रविवार, 27 मार्च 2011

राजभाषा अधिकारियों की लाचारियाँ


 
युग की बेतहाशा गति में जिस प्रकार अन्य विषयों ने अपनी गति बधाई है और तदनुसार प्रगति दिखने के लिए प्रयत्नशील हैं उस प्रकार राजभाषा की गति नहीं दिख रही है. इस संशय ने जब इस विषय पर एक व्यक्तिय खोज अभियान का प्रयास शुरू किया तो पता चला कि अधिकांश राजभाषा अधिकारी राजभाषा के सिवाय अपने कार्यालय के अन्य विभागों का कार्य कर रहें हैं. जब और अधिक गहराई तक तोह लेने कि कोशिश की गयी तो ज्ञात हुवा कि राजभाषा अधिकारियों को राजभाषा का कार्य नहीं करने दिया जाता है तथा उनसे कहा जाता है कि वे दूसरे विभागों को सहायता प्रदान करें. यह बात् मुझे स्वीकार्य नहीं हुयी तो मैंने सत्य को जानने के लिए अपने कई राजभाषा मित्रों से बातचीत कि तो यह सत्य प्रकट हुवा कि खुद राजभाषा अधिकारी ही रुचिपूर्वक अपना कार्य नहीं करते हैं इसलिए उन्हें दूसरे कार्यों का दायित्व दिया जाता है. विशेषज्ञ राजभाषा अधिकारी जब अपना काम लगन से नहीं करेंगे तो फिर उन्हें कौन प्रेरित करेगा ?

विभिन्न प्रकार के सरकारी कार्यालयों, उपक्रमों, बैंकों में राजभाषा कार्यान्यवन का मात्र एक प्रमुख प्रगति मापक वह है हिंदी की तिमाही रिपोर्ट. यदि तीन महीने में एक बार इस दो पृष्ठ के रिपोर्ट को भर कर भेज दिया जाये तो राजभाषा कार्यान्वयन का कार्य पूर्ण समझा जाता है. यह मेरी राय नहीं है बल्कि राजभाषा अधिकारियों ने इतने लंबे समय से राजभाषा को इसी रूप में स्थापित किया है. यदि तीन महीने में एक रिपोर्ट पर ही राजभाषा आधारित है तो क्यों कोई प्रबंधन अपनी मानव शक्ति को जाया जाने देगा वह कोई अन्य कार्य अवश्य देगा और देना भी चाहिए. ऐसी परिस्थिति में तो एकमात्र यही मार्ग दिखता है. राजभाषा अधिकारियों को यह नहीं मालूम कि उनकी राजभाषा के प्रति तिमाही रिपोर्ट को आखरी मंजिल बना देना आज उनके लिए ही कठिन स्थितियां निर्मित कर रहा है. यदि कोई राजभाषा अधिकारी यह कहता है कि उसके पास राजभाषा का इतना कार्य है कि वह दूसरा कार्य नहीं कर सकता और वह अपने कार्य से यह दर्शाता भी है तो प्रबंधन उसे राजभाषा का ही कार्य करने देता है लेकिन ऐसे लोग अँगुलियों पर गिने जाने की संख्या में हैं.

अपनी धूरी से हट जाने से राजभाषा अधिकारी अपनी विशेष पहचान भी खो रहें हैं जिसके परिणामस्वरूप कार्यालय में उन्हें मान-सम्मान की जो जगह मिलनी चाहिए वह दूर होती नज़र आ रही है. अब उन्हें कहीं भी कार्य के लिए बुला लिया जाता है. स्थिति यह निर्मित हो गयी है कि प्रबंधन यह समझने लगा है कि कार्यान्वयन कि चुनौतियों का सामना करने कि शक्ति अब अधिकांश राजभाषा अधिकारियों में नहीं रह गयी है. इसका कारण यह है कि राजभाषा अधिकारी वर्तमान राजभाषा परिवेश से ना तो पूरी तरह अवगत हैं और ना ही अद्यतन. तिमाही रिपोर्ट कि परिक्रमा कर राजभाषा कार्यान्वयन को पूर्ण मान लेनेवाले राजभाषा अधिकारियों को यह नहीं मालूम कि उन्होनें स्वंय को बाँध लिया है. इसके अतिरिक्त प्रौद्योगिकी कि चुनौतियाँ अलग से है. अधिकांश राजभाषा अधिकारी अब भी कंप्यूटर से कतराते हैं यदि उनपर कंप्यूटर पर कार्य करने को जोर डाला जाये तो कहते हैं कि आँखें कौन खराब करे. अर्थात आज से बीस वर्ष पूर्व राजभाषा जैसे थी आज भी वैसे ही है.

