भारत के संविधान की
राजभाषा नीति के अनुसार सरकारी कार्यालयों, उपक्रमों, राष्ट्रीयकृत बैंकों में
कार्यरत सभी स्टाफ राजभाषा के राही हैं. भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग
के वार्षिक कार्यक्रम के विभिन्न लक्ष्य ही राजभाषा की राहें हैं. इस प्रकार राह
भी निर्धारित है और राही भी इसके बावजूद ना तो राहों की धूल उड़ती हुयी दिखलाई पड़ती है और ना ही कथित राहियों की राह पर अनवरत सक्रिय उपस्थिति का ही एहसास होता है. ऐसी स्थिति में राह पर किसी तरह का सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता है किन्तु राही
अवश्य प्रश्नों से घिरा हुआ है। राह पर राहियों का लगातार सक्रियतापूर्वक ना दिखना
क्या दर्शाता है? क्या सचमुच इन राहों पर राही नहीं हैं? क्या राहियों को कोई कठिनाई है? इस प्रकार के अनेकों प्रश्न मन में उभरते हैं और अपने
उत्तर तलाशते हैं। आखिर यह राह भी तो सामान्य राह नहीं है बल्कि संविधान द्वारा निर्मित एक
ऐसी अद्भुत राह है जो चिंतन, सम्प्रेषण आदि में पूर्णतया स्व की भावना, विचार और कर्म को निर्मित करती है। राह भी प्रशस्त और प्रयोजनमूलक है। राहगीरों की
चहल-पहल ना दिखलाई देना सतत एक समाधानकारक विश्लेषण के लिए प्रेरित करते रहता है।
इस विश्लेषण में सर्वप्रमुख है राही।
कौन हैं यह राही ? क्या राजभाषा कामकाज से सीधे जुड़े अधिकारी-कर्मचारी? या कि राजभाषा के कार्यों को संपादित करने के लिए विभिन्न कार्यालयों के चयनित स्टाफ ? सत्य यह है कि इन कार्यालयों (केंद्रीय सरकार के कार्यालय, उपक्रम एवं राष्ट्रीयकृत बैंक) के वरिष्ठतम अधिकारी से लेकर कनिष्ठतम कर्मचारी सभी राजभाषा के राही हैं। यदि इन
कार्यालयों के कनिष्ठतम कर्मचारी से बात की जाय तो उनका उत्तर होता है कि जब
वरिष्ठतम ही कुछ देर इस राह पर चहलकदमी कर दूसरी राह पर चलने लगते हैं
तब कनिष्ठ क्या करे ? कनिष्ठ तो प्रायः वरिष्ठ का ही अनुकरण करते हैं। यदि वरिष्ठ से यही प्रश्न किया जाये
तो उत्तर होगा कि अक्सर यह पाया गया है कि कनिष्ठों को इस राह के अपने
दायित्व का बोध नहीं है और यदि यह बोध है भी तो अनजाना बन जाते हैं। शायद
उनकी यह सोच होती हो कि इन राहों पर चलना ना तो अनिवार्य है, ना ही अनुपालन ना करने पर दंड का प्रावधान है, ना ही इस बारे में अपेक्षित गंभीरता है
परिणामस्वरूप राजभाषा की राह एक ऐसी ऐच्छिक राह है जिसपर मन किया तो चल पड़े मन नहीं तो
नहीं गए।
ऐसा नहीं कि राजभाषा की राह पर
किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है यदि देखा जाये तो हर महत्वपूर्ण मोड़ पर नियंत्रण है
जहां यह देखने को भी मिल जाता है कि किसी मोड़ के नियंत्रण पर अपेक्षित गंभीरता है तो
किसी मोड़ पर गंभीरता का अभाव है। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय राह पर नियंत्रण, निदेश और निगरानी का दायित्व निभा रहा है इसके अतिरिक्त विभिन्न
