गुरुवार, 11 जुलाई 2013

क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन – आयोजन, संयोजन

 क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन हमेशा प्रतिभागियों के लिए मोहक होता है पुरस्कार विजेताओं के लिए सम्मोहक होता है तथा कुछ प्रतिभागियों की दृष्टि में आलोचक होता है। इन तीन प्रमुख धाराओं में अनवरत नियमित क्षेत्री राजभाषा सम्मेलन सम्पन्न हो रहा है और अपनी प्रभावशीलता में गुणात्मक वृद्धि कर रहा है। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के सचिव, संयुक्त सचिव, विभाग के विभिन्न निदेशक, राजभाषा भारती पत्रिका की टीम, राजभाषा विभाग की टीम, संबन्धित क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय के उप-निदेशक और उनकी टीम, संबन्धित नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति के अध्यक्ष और टीम आदि मिलकर इस सम्मेलन को प्रभावशाली बनाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं और यह प्रयत्न हमेशा सफलता को प्राप्त करता है। इस आयोजन का प्रमुख आकर्षण सचिव, राजभाषा विभाग होते हैं जिनसे कुछ नयी बातें, राजभाषा की कतिपय नयी राहें, राजभाषा के उन्नयन के लिए नयी दृष्टि और नई निगाहें आदि की अनन्य अभिलाषा प्रतिभागियों में होती है। यह अभिलाषा इतनी प्रबल होती है कि इस सम्मेलन के आयोजन की सूचना मिलते ही नवीन जानकारियों की कामना में मन मोहित हो जाता है और सम्मेलन की तिथि का बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगता है।
मोहक आयोजन स्थल भी होता है क्योंकि देश के प्रत्येक राज्य में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आदि विविधताएँ लिए कई स्थल होते हैं जहां नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति कार्यरत होती है। अन्य कार्यालयों के मित्रों, परिचितों, नवागंतुकों आदि से मिलकर उनके कार्यालय के राजभाषा कार्यान्यवन में सुविधापूर्वक और स्वतंत्रतापूर्वक ताकने-झाँकने और जाँचने का अवसर मिलता है। इस प्रकार मोहकता के विभिन्न रूप हैं जिनकी यहाँ पर पूर्णरूपेण चर्चा कर पाना संभव नहीं है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आवश्यकता में यदि मोहकता का मिश्रण हो जाता है तब वह सम्मेलन महज एक कामकाजी आवश्यकता नहीं रह जाता बल्कि राजभाषा के सुरों से सजा एक एक ऐसा अनुपम गुलदस्ता हो जाता है जिसकी सुरभि प्रेरणा, प्रोत्साहन और प्रीति से ओत –प्रोत कर देती है। क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन में प्रत्येक प्रतिभागी को बोलने और सुनने का मौका मिलता है जिससे सम्प्रेषण केवल एकतरफा नहीं रहता बल्कि अभिव्यक्ति का एक ऐसा सशक्त मंच बन जाता है जहां न केवल भावनाओं, विचारों को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है बल्कि उनपर निर्णय लिए जाने का प्रस्ताव भी पारित होता है। यह वस्तुतः एक रोमांचकारी अनुभव है।