आज राजभाषा अधिकारी अपने को हाशिए पर पा रहा है. राजभाषा कि नयी चुनौतियों के लिए ना तो उसके मन में कुछ सीखने कि कामना है और ना ही अपने खुद के प्रयासों से वह प्रतियोगिता के युग में अपने महत्व को स्थापित कर पा रहा है. इसके बावजूद भी वह पदोन्नति कि स्वाभाविक कामना से पूरी तरह से ग्रसित है. आश्चर्य की बात यह है कि राजभाषा अधिकारियों के कार्यों कि गहन समीक्षा अब तक नहीं की गयी जिसके कारण इनकी समस्याएं, संभावनाएं तथा क्षमताएं अभी भी अनदेखी और अपरिचित हैं. इस दिशा में अविलम्ब सार्थक एवं सक्रिय प्रयास की आवश्यकता है अन्यथा राजभाषा अधिकारी केवल एक पदनाम में ही सिमट कर रह जायेगा.  


Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha

बुधवार, 16 मार्च 2011

राजभाषा पर कुछ प्रश्नों के नमूने

राजभाषा से संबंधित प्रश्नों के बारे में  प्राय: यह प्रश्न किया जाता है कि पूछेजानेवाले प्रश्न किस प्रकार के होने चाहिए। कभी किसी साक्षात्कार के लिए, कभी प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के लिए राजभाषा के प्रश्नों की आवश्यकता होती रहती है और इसकी मॉग भी होती रहती है। यद्यपि राजभाषा पर प्रश्नों की एक श्रृंखला को निर्मित कर पाना लगभग प्रत्येक कार्यालय चाहता है किन्तु किसी कारणवश प्रश्न नहीं बन पाते हैं, ऐसी परिस्थितियों में सहायता के लिए कुछ प्रश्न नमूने के तौर पर दिए जा रहे हैं। इस प्रकार अनेकों प्रश्न बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न1. संविधान के कुल कितने अनुच्छेदों में राजभाषा नीति संबंधी प्रावधान है?
उत्तर. कुल 9 अनुच्छेद. अनुच्छेद 343 से 351.

प्रश्न 2. अष्टम अनुसूची में कुल कितनी भाषाएं हैं? नाम बतलाएं।
उत्तर. कुल 22 भाषाएं हैं।
हिंदी, संथाली, संस्कृत, मराठी, बोडो, कश्मीरी, मलयालम, तेलुगु, नेपाली, मणिपुरी, कोंकणी, असमिया, डोंगरी, पंजाबी, कन्नड़, उड़िया,तमिल, सिंधी, बँगला, गुजराती, उर्दू, मैथिली।

प्रश्न 3. संसदीय राजभाषा समिति में कुल कितने सदस्य होते है?
उत्तर- कुल 30 सदस्य। लोकसभा से 20 तथा राज्यसभा से 10.

प्रश्न 4. संसदीय राजभाषा समिति की किस उप-समिति द्वारा बैंकों का निरीक्षण किया जाता है ?
उत्तर. तृतीय उप समिति.

प्रश्न 5. राजभाषा अधिनियम की धारा 3 में किस बात का उल्लेख है ?
उत्तर  हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में किया जा सकता है।

प्रश्न 6. अनुच्छेद 348 में किस विषय पर चर्चा की गई है?
उत्तर- उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों आदि की भाषा पर चर्चा की गई है।

प्रश्न 6. संविधान ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में किस तिथि को स्वीकार किया ?
उत्तर- 14 सितंबर, 1949.
-2-
प्रश्न 7. राष्ट्रपति के आदेश कुल कितने खंडों में जारी हो चुके हैं ?
उत्तर – 8 खंडों में.

प्रश्न 8. क्या आपके अंचल को बैंक ऑफ़ इंडिया का पुरस्कार प्राप्त हुआ है ?

प्रश्न 9. क्या अंचल को नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति का पुरस्कार प्राप्त हुआ है ?