मंत्रालयों में शीर्ष राजभाषा कार्यालय भी इस दिशा में कार्यरत
हैं और विभिन्न कार्यालयों के शीर्ष अधिकारी भी इस दायित्व को निभा रहे हैं। इस व्यवस्था
के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजभाषा की राह अलग-थलग बेगानी सी पड़ी है। यह निर्विवाद सत्य है कि राजभाषा की राह पर किसी
प्रकार की असुविधा नहीं है। इस राह के प्रत्येक मोड़ पर किसी ना किसी रूप में दिशानिर्देशक उपलब्ध हैं। राजभाषा में यदि किसी कार्यालय में अपेक्षित उपलब्धि नहीं
होती है तो ज़िम्मेदारी राह पर नहीं डाली जा सकती है। यदि किसी कार्यालय का स्टाफ राजभाषा
की राह पर दोषारोपण करने का प्रयास करता है तो यही कहा जा सकता है कि “नाच ना जाने आँगन टेड़ा”।
यदि राह पर कोई कठिनाई नहीं है तो स्वाभाविक तौर पर यह स्पष्ट हो
जाता है कि समस्याएँ राही के इर्द-गिर्द ही हैं। समस्याएँ होने की वजह राहियों के विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ हैं जिनमें से कुछ को नीचे दर्शाया जा रहा है :-
1 पदोन्नति प्रधान
2 सुविधानुसार स्थानांतरण प्रधान
3 अज्ञानता प्रधान
4 लोकप्रियता प्रधान
5 गुटबाजी प्रधान
6 कर्मठता प्रधान
1 पदोन्नति प्रधान राही : इस श्रेणी के राजभाषा अधिकारी
का एकमात्र लक्ष्य होता है सेवा में पदोन्नति प्राप्त करना। इस श्रेणी के लोगों को
उनके उच्चाधिकारी जो कहते हैं उसे स्वीकार कर तदनुसार कार्य करते हैं। राजभाषा नीति के नियम की अनदेखी कर भी इस श्रेणी के लोग अपने उच्चाधिकारी के अनुरूप कार्य
करते हैं। ऐसे लोग उच्चाधिकारी को राजभाषा कार्यान्यवन की सलाह नहीं देते हैं बल्कि
उच्चाधिकारी के आज्ञाकारी स्टाफ बनकर उनकी नज़रों में अपनी छवि को एक कर्मनिष्ठ अधिकारी
के रूप में निर्मित करना चाहते हैं। ऐसे बहुत कम उच्चाधिकारी हैं जो इस खूबसूरत और
प्रीतिजनक आवरण की भेदक दृष्टि रखते हों। स्वयं की प्रशंसा प्रायः सभी को अच्छी लगती है क्योंकि यह एक सामान्य मानवीय गुण है। इस श्रेणी के राजभाषा अधिकारी अपने लक्ष्य में अवश्य सफल होते है। इनके लिए राजभाषा कि राह से अधिक व्यक्तिगत उपलब्धि प्रधान होती
है। व्यक्तिगत प्रगति के लिए राजभाषा के साथ समझौता करना इनकी आदत होती है।
2 सुविधानुसार स्थानांतरण प्रधान राही : यह एक सौम्य, शांत, अपने ही दायरे में सिमट कर रहनेवाली श्रेणी
है। इस श्रेणी के राजभाषा अधिकारी अपना कार्य समय, सुविधा और साधन के अनुरूप करते है। सबसे हिल-मिलकर
रहना इनकी प्रमुख विशेषता है। इनकी चाहत सिर्फ स्थानांतरण तक ही सीमित रहती है। अक्सर
इनके दबे-सहमे व्यवहार से प्रसन्न होकर प्रबंधन इन्हें मनचाही जगह पर स्थानतरित कर देता है। राजभाषा कि राह इनके लिए गौण होती है और पारिवारिक सुख परम प्रधान होता है।