यह सम्मलेन एक दिवसीय होता है किन्तु इसके आयोजन, संयोजन में कई दिनों का अथक परिश्रम जुड़ा  होता है। जिस नगर या महानगर में इसका आयोजन होता है उससे संबन्धित क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय के उप-निदेशक के कंधों पर काफी ज़िम्मेदारी होती है। इन जिम्मेदारियों में से कुछ प्रमुख ज़िम्मेदारी निम्नलिखित हैं :
(1)   कार्यस्थल का चयन : सम्मेलन के लिए उचित कार्यस्थल का चयन काफी महत्वपूर्ण है। न्यूनतम 250 से 300 प्रतिभागियों के बैठने की व्यवस्था आवश्यक है। चयनित सभागार में यथोचि ध्वनि व्यवस्था का होना आवश्यक है। मंच कम से कम मध्यम आकार का होना चाहिए। पार्किंग की व्यवस्था होनी चाहिए। चयनित कार्यस्थल परिसर में चाय, भोजन के लिए उपयुक्त स्थान होना चाहिए। पंजीकरण तथा पत्रिका आदि प्रदर्शन के लिए परिसर में उचित जगह होनी चाहिए। सुविधापूर्वक जहां सब पहुँच सके ऐसा स्थल होना चाहिए।
(2)   सचिव से तिथि की प्राप्ति : चूंकि इस सम्मेलन के एक प्रमुख आकर्षण राजभाषा विभाग के सचिव होते हैं इसलिए सर्वप्रथम सम्मेलन आयोजन की तिथि का अनुमोदन सचिव से प्राप्त करना होता है। यदि किसी सम्मेलन के आयोजन तिथि से कुछ दिन पहले यह भनक तक लग जाती है कि सम्मेलन में सचिव की उपस्थिती संदेहपूर्ण है तो तत्काल 25% उपस्थिती में गिरावट आ जाती है विशेषकर वरिष्ठ प्रबंधन के अधिकारियों में। उप-निदेशक (कार्यान्यवन) पर यह दबाव रहता है कि सम्मेलन की तिथि निर्धारण से पहले तिथि का अनुमोदन सचिव से अवश्य करवाएँ और तिथि की घोषणा से पूर्व सचिव से तिथि अनुमोदन की पुष्टि अवश्य प्राप्त कर लें।
(3)   सूचना प्रेषण : प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय के अंतर्गत आनेवाले सभी कार्यालयों को यदि सम्मेलन में आमंत्रित किया जाये तो संभवतः आयोजन स्थल छोटा पड़ जाये। प्रायः ऐसा होता है कि आमंत्रण में उन कार्यालयों को प्राथमिकता दी जाती है जो राजभाषा कार्यान्यवन में सक्रिय हैं। आमंत्रण के दूसरे क्रम में ऐसे कार्यालय आते हैं जिनके अधीन कई छोटे कार्यालय (जैसे बैंकों की शाखाएँ) होते हैं। तीसरे क्रम में छोटे कार्यालय आते हैं। अक्सर यह तीसरे कार्यालय छूट जाते हैं क्योंकि इनमें ना तो राजभाषा विभाग होता है ना ही राजभाषा अधिकारी पदस्थ होता है। ऐसा आवश्यक नहीं कि निमंत्रित सभी कार्यालय सम्मेलन में सहभागी हों। सम्मेलन सभागार भर जाएगा कि खाली रहेगा यह अंदेशा आयोजन तिथि तक रहता है।
(4)   भोजन बनानेवाले का चयन : सम्मेलन में मंच, विशिष्ट अतिथियों, सहभागियों के बाद यदि कुछ महत्वपूर्ण होता है तो वह है चाय-पान और भोजन। इसके चयन में आयोजन कार्यस्थल के नाराकास की सक्रिय सहभागिता होती है। निर्धारित बजट में संतोषप्रद भोजन प्रदान करना भी एक चुनौतीपूर्ण कारी है, जिसे आखिर में सफलतापूर्वक अंजाम दे ही दिया जाता है।
(5)   सक्रिय कार्यकर्ताओं का चयन : आयोजन में विभिन्न कार्यों के लिए मानव श्रम की भी आवश्यकता होती है। कुशल और तत्काल उचित निर्णय ले सकनेवाले अधिकारियों का चयन कठिन कार्य है। निम्नलिखित कार्यों के लिए कुशल कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है :
(1)   पंजीकरण और फ़ाइल आदि प्रदान करने के लिए। (अक्सर यह कार्य राजभाषा विभाग के स्टाफ संभालते हैं)
(2)   सम्मेलन सभागार में बैठने की व्यवस्था नियंत्रित करने के लिए।
(3)   उद्घोषक/उद्घोषिका का चयन।
(4)   मंच पर पुरस्कार वितरण की प्रक्रिया को नियंत्रित करना। (प्रायः यह कार्य राजभाषा विभाग के अधिकारी संभालते हैं)
(5)   वाहन व्यवस्था का नियंत्रण।
(6)   आयोजन नगर में विभिन्न स्थलों पर बैनर लगाने के लिए उपयुक्त स्थल चयन।
(7)   अतिथियों को विमानपत्तन/रेल्वे स्टेशन से ले आना-ले जाना।
(8)   विशिष्ट व्यक्तियों की देखभाल।
(6)   सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु : सम्मेलन में स्थल विशेष की सांस्कृतिक विरासत की झलक के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। एक राजी में अनेकों सांस्कृतिक विधाएँ होती हैं उनमें से प्रमुखतम विधाओं का चयन तथा उन्हें बखूबी प्रदर्शित करनेवाले कलाकारों के चयन के लिए कार्यकर्ता की आवश्यकता होती है।
(7)   प्रेस नोट और पत्रकारों के लिए कार्यकर्ता : सम्मेलन से पहले और सम्मेलन के दिन तक स्थानीय प्रेस में सम्मेलन विषयक समाचार प्रकाशित करना और सम्मेलन की रिपोर्ट पत्रकारों को प्रदान करने के लिए कार्यकर्ता की जरूरत होती है। यद्यपि सम्मेलन रिपोर्ट में राजभाषा विभाग के अधिकारियों का सहयोग होता है किन्तु रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक अनुभवी कार्यकर्ता की आवश्यकता होती है।      
      उक्त प्रकार से और कई मदें हैं जिनमें सक्रिय कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है। अधिकांश कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजन स्थल से ही मिल जाते हैं, यदा-कदा क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय आयोजन स्थल से बाहर के अपने सदस्य कार्यालय से कोई अनुभवी कार्यकर्ता की सहायता प्राप्त करता है। यद्यपि क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन में सम्पूर्ण नियंत्रण गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, नयी दिल्ली का होता है किन्तु यह नियंत्रण निगरानी और आवश्यक दिशानिर्देश का होता है। सम्मेलन गरिमापूर्ण तरीके से सम्पन्न हो जाये राजभ्शा विभाग का यह मुख्य उद्देश्य होता है। निर्धारित ढांचे के अंतर्गत सम्मेलन को कौन सा क्षेत्र कितनी भव्यता और कुशलता से सम्पन्न कर पाता है इसका बहुत अधिक दारोमदार उस क्षेत्र के उप-निदेशक (कार्यान्यवन) के कंधों पर होता है।  



Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha

बुधवार, 5 जून 2013

ग क्षेत्र की गुहार

ज्ञातव्य है कि पूरे देश को तीन भाषिक क्षेत्र क, ख और ग में बांटा गया है। राजभाषा कार्यान्यवन की दृष्टि से ग क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की बात कही जाती है क्योंकि ग क्षेत्र की लिपि देवनागरी लिपि से काफी भिन्न है जिससे इस क्षेत्र में राजभाषा कामकाज में अन्य भाषिक क्षेत्रों की तुलना में कठिनाई अधिक होती है। क क्षेत्र हिन्दी भाषी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जबकि ख क्षेत्र के राज्यों की लिपि देवनागरी और देवनागरी लिपि सदृश्य होने के कारण हिन्दी भाषा के काफी करीब मानी  जाती है। इसके विपरीत ग क्षेत्र के राज्यों की लिपि देवनागरी लिपि से भिन्न होने के कारण राजभाषा से उतनी सहजता और सुगमता से अपना ताल-मेल नहीं बिठा पाती है। इसलिए ग क्षेत्र में राजभाषा कार्यान्यवन की कार्यनीतियाँ बिलकुल अलग और विशेष होती हैं। इस तथ्य पर विशेष ध्यान दिये बिना अधिकांश केंद्रीय कार्यालय, बैंक और उपक्रम ग क्षेत्र के लिए राजभाषा कार्यान्यवन के लिए विशेष योजना नहीं बनाते हैं फलस्वरूप परिणाम उत्साहवर्धक नहीं होते हैं।