प्रश्न 10. कम्प्यूटर के बढ़ते प्रभाव से क्या बैंक के कामकाज में राजभाषा की प्रगति हो पाएगी ? कैसे ?

प्रश्न 11. किसी प्रदेश की राजभाषा यदि हिंदी को बनाया जाना हो तो उसके लिए क्या प्रक्रिया अपनानी होगी ?
उत्तर – उस राज्य की विधानसभा को इस विषयक प्रस्ताव पारित करना होगा।

प्रश्न 12. अंग्रेजी में लिखित किन्तु हिंदी में हस्ताक्षरित पत्र की गणना अंग्रेजी पत्र में की जाएगी या हिंदी में ?
उत्तर – अंग्रेजी में.

प्रश्न 13. हमारे देश में भाषा का फार्मूला द्विभाषिक है या त्रिभाषिक है ?
उत्तर – त्रिभाषिक.

प्रश्न 14. भारत सरकार की राजभाषा नीति के कार्यान्मयन का मूल आधार क्या है ?
उत्तर – 1. प्रेरणा और प्रोत्साहन
      2. सावैधानिक प्रावधान.

प्रश्न 15. राजभाषा कार्यान्वयन समिति का अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर – कार्यालय का वरिष्ठतम प्राधिकारी।

प्रश्न 16. यूनिकोड क्या है ?
उत्तर - यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है,
  • चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो,
  • चाहे कोई भी प्रोग्राम हो,
  • चाहे कोई भी भाषा हो।
श्न 17. विश्व हिंदी दिवस प्रतिवर्ष किस तिथि को मनाया जाता है ?
उत्तर- 10 जनवरी.

प्रश्न 18. क्या राजभाषा नियम, 1976 का विस्तार सम्पूर्ण भारत में है ?
उत्तर - इनका विस्तार, तमिलनाडु राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।

प्रश्न 19. क्या वार्षिक कार्यक्रम राजभाषा का प्रकाशन संकल्प, 1968 के अनुपालन में किया जाता है ?
उत्तर – हॉ

प्रश्न 20. यदि हमारी कोई शाखा भारत सरकार के राजपत्र में अधिसूचित है तो इसका क्या मतलब है ?
उत्तर – उस शाखा के 80% कर्मचारियों को हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त है।

प्रश्न 21- क्या हिंदी पत्राचार की गणना में हिंदी में प्रेषित ई-मेल को जोड़ा जाना चाहिए ?
उत्तर – हॉ.

प्रश्न 22. भारत के संसद में यदि कोई सदस्य को हिंदी या अंग्रेजी में अभिव्यक्त नहीं कर सकता है तो ऐसी स्थिति में सदन में क्या प्रावधान है ?
उत्तर – सदस्य को मातृभाषा में बोलने की अनुमति दी जा सकती है।

प्रश्न 23. राष्ट्रपति के आदेश में 1965 के उपरान्त संघ के लिए हिंदी का क्या प्रावधान है ?
उत्तर – 1965 के उपरान्त हिंदी संघ की मुख्य राजभाषा हो जाएगी तथा अंग्रेजी सहायक राजभाषा के रूप में चलती रहनी चाहिए।

प्रश्न 24. बैंक ऑफ़ इंडिया को राजभाषा पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कौन से प्रयास करने चाहिए ?
उत्तर – 1. बेहतर और प्रगतिशील रिपोर्टिंग
2.  राजभाषा कार्यान्वयन के विशिष्ट कार्य
3.  संगोष्ठियों, सेमिनारों आदि का आयोजन
4.  प्रत्येक आयोजन और उपलब्धियों में यथासंभव भारत
सरकार, राजभाषा विभाग के प्रतिनिधियों को सम्मिलित
करना.
5. भारतीय रिज़र्व बैंक के पुरस्कार प्राप्त करना.
प्रश्न 4. अनुच्छेद 351 में हिंदी के लिए क्या उपबन्ध है ?
उत्तर – हिंदी का विकास ऐसा किया जाए कि वह भारत के सामासिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।

प्रश्न 25. शब्दावली आयोग द्वारा मान्य किए गए अनुसार शब्दावली तैयार करने में मुख्य लक्ष्य क्या होना चाहिए?
उत्तर – स्पष्टता, यथार्थता और सरलता होनी चाहिए।