3 अज्ञानता प्रधान राही : इस श्रेणी के राजभाषा अधिकारी को राजभाषा कार्यान्यवन का प्रचुर ज्ञान नहीं रहता है इसलिए ऐसे अधिकारी एक ही स्थान पर काफी समय तक पड़े रहते हैं। ना तो इनकी चर्चा होती है और ना ही इनसे कोई अपेक्षा की जाती
है। सामान्य तौर पर राजभाषा के कार्यों को निपटाते रहते हैं जिसमें ना तो आकर्षण होता
है और ना ही कोई नयी बात होती है। इस श्रेणी के राजभाषा अधिकारी राजभाषा कि राह से बेमन से चलते
हैं जैसे कोई इन्हें चलने के लिए विवश कर रहा हो।
4 लोकप्रियता प्रधान राही : लोकप्रियता की अभिलाषा में डूबे राजभाषा अधिकारी अपने टेबल पर कम और इधर-उधर अधिक पाये
जाते हैं। यहीं की खबर वहाँ करना, व्यक्तिगत समस्याओं में विशेष रुचि लेकर सहायता करना आदि प्रकार के कार्य इस श्रेणी के राजभाषा
अधिकारी करते हैं। यदि यह टेबल पर होते हैं तो अधिकांश समय फोन से जुड़े रहते हैं। इस लोकप्रियता में राजभाषा गौण रहती है और ऐसे लोग राजभाषा कि राह के बारे में गंभीर नहीं होते हैं।
5 गुटबाजी प्रधान राही : मुक्त होकर आलोचना करना और समूह बनाकर एक
दबाव की नीति बनाए रखने के खयाल से कुछ राजभाषा अधिकारी गुट बना लेते हैं। यह गुट राजभाषा
अधिकारियों का होता है और राजभाषा अधिकारी के खिलाफ कार्य करता है जैसी अफवाहें फैलाना, किसी को योगी बताते हुये उसे एक नयी पहचान देने का प्रयास करना
आदि। इनका कोई विशेष उद्देश्य नहीं रहता बल्कि ऐसे राजभाषा अधिकारी अपनी अयोग्यता
को छुपाने के लिए योग्य राजभाषा अधिकारी की छवि धूमिल करने का भरसक प्रयास करते हैं।
राजभाषा की राह पर चहलकदमी करते दिखानेवाले कदम इस श्रेणी के राजभाषा
अधिकारियों के होते हैं।
6 कर्मठता प्रधान राही : इस श्रेणी के लोगों की दुनिया राजभाषा और हिन्दी जगत
में खोयी रहती है तथा राजभाषा कार्यान्यवन में नित नए कार्य करने की इनकी कोशिश जारी रहती है। यद्यपि
इस श्रेणी के
लोगों की संख्या काफी
कम होती है लेकिन कोई कार्यालय या संस्था ऐसे राजभाषा अधिकारियों के कार्यनिष्पादन
के सहयोग से राजभाषा की गति को बनाए रखने में सफल होती है। लोग अपनी धुन में रहते हैं
और सदा राजभाषा के
राही रहते हैं। राजभाषा की राह की वर्तमान दीप्ति के जनक इस श्रेणी के राजभाषा अधिकारी
हैं।
वर्तमान में राजभाषा की राह अर्थात राजभाषा नीति और वार्षिक कार्यक्रम के अनुरूप राजभाषा के राही अर्थात सामान्यतया विभिन्न कार्यालयों के कर्मचारी और
विशेषकर राजभाषा अधिकारियों की स्थितियों को प्रस्तुत करने के इस प्रयास के पीछे यह
उद्देश्य है कि यथासंभव अनुकूल परिवर्तन लाकर राजभाषा की राह को और आलोकित किया जा
सके जिसपर उपलब्धियों कि पताका लिए राहियों का अनंत काफिला चलता रहे। राही के रूप में
राजभाषा अधिकारियों का चयन इसलिए किया गया है कि यह तस्वीर स्पष्ट हो सके कि यदि राजभाषा
के सैनिकों कि यह स्थिति है तो कार्यालयों के सामान्य स्टाफ के बारे में सहज ही
कल्पना की जा सकती है।
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