      परिणामों में केवल राजभाषा के विभिन्न पुरस्कार ही नहीं सम्मिलित हैं बल्कि इसमें सम्प्रेषण भी सम्मिलित है। संपर्क, संवाद और संयोजन की एक सशक्त कड़ी सम्प्रेषण है और यदि सम्प्रेषण बाधित हो जाये तो क्या किया जा सकता है ? कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि जो संप्रेषित हो चुका है वह अपने श्रोता की भाषिक समझ के अनुसार अपना प्रभाव डाल चुका होता है। इसी भाव को यदि दूसरे शब्दों में अभिव्यक्त किया जाये तो उपमाओं और अलंकारों में अपनी बात कहनेवाला राजभाषा अधिकारी क और ख क्षेत्र में एक रोचक वक्ता के रूप में लोकप्रिय हो सकता है किन्तु ग क्षेत्र में ऐसे वक्ता को समझने के लिए कर्मचारियों को अधिक अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है। इतना ही नहीं बल्कि हिन्दी में सम्प्रेषण का  कहीं-कहीं अर्थ का अनर्थ भी निकल जाता है। अर्थ का अनर्थ निकलना एक स्वाभाविक घटना है न कि एक भाषिक दुर्घटना। शब्दों का भी अपना एक निजी स्पंदन होता है जिसमें देश, काल, स्थान की सांस्कृतिक, सामाजिक आदि अभिव्यक्ति निहित होती है।

      सम्प्रेषण और अभिव्यक्ति के बीच किसी भी भाषा के शब्द एक सेतु की भूमिका निभाते हैं। सेतु जितना सीधा, सपाट और सहज होगा गतिशीलता उतनी ही प्रखर और प्रयोजनमूलक होगी। ग क्षेत्र की भाषाएँ यद्यपि संस्कृत के शब्दों को भी अपने में समेटे हुये हैं किन्तु यदि उर्दू मिश्रित हिन्दी का प्रयोग किया जाता है तो कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। ग क्षेत्र के कार्यालयों आदि में राजभाषा के खालिस रूप में जो भी सम्प्रेषण किया जाएगा उसका परिणाम अच्छा निकलेगा। हिन्दी को आकर्षक बनाने के लिए यदि उर्दू की शब्दावली का सहारा लिया गया, या उपमा और अलंकार से सजाने की कोशिश की गयी तो समझिए अस्पष्ट अर्थ की ओर बढ़ने का खतरा उठाया जा रहा है। ऐसे में कहा या लिखा कुछ जाएगा और समझा कुछ जाएगा। ग क्षेत्र में भाषा को लेकर भावों की उड़ान नहीं भरी जा सकती बल्कि कार्यालय के धरातल पर रहकर छोटे-छोटे सरल, सीधे वाक्यों में अभिव्यक्ति ही सफल होती है। ना तो कविता चल पाएगी, ना ही ग़ज़ल अपना प्रभाव छोड़ पाएगा यदि कुछ चल पाएगा तो हिन्दी फिल्मों का लोकप्रिय गीत चल सकेगा। बस ग क्षेत्र में भाषिक रूप से उड़ान की सामान्यतया यही सीमा है।

