा में प्रौद्योगिकी का प्रयोग
ना होना। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि प्रौद्योगिकी में राजभाषा
के अधिकतम प्रयोग के लिए क्या करना चाहिए। प्रयोग एवं प्रयास कीकोयी सीमा नहीं
होती है तथापि निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देकर प्रगति कि जा सकती है :-
1 राजभाषा विभाग को स्पष्ट दिशानिर्देश दिये
जाएँ कि विभिन्न प्रकार की रिपोर्टें, राजभाषा प्रशिक्षण की सामग्री,
विभिन्न बैठकों के कार्यवृत्त, सामान्य पत्राचार आदि को पूर्णतया प्रौद्योगिकी की सहायता से पूर्ण किया जाय।
आवधिक अंतराल पर इसकी जांच की जाय और समीक्षा की जाय।
2 यूनिकोड प्रत्येक कम्प्युटर में सक्रिय किया
जाय और देवनागरी लिपि में टंकण हेतु कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाय और आवश्यक
सुविधाएं उपलब्ध कराई जाय।
3 देवनागरी टायपिंग न जाननेवाले कर्मियों को उपलब्ध विभिन्न सुविधाओं में से यथोचित सुविधा प्रदान कर
यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि देवनागरी टायपिंग में उन्हें किसी प्रकार की
असुविधा न हो अन्यथा इसका दूरगामी विपरीत परिणाम हो सकता है।
4 नवीन अथवा नवीनतम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सुविधाओं का उपयोग किया जाय।
5 मंगल फॉन्ट के अतिरिक्त उपलब्ध अन्य यूनिकोड फॉन्ट का भी प्रयोग किया जाय जिससे देवनागरी टाईपिंग और आकर्षक बन
सके।
6 राजभाषा के कामकाज से सीधे जुड़े अधिकारियों
और कर्मचारियों को हिन्दी के विभिन्न सॉफ्टवेयर की न केवल जानकारियाँ प्रदान की जाय बल्कि उन सॉफ्टवेयर आदि का गहन
प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाय।
7 राजभाषा विभाग प्रौद्योगिकी का उपयोग निरंतर कर रहा है यह
सुनिश्चित करने के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ संबन्धित कार्यालय के आइ टी विभाग को निगरानी का दायित्व सौंपा जाय।
इस प्रकार के अन्य कई उपाय हैं जिनके प्रयोग से राजभाषा की प्रौद्योगिकी
के संग एक बेहतरीन जुगलबंदी हो सकती है किन्तु इसके लिए सघन कार्रवाई
और गहन अनुवर्ती कार्रवाई की आवश्यकता है अन्यथा यह केवल आंकड़ों तक ही सीमित रह जाएगा।
यहन इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि समान्यतया यह धारणा है कि कार्यालय में
नव नियुक्त युवकर्मी प्रौद्योगिकी से अत्यधिक जुड़े हुये हैं। यह सत्य है किन्तु यह नव युवाकर्मी राजभाषा को प्रौद्योगिकी से कितना जोड़ रहे हैं यह एक निगरानी
और समीक्षा का विषय है। प्रौद्योगिकी में हिन्दी की उपलब्धियों और नए उत्पादों की चर्चा
मात्र से राजभाषा की प्रगति नहीं हो सकती है बल्कि प्रत्येक कार्यालय का राजभाषा विभाग
जब तक स्वयं अपना सम्पूर्ण कार्य प्रौद्योगिकी की सहायता से सम्पन्न नहीं करता है तब तक राजभाषा और प्रौद्योगिकी का क्षितिज
एक भ्रम को यथार्थ का अमलीजामा पहनाता रहेगा।
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