प्रश्न 26. राष्ट्रपति आदेश में किस उम्र तक के केन्द्रीय कर्मचारियों को सेवाकालीन प्रशिक्षण अनिवार्य है  ?
उत्तर – 45 वर्ष.
प्रश्न 27. राजभाषा संकल्प, 1968 किसके द्वारा पारित किया गया ?
उत्तर – दोनों सदनों द्वारा,

प्रश्न 28. संविधान की आठवीं अनुसूची में भारतीय भाषाओं को सम्मिलित करने का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर - देश की  शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक उन्नति के लिए इन भाषाओं के पूर्ण विकास हेतु सामूहिक उपाए किया जाना मुख्य उद्देश्य है।

प्रश्न 29. एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में हिंदी की फाईलें खोलने पर एक भी शब्द नहीं दिखलाई पड़ता है, ऐसा क्यों होता है ? क्या इसका कोई समाधान है ?
उत्तर – उस फाईल का फॉन्ट कम्प्यूटर में नहीं रहता है इसलिए एक भी शब्द नहीं दिखलाई पड़ता है। यूनिकोड से अब यह समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो गई है।

प्रश्न 30. आपके अनुसार वर्तमान में राजभाषा कार्यान्वयन में कौन-कौन सी प्रमुख कठिनाईयॉ है ?
उत्तर – कोई कठिनाई नहीं है।




रविवार, 27 फ़रवरी 2011

राजभाषा अधिकारी, पदोन्नति और साक्षात्कार

यूँ तो किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंकों और उपक्रमों में राजभाषा अधिकारी की पदोन्नति केवल एक सीमा तक ही होती है और उसी निर्धारित सीमा के अंतर्गत राजभाषा अधिकारियों की पदोन्नति प्रक्रियाएं भी की जाती हैं. केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों, राष्ट्रीयकृत बैंकों तथा उपक्रमों में राजभाषा अधिकारी एक आवश्यकता है इसलिए इन कार्यालयों में राजभाषा विभाग और राजभाषा अधिकारी ज़रूर होते हैं. एक ही समय में अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए राजभाषा अधिकारी 52-55 की उम्र तक बमुश्किल अपनी संस्था के मध्य प्रबंधन तक पहुँच पाते हैं जबकि उन्हीं के साथ नौकरी में लगे संस्था के अन्य अधिकारी इस उम्र तक आते-आते वरिष्ठ प्रबंधन और कार्यपालक तक के पद पर पहुँच जाते हैं. इसका प्रमुख कारण है राजभाषा अधिकारियों को संस्था विशेष के मुख्य धारा का अंग नहीं माना जाता है तथा उनकी भूमिका एक सहायक विभाग की होती है इसलिए इनकी पदोन्नति भी कछुए से भी धीमी गति से होती है. इसके बावजूद भी साक्षात्कार की प्रक्रिया वर्ष दर वर्ष जारी रहती है और कनिष्ठ प्रबंधन में अधिक संख्या में पदोन्नति मिलती है जबकि मध्य प्रबंधन में पदोन्नति अधिकतम 2-3 कि संख्या तक सिमट जाती है और वरिष्ठ प्रबंधन तक पहुंचते-पहुंचते संख्या केवल एक तक भी सिमट जाती है.