      ग क्षेत्र के कार्यालयों में स्थानांतरण करते समय सामान्यतया इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसे राजभाषा अधिकारियों को स्थानांतरित किया जाये जो ग क्षेत्र के किसी एक राज्य की भाषा या संस्कृति से बखूबी परिचित हों। ऐसे राजभाषा अधिकारी भी सफल रहते हैं जो अंग्रेजी भाषा की तरह राजभाषा में जो लिखते हैं वही बोलते हैं। ग क्षेत्र के कर्मियों में राजभाषा को सीखने की लगन है किन्तु सीखने की यह लालसा विशेषकर राजभाषा की शब्दावली पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र के लोग जितनी सहजता से राजभाषा शब्दावली को सीख लेते हैं उतनी आसानी से हिन्दी बोलचाल के शब्दों को नहीं सीख पाते हैं। यह फर्क इसलिए है क्योंकि राजभाषा के शब्द अंग्रेजी में पहले से ही जबान पर रहते हैं उसका हिन्दी शब्द अपनाने में अधिक समय नहीं लगता। राजभाषा का शब्द अंग्रेजी शब्द का प्रतिरूप रहता है इसलिए पूर्णतया अपरिचित नहीं लगता है। छोटे सरल वाक्य और राजभाषा के शब्द इस क्षेत्र में राजभाषा की सरिता निर्मित करने की क्षमता रखते हैं। इस क्षेत्र में पदस्थ राजभाषा अधिकारी को अपने राजभाषा के सामान्य पत्राचार में लंबे-लंबे पत्रों को नहीं लिखना चाहिए। हिन्दी की तिमाही रिपोर्ट की समीक्षा या शाखा निरीक्षण की रिपोर्ट आदि स्वभावतः लंबे हो जाते हैं जिसे लिखते समय यथासंभव इन्हें स्पष्ट और छोटा रखना आवश्यक है। ग क्षेत्र में प्रायः हिन्दी में लिखे लंबे पत्र अपने उद्देश्य में पूर्णतया सफल नहीं हो पाते हैं।


      ग क्षेत्र की यही गुहार है कि वार्षिक कार्यक्रम के लक्ष्यों की तरह विभिन्न केंद्रीय कार्यालय, बैंक और उपक्रम अपने स्तर पर भी ग क्षेत्र के लिए विशेष योजना बनाएँ जिसमें राजभाषा अधिकारी की पदस्थापना, हिन्दी कार्यशाला प्रशिक्षण की समय सारिणी, कार्यशाला सामग्री, हिन्दी माह, पखवाड़ा, सप्ताह का आयोजन, क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न प्रोत्साहन योजनाएँ, नगर राजभाषा कार्यान्यवन समिति की क्षेत्र विशेष की लोकप्रिय राजकीय भाषा को दृष्टिगत रखते हुये विशेष योजनाएँ आदि सम्मिलित हैं। राजभाषा कार्यान्यवन में उल्लेखनीय प्रगति और उपलब्धि के लिए एक विशेष सोच को लागू करना समय की मांग है। व्यवहार में इसमें आरंभिक कठिनाई हो सकती है किन्तु एक बार गति मिल जाने से इसमें निरंतर सहजता और सरलता आती जाएगी। आवश्यकता है बस एक सार्थक पहल की।       

Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha

सोमवार, 29 अप्रैल 2013

क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन – एक सत्य-एक स्वप्न



    प्रत्येक सरकारी कार्यालय, बैंक और उपक्रम को वर्ष में एक बार क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। यह सम्मेलन राजभाषा का एक अति महत्वपूर्ण सम्मेलन के रूप में अपनी छवि बनाए हुये है। इस आयोजन को यदि राजभाषा का कुम्भ कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगाक्षेत्र विशेष में कार्यरत नगर राजभाषा कार्यान्यवन समितियां तथा उस समिति के सदस्य कार्यालय वर्ष भर आपसी तालमेल से नगर में राजभाषा कार्यान्यवन के विकास में प्रयासशील रहते हैं। भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के वार्षिक कार्यक्रम और अनुदेशों के अनुपालन की पुष्टि क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय को प्रेषित करते रहते हैं। इन सब प्रक्रियाओं के प्रतिफल में श्रेष्ठ राजभाषा कार्यान्यवन करनेवाले कार्यालयों, बैंकों और उपक्रमों को पुरस्कृत किया जाता है। पुरस्कार के अतिरिक्त राजभाषा की नवीनतम उपलब्धियों और सूचनाओं की जानकारी भी मिलती है।

    क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन को राजभाषा का कुम्भ कहने का आशय यही है कि यहाँ राजभाषा विभाग के सचिव से लेकर विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत राजभाषा अधिकारियों से मिलने का अवसर मिलता है, उन्हें सुनने का और अपने विचारों और सुझावों को प्रस्तुत करने का प्रचुर मौका मिलता है। इस प्रकार राजभाषा के विभिन्न भावों को अभिव्यक्ति मिलती है। राजभाषा का संपूर्णता में चिंतन और मनन होता है। प्रौद्योगिकी में राजभाषा के नए कदमों की  जानकारी मिलती है। यह सम्मेलन राजभाषा की एक साफ-सुथरी दृष्टि प्रदान करता है जिससे राजभाषा के असुलझे प्रश्नों को समाधान मिल जाता है। अन्य राजभाषा अधिकारियों से चर्चा कर राजभाषा की विभिन्न गति और प्रगति की जानकारी मिलती है। पंजीकरण के समय विभिन्न कार्यालयों की पत्रिकाओं से भी परिचय होता है जिसके माध्यम से कार्यालय कर्मियों में लेखन के क्षेत्र में हो रही उन्नति की झलक भी मिलती है।

    लेकिन क्या इतने से ही राजभाषा सम्मेलन को पूर्णता प्राप्त हो जाती है? वस्तुतः इतने से ही राजभाषा कार्यान्यवन का व्यापकता और गहनता से आकलन कर यथोचित दिशानिर्देश दिया जाता है। उक्त परिच्छेद में उल्लिखित सत्यता के अतिरिक्त सम्मेलन की हलचलों में ऐसे अनेक कथ्य उभरते रहते हैं जो सम्मेलन की कार्यसूची के अनुसार नहीं होते हैं किन्तु राजभाषा के कामकाज की प्रणाली की कई दिशाओं की ओर एक अस्पष्ट ईशारा मात्र होते हैं। यह कथ्य सम्मेलन में सम्मिलित राजभाषा अधिकारियों या राजभाषा से जुड़े कर्मियों की अभिव्यक्ति होती  हैं। राजभाषा के विभिन्न पक्षों के कथ्य सार्थक या निरर्थक होते हैं इसपर एक व्यापक बहस हो सकती है किन्तु यहाँ इस कहावत का उल्लेख करना आवश्यक है कि बिना आग धुआँ नहीं निकलता है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि ऐसे कथ्य किसी खास सम्मेलन में कहे जाते हों बल्कि लगभग सभी राजभाषा सम्मेलनों में कहे जाते हैं। ऐसे ही कुछ कथ्य निम्नलिखित हैं :-

1.   पंजीकरण के समय बैग प्रदान करना:- सम्मेलन के आरंभ में प्रतिभागियों द्वारा पंजीकरण के समय प्रत्येक सम्मेलन में एक बैग प्रदान किया जाता है। यह बैग किसी कार्यालय द्वारा प्रायोजित होता है। किसी सम्मेलन में इस प्रकार दिये जानेवाले बैग पर प्रायोजक कार्यालय का नाम नहीं होता है तो कहीं नाम के साथ बैग प्रदान किए जाते हैं।
कथ्य : बैग प्रदान करनेवाला कार्यालय पुरस्कार विजेता होता है। कभी भी ऐसा नहीं हुआ है कि बैग प्रदान करनेवाला कार्यालय पुरस्कार विजेता ना रहा हो। ऐसा क्यों होता है? पुरस्कार और बैग का क्या आपसी संबंध है? यह कथ्य प्रत्येक सम्मेलन में उभरता है और और पंजीकरण स्थल के परिवेश में घूमकर लुप्त हो जाता है।

2.  पुरस्कार के अंकों की जानकारी ना देना : - पुरस्कारों की घोषणा कर दी जाती है किन्तु मूल्यांकन के अंकों को बतलाया नहीं जाता है। राजभाषा कार्यान्यवन प्रेरणा और प्रोत्साहन पर आधारित है इसलिए यदि मूल्यांकन के अंकों की जानकारी क्षेत्राधीन सभी कार्यालयों को प्रदान कर दी जाय तो राजभाषा कार्यान्यवन में एक विशेष सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होगा।
कथ्य: मंच पर जब पुरस्कार प्रदान किया जाता है तो सभागार में यह बुदबुदाहट मुखरित होती है कि पुरस्कार मैनेज किया गया है। इस प्रकार के कथ्य सभी सम्मेलनों में सुनाई पड़ते हैं। किसी भी सम्मेलन के सभगार में इस प्रकार के कथ्यों के विरोध में आज तक कोई आवाज नहीं उभरी। क्या सम्मेलन दर सम्मेलन इस प्रकार के कथ्य राजभाषा कार्यान्यवन के लिए स्वास्थ्यवर्धक और परिणामदाई हो सकते हैं?