सामन्यतया राजभाषा अधिकारी अपने संस्था के विभिन्न अधिकारी संवर्ग में अन्य अधिकारियों से काफी वरिष्ठ होता है जिसका एकमात्र कारण है उनको संस्था के अन्य अधिकारियों की तरह पदोन्नति का अवसर न मिल पाना और पदोन्नति के प्राप्त अवसरों में काफी कम संख्या में पदोन्नति करना. संस्था विशेष के प्रबंध की यह एक सामान्य सोच है कि चूँकि राजभाषा अधिकारी एक विशिष्ट निर्धारित कार्य करते हैं इसलिए पदोन्नति कुछ विशेष सहायक नहीं होती यदि इसे शुद्धतः कार्य के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो. दूसरा सामान्य मत है कि एक-दो अधिकारी यदि वरिष्ठ प्रबंधन में हैं तो इससे संस्था का कार्य आसानी से चल जाता इसलिए अधिक संख्या में पदोन्नति भविष्य में प्रबंधन के लिए यह उलझन पैदा कर सकती है कि अब इससे आगे पदोन्नति कैसे दी जाए. एकमात्र राजभाषा अधिकारी ही है जिसे किसी भी संस्था में पदोन्नति के पूर्वनिर्धारित दायरे के बारे में सेवाग्रहण करते समय ही ज्ञात रहता है अर्थात प्रत्येक राजभाषा अधिकारी को यह मालूम रहता है कि राजभाषा अधिकारी के पद पर कार्य करते हुए उसे एक सीमा तक ही पदोन्नति मिल सकती है जबकि इसका उल्लेख उसके नियुक्ति पत्र में कहीं भी नहीं रहता है. उसके साथ कार्यग्रहण किये अधिकारी काफी पहले ही उससे आगे निकल जाते हैं लेकिन आश्चर्य तब होता है जब उसके लिपिक और टंकक जो यदि संस्था के सामान्य धारा के हुए तो उससे आगे निकलकर वरिष्ठ अधिकारी के पद पर पहुँच जाते हैं यह विशेषकर बैंकिंग में होता है. इसके बावजूद उससे 5-7-10 वर्ष बाद में कार्यग्रहण किये अधिकारी भी उससे वरिष्ठ हो जाते हैं.

राजभाषा अधिकारियों के साक्षात्कार सामान्यतया दो प्रकार के होते हैं. पहला प्रकार तब उपयोग में लाया जाता है जब राजभाषा के आरम्भिक पद पर एक प्रतियोगी कि नियुक्ति होती है. इस दौरान उससे हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य, उसके अनुभव, संस्था विषयक प्रमुख बातें कि जाती हैं. दूसरा रूप तब प्रयोग में लाया जाता है जब राजभाषा अधिकारी को पदोन्नति दी जाती है. इस प्रक्रिया में विशेषकर राजभाषा नीति और संस्था के कारोबार के कुछ अति महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं. पहली प्रक्रिया में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सम्मिलित होते हैं जबकि दूसरी प्रक्रिया पूर्णतः आंतरिक होती है जिसमें हिंदी का एक भी विशेषज्ञ नहीं होता होता है.
  
राजभाषा अधिकारी मनोयोग से राजभाषा कार्यान्वयन करता है और संस्था विशेष में राजभाषा को गति देने के लिए प्रयत्नशील रहता है. प्रत्येक कार्यालय में राजभाषा अधिकारी एक मील के पत्थर की तरह राजभाषा नीति का ध्वज लिए कार्यान्वयन हेतु सजग,सचेत होकर प्रयत्नशील रहता है और सम्बंधित चुनौतियों से जूझते रहता है. किसी भी आयोजन, सभा, समारोह आदि में राजभाषा अधिकारी की वही भूमिका होती है जैसे कि हिंदू समाज के किसी धार्मिक कार्य में पुरोहित कि भूमिका होती है तथापि राष्ट्रीयकृत बैंकों और उपक्रमों में उसकी पदोन्नति एक निर्धारित दायरे में होती है. राजभाषा अधिकारी लगातार राजभाषा तथा हिंदी में स्वयं को मांजते जाता है और संस्था कि छवि और राजभाषा प्रगति के ग्राफ को संतोषप्रद स्तर तक बनाये रखता है. उसके इन कार्यों में प्रबंधन का भरपूर सहयोग मिलता है, प्रसंशाएं मिलती हैं यदि कुछ नहीं मिलता तो वह है पदोन्नति. प्रबंधन से मिल रहें सहयोग से यह भी स्पष्ट होता है कि राजभाषा अधिकारियों की सीमित पदोन्नति शायद संस्था विशेष कि समस्या ना होकर सम्बंधित उद्योग से जुड़ी समस्या हो जिसपर व्यापक स्तर पर ध्यान देने कि आवश्यकता है. नब्बे के दशक में हिंदी से स्नातकोत्तर पदवी धारक को अपना कैरीअर बनाने कि जितनी संभावना थी उससे कई गुना अधिक अवसर वर्तमान में है इसलिए बहुत कम संख्या में युवा वर्ग राजभाषा अधिकारी के रूप में अपना कैरीअर आरम्भ करना पसंद कर रहें हैं. यदि यही सिलसिला रहा तो एक समय ऐसा भी आएगा कि राजभाषा अधिकारी मिलेंगे ही नहीं इसलिए समय रहते इसपर विचार किया जाना आवश्यक है.


 Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

राजभाषा सम्मेलन के अनछुए पहलू

राजभाषा के वृहद और व्यापक समीक्षा और संभावनाओं के लिए राजभाषा सम्मेलन का चलन है. प्रायः सभी कार्यालय प्रतिवर्ष राजभाषा सम्मेलन का आयोजन करते हैं. इस आयोजन की प्रमुख विशेषता केवल आयोजन की विभिन्न प्रस्तुतियों तक ही सिमित नहीं होती है बल्कि आयोजन की तैयारियों में भी विशेषताएं होती हैं. यदा-कदा सम्मेलन के निष्कर्षों का उल्लेख हुआ है किन्तु सम्मेलन के आदि और अंत पर न तो कोई चर्चा हुई है और न ही कहीं इसका उल्लेख है इसलिए यह आवश्यक लगा कि राजभाषा सम्मेलन के कुछ अनछुए पहलुओं की चर्चा की जाये.

अंक के लिए आवश्यक है कई कार्यालय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन राजभाषा के विभिन्न पक्षों पर गंभीरतापूर्वक चर्चा करने के बजाय इसलिए करते हैं कि इसके आयोजन पर राजभाषा पुरस्कार प्राप्ति के लिए अंक मिलते हैं. ऐसे कार्यालय इस मत के अनुयायी होते हैं कि पत्र,परिपत्र आदि के द्वारा वे सफलतापूर्वक राजभाषा सन्देश को प्रेषित और कार्यान्वित कर सकते हैं इसलिए सम्मेलन उन्हें इंक प्राप्ति के लिए एक आवश्यक औपचारिकता लगती है जिसका निर्वहन करते हैं. अभी तक ना तो कोई ऐसा आधार है और ना ही कोई सर्वेक्षण है जिसके आधार पर अंक के लिए आयोजित सम्मेलनों का प्रतिशत बतलाया जा सके इसलिए बस चर्चा ही काफी है.

रमणीय स्थल का चयन सम्मेलन आयोजन का प्रथम चरण है स्थल का चयन. अब तक के राजभाषा सम्मेलनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आयोजन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है रमणीय स्थल का चयन. सम्मेलन की कार्यसूची में बहुत कम लोगों की रूचि होती है ज्यादातर लोग आयोजन स्थल की रमणीयता के अध्हर पर सम्मेलन की सफलता को आंकते हैं. रमणीय स्थल से दो लाभ होते हैं एक लाभ यह कि सम्मेलन में सम्मिलित होने कि एक ललक उत्पन्न होती है और दूसरा लाभ यह कि परिवार का सदस्य भी साथ चलने को तैयार हो जाता है जिसे दूसरे शब्दों में सरकारी खर्चे पर पारिवारिक भ्रमण भी कहा जा सकता है. इसे ही कहते हैं आम के आम और गुठलियों के दाम.

संचालन का दायित्व – कुछ समय पहले तक कार्यालय के किसी राजभाषा अधिकारी का ही यह दायित्व होता था कि वह सम्मेलन के सत्रों का संचालन करे किन्तु हाल-फिलहाल संचालन में भी रमणीयता लाने कि परम्परा आरम्भ हो गयी है अतएव अब यह आवश्यक नहीं कि संचालनकर्ता राजभाषा से बखूबी परिचित हो बल्कि जरुरी यह हो गया है कि संचालनकर्ता अपने रूप-रंग और अदा से सम्मेलन को कितना मोहित कर सकता है. रमणीय स्थल पर यदि मोहक संचालनकर्ता ना हो तो भला सोने पर सुहागा कैसे होगा. यही कारण है कि संचालन का कार्यभार यथासंभव युवती को सौंपा जता है भले ही राजभाषा उससे कोसों दूर क्यों ना हो. संचालन में होनेवाली त्रुटियाँ क्षम्य हो जाती हैं वैसे भी ज्ञात है कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं.

पंजीकरण – सम्मेलन का प्रथम चरण पंजीकरण का होता है जहाँ प्रतिभागी पाना नाम, पदनाम, कार्यालय का पता आदि दर्ज कर अपना हस्ताक्षर करते हैं. पंजीकरण के समय प्रतिभागी अति सक्रिय रहते हैं क्योंकि इसी समय प्रतिभागियों को बैग आदि प्रदान किया जाता है. अति सक्रियता इसलिए रहती रहती है कि यह अंदेशा रहता है कि कहीं बैग समाप्त ना हो जाये और सम्मेलन कि एकमात्र प्रत्यक्ष निशानी से प्रतिभागी वंचित ना रह जाये फिर भले ही इसके लिए लाइन तोड़नी पड़े या धक्का-मुक्की करना पड़े सब जायज है. यहं पर यह उल्लेख करना भी जायज है कि कुछ ऐसे प्रतिभागी भी होते हैं जो इस सिद्धांत के अनुयायी होते हैं कि यदि एक बैग लिया तो क्या लिया मज़ा तो तब है जब एक से अधिक बैग प्राप्त किया जाये. भीड़ से अलग दिखने के लिए अतरिक्त प्रयास तो आवश्यक होता है. इसी सिद्धांत के अनुआयियों द्वारा पंजीकरण को एक युद्धभूमि में परिवर्तित करने का प्रयास किया जाता है और आयोजक चाहे जितनी युगत लगा ले वह सबको बैग नहीं दे पाता और खेदपूर्वक बैग समाप्त होने कि सूचना देनी पड़ती है.

अल्पाहार का समय – चाय की प्यालियों के संग सब मिलते हैं और आपसी कुशल-मंगल के बाद इस तैयारी में लग जाते हैं की दोपहर के भोजन के बाद किस दर्शनीय स्थल पर सुविधापूर्वक पहुंचा जा सकता है. दर्शनीय स्थल पर जाने की टोलियाँ बन्ने लगती हैं और यात्रा के विभिन्न पक्षों पर चर्चा होने लगती है और इस चर्चा के दौरान यह भी ज्ञात नहीं रहता कि सम्मेलन कि अगली कार्यवाई प्राम्भ हो चुकी है. बार-बार के बुलावे के बाद कुछ लोग अपने स्थान पर पहुँचते हैं. यहाँ यह बतला देना आवश्यक है कि दोपहर के भोजन के बाद सम्मेलन से चले जाना एक आम बात है जिसके दो प्रमुख कारण हैं, पहला कारण यह कि भोजन हो जाता है तथा दूसरा कर्ण यह कि भोजन के बाद प्रौद्योगिकी का सत्र होता है जिसे समझ पाना आसान नहीं होता है इक्योंकी ऐसे लोग प्रौद्योगिकी से काफी दूर होते हैं.

दोपहर का भोजन – यद्यपि सम्पूर्ण कार्यक्रम कि जानकारी सभी प्रतिभागियों के पास उपलब्ध होती है इसलिए जैसे ही भोजन के लिए कुछ समय शेष रहता है किछ लोग कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर भोजन पर टूट पड़ते हैं. जल्दीबाजी इसलिए करते हैं कि भोजन कि कतार से बच जाते हैं और जल्दी से अपने भोजन समाप्त कर भ्रमण के लिए प्रस्थान कर पाते हैं.

ज्यादातर लोगों का राजभाषा सम्मेलन से बस इतना ही अनुराग रहता है. इसके बावजूद भी राजभाषा सम्मेलन सफल और प्रभावी होते हैं. यदि थोड़ी और गंभीरता आ जाये तो राजभाषा कार्यान्वयन बेहद प्रभावशाली और परिणामदायी हो जायेगी.







Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

विश्व हिंदी दिवस

हिंदी दिवस के संग विश्व हिंदी दिवस का मनाया जाना हमारे लिए आश्चर्यजनक हो सकता है। आश्चर्य शब्द का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है कि हमारे भारत देश में अभी तक हिंदी राजभाषा के रूप में सरकारी कार्यालयों तक पैठी ही नहीं, उच्च शिक्षा के पाठ्यसामग्रियों में तथा कक्षाओं के विभिन्न सत्र में बैठी ही नहीं और चल पड़ी हिंदी विश्व की और, आखिर यह माज़रा क्या है। भारतीय भाषाओं के प्रति भारतीयों की सामान्य प्रतिक्रिया कुछ ऐसी ही होती है और भाषाएं लहरों की तरह अपनी मंज़िलें तय करती रहती हैं अथक, अनवरत और असीमित। यदि भारतीय विश्व में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर रहे हैं तब उनकी भाषा को विश्व में दर्ज़ करने को कब तक टाला जा सकता है। हिंदी की भी यही स्थिति है। कहीं बोलचाल के रूप में, कहीं गीत-संगीत में ढली हुई, कहीं तीज-त्यौहार में उमंगमयी तो कहीं भक्ति-दर्शन आदि अनेक रूपों में हिंदी विश्व में पाई जा रही है। हिंदी के इस विस्तार के बारे में कितने भारतीय परिचित हैं यह कहना कठिन है किंतु यह कहा जा सकता है कि हिंदी के विस्तार के बारे में अनभिज्ञता बनी हुई है जो हिंदी के साथ-साथ राजभाषा के लिए हितकर नहीं कहा जा सकता है। वर्तमान युग में भाषा के वर्चस्वता की प्रतियोगितापूर्ण दौड़ में यदि विश्व हिंदी दिवस का आयोजन न किया जाए तो हम अपनी भाषिक शक्ति का न तो प्रदर्शन कर पाएंगे और न ही विश्व में फैले हिंदी प्रेमियों को एक मंच ही प्रदान कर पाएंगे इसलिए विश्व हिंदी दिवस का आयोजन केवल एक आवश्यकता ही नहीं है बल्कि समय की मांग है।

समय की मांग के संग चलना सामान्यतया अत्यावश्यक होता है किंतु उस मांग की पूर्ति करना सामान्यतया एक कठिन चुनौती लगती है। चूंकि हिंदी विश्व में फैली हुई है इसलिए विश्व हिंदी दिवस के द्वारा हिंदी को सहज, सरल बनाते रहने के साथ-साथ इसके एकरूपता पर भी ध्यान देना आवश्यक है अन्यथा हिंदी भाषा में भटकाव आ सकता है। यह एक चुनैतीपूर्ण कार्य है। इसके अतिरिक्त विश्व हिंदी दिवस के आयोजन के द्वारा विश्व की भाषाएं मित्रवत हिंदी की तरफ बढ़ेंगी जिससे हिंदी का साहित्य भी समृद्ध होगा। भूमंडलीकरण के दौर में केवल कुछ राष्ट्रों तक सिमट कर रहने से व्यापक लाभ नहीं होगा बल्कि इसके लिए अधिकाधिक देशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक उन्नत और उन्नतिशील देश अपनी-अपनी भाषाओं के प्रसार के लिए पयत्नशील हैं तो तमाम खूबियोंवाली हिंदी के लिए विश्व में मुनादी से हिंदी को क्यों वंचित रखा जाए, आखिरकार विश्व में अनिवासी भारतीय के रूप में हिंदी के प्रतिनिधियों की सशक्त टीम भी तो है। विश्व हिंदी दिवस को हिंदी से जुड़े आयोजन विश्व में हिंदी की लोकप्रियता का संदेश देंगे तथा साथ ही यह भी दर्शाएंगे कि हिंदी भारतीयों के दिल की भाषा है। यदि इस प्रकार विश्व हिंदी दिवस संदेश देने में सफल हो जाता है तो हिंदी विश्वभाषा बनने की होड़ में अपनी प्रबल दावेदारी रख सकेगी।

विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य विश्व में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए जागरूकता पैदा करना तथा हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। इसी संकल्पना सहित 14 जनवरी 1975 से विश्व हिंदी सम्मेलन का आरम्भ हुआ जिसकी संख्या अब तक कुल आठ हो चुकी है जिसके देश मॉरिशस,नई दिल्ली,मॉरिशस,त्रिनिडाड व टोबैगो, लंदन, सूरीनाम और न्यूयार्क हैं। 14 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में यह संकल्प पारित हुआ कि प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाए। हिंदी दिवस जिस तरह सुपरिचित है वह स्थिति विश्व हिंदी दिवस की नहीं है। हिंदी से जुड़े सभी लोग जब तक अपने-अपने परिवेश में विश्व हिंदी दिवस का आयोजन नहीं करेंगे तब तक यह दिवस अपनी दीप्ति से जग को आलोकित नहीं कर पाएगा। विश्व हिंदी दिवस के प्रचार-प्रसार की पृष्ठभूमि में राजभाषा की भूमंडलीय उड़ान भी संलग्न है।


Subscribe to राजभाषा/Rajbhasha