3.  राजभाषा अधिकारी से अन्य कार्य लिया जाना :- प्रत्येक सम्मेलन में खुला सत्र होता है जिसमें सहभागी राजभाषा विषयक अपने विचार, सुझाव आदि को प्रस्तुत करते हैं। इस खुले सत्र में उठाए जानेवाले सवाल भी लगभग पारंपरिक होते हैं जिसमें से बैंककर्मी सहभागी यह सवाल उठाते हैं कि बैंकों में राजभाषा अधिकारी को राजभाषा के कार्यों के अतिरिक्त बैंक के अन्य कार्य क्यों दिये जाते हैं? मंच इस प्रश्न को आवश्यक कार्रवाई हेतु नोट कर लेता है। एक आश्वासन भी दिया जाता है। प्रश्नकर्ता संतुष्ट भाव से इस विषयक संभावित अनुकूल परिवर्तन की प्रतीक्षा करने लगता है।
कथ्य: सभागार में यह आवाज भी उभरती है कि बैंक कि आंतरिक व्यवस्था को इस मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयोजन क्या है? अपनी आवश्यकतानुसार बैंक अधिकारी की सेवाएँ लेता है अतएव इस प्रणाली में राजभाषा विभाग की क्या भूमिका हो सकती है? कुछ प्रतिक्रियाएँ ऐसी भी गूँजती है कि राजभाषा अधिकारी की प्रतिभा और क्षमता पर यह निर्भर करता है। यदि राजभाषा अधिकारी राजभाषा कार्यान्यवन में पूर्णतया व्यस्त है तो वह अन्य कार्य के लिए समय ही नहीं दे पाएगा। इस विषयक समय-समय पर पत्र भी जारी किया जाता है। राजभाषा अधिकारी द्वारा सम्मेलनों में यह प्रश्न क्यों उठाया जाता है, यह अस्पष्ट है।

4.  वेतनमान में असंगतियाँ: केंद्रीय कार्यालय के सहभागी वेतनमान की असंगतियों को दूर करने का मुद्दा उठाते हैं जिसपर मंच से उत्तर दिया जाता है कि इस दिशा में निरंतर सुधार हो रहा है।
कथ्य: सभागार में यह आवाज उठती है कि यह सम्मेलन वेतनमान की विसंगतियों के लिए नहीं है बल्कि राजभाषा कार्यान्यवन विषयक चर्चाओं के लिए है। इस तरह के प्रश्न ना केवल अप्रासंगिक होते हैं बल्कि समय चुरानेवाले भी हैं।

5.   राजभाषा से जुड़े सभी समस्याओं के समाधान की तलाश: सम्मलेन में सहभागी अधिकांश राजभाषा अधिकारी और कर्मी यह सोचकर आते हैं कि राजभाषा विषयक सभी समस्याओं का तत्काल हल सम्मेलन में मिल जाएगा। राजभाषा विषयक कुछ ऊंची अपेक्षाएं जो यथार्थ के आवरण में लिपटी मूर्त रूप पाने के लिए उत्कंठित रहती हैं वह सम्मलेन में सशक्त रूप से मुखरित होने के लिए इतनी लालायित हो जाती हैं कि प्रायः अनियंत्रित अभिव्यक्ति का रूप ले लेती हैं। मंच प्रायः सांकेतिक दिशानिर्देश देता है जबकि सहभागी मंच से इतने स्पष्ट दिशानिर्देश की अपेक्षा रखते हैं कि उससे तत्काल परिणामदायी परिवर्तन हो जाये।
कथ्य: राजभाषा अधिकारियों और राजभाषा से जुड़े कर्मियों के लिए यह सम्मेलन एक वार्षिक राजभाषा उत्सव है जिसमें वे ना केवल अपने क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर कार्यरत राजभाषा अधिकारियों से मिलते हैं बल्कि राजभाषा विभाग के सचिव, संयुक्त सचिव आदि राजभाषा के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलता हैं उन्हें सुनते हैं। क्षेत्रीय कार्यान्यवन कार्यालय से क्षेत्र विशेष की ज्वलंत समस्याओं को प्राप्त कर उनका समाधान किया जाये तो सम्मेलन और प्रभावशाली हो जाएगा।

6.  सम्मेलन में लिए गए निर्णयों का कार्यान्यवन: सम्मेलन में यह भी प्रसंग चर्चा में रहता है कि लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों का कार्यान्यवन कहाँ होता है। लगभग प्रत्येक वर्ष यह सम्मेलन बहुत कुछ राजभाषा कार्यान्यवन के लिए दे जाता है जिसको सुनकर सम्मेलन स्थल तालियों की गड़गड़ाहट से काफी समय तक गूँजता रहता है किन्तु सम्मेलन के कई दिनों तक कार्यान्यवन की प्रतीक्षा कमतर होते-होते लुप्त हो जाती है और कुछ महीनों में नया सम्मेलन आ जाता है। यह भी चर्चा होती है कि हर वर्ष होनेवाले इस सम्मेलन का एक-दूसरे सम्मेलन से कोई नाता नहीं रहता है यद्यपि प्रत्येक सम्मेलन कि कार्यसूची एक समान होती है।
कथ्य: संबन्धित क्षेत्रीय कार्यालय यदि सम्मेलन का कार्यवृत्त तैयार कर अपने क्षेत्र के कार्यालयों को प्रेषित कर दे और आगामी सम्मेलन में कार्यवृत्त के महत्वपूर्ण निर्णयों की कृत कार्रवाई की सूचना प्रदान कर दे तो सम्मेलन और अधिक प्रभावशाली हो जाएगा।

7.  कार्यालय अध्यक्ष की उपस्थिती का लाभ उठाया जाये: सम्मेलन में कार्यालय अध्यक्ष आते हैं और चले जाते हैं। पुरस्कार विजेता कार्यालय अध्यक्ष पुरस्कार ग्रहण कर बैठ जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह भी विचार आता है कि सिर्फ बैठने के लिए सम्मेलन में क्यों जया जाये। राजभाषा विभाग का जो भी अनुदेश, दिशानिर्देश होगा उसका पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित कर लिया जाएगा। शायद यह भी एक कारण हो सकता है कि पुरस्कार विजेता कार्यालय अध्यक्ष के अतिरिक्त अन्य कार्यालयों से कार्यालय अध्यक्ष अपेक्षाकृत कम आते हैं।
कथ्य: सम्मेलन का कुछ समय कार्यालय अध्यक्ष के लिए निर्धारित किया जाये और पुरस्कार विजेता कार्यालयों के कार्यालय अध्यक्ष से राजभाषा कार्यान्यवन पर बोलने का अनुरोध किया जाये। अन्य कार्यालय के अध्यक्षों को भी बोलने के लिए आमंत्रित किया जाये। राजभाषा कार्यान्यवन के लिए यह प्रक्रिया विशेष लाभदायक साबित होगी।

यहाँ ना तो कोई सुझाव देने की कोशिश की जा रही है और ना ही किसी पक्ष को उत्तरदायी बनाकर सवालों की बौछार की जा रही है। बस एक प्रयास किया जा रहा है सम्मेलनों में प्रतिवर्ष बुदबुदाहट में उठे प्रश्नों को पिरोकर प्रस्तुत करने और एक समाधान के द्वारा उस दिशा में नए कर्म करने या नए निर्णय लेने का, आखिर जब बात राजभाषा कार्यान्यवन की उठती है तो नयी संभावनाओं को तलाशने के लिए मन स्वतः सक्रिय हो उठता है। यह राजभाषाई मन के नूतन दिशा गमन लिए चाहत की अकुलाहट भरी प्रस्तुति मात्र है।                       



Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha