सृष्टि के प्रारंभ में व्यक्ति कबीले में रहता था और आखेट कर जीवनयापन करता था। कालांतर में क्रमशः गांव, कस्बा, शहर, नगर, महानगर और अब मेगासिटी के रूप में ढलते गया। एक अति विशाल भीड़ का व्यक्ति हिस्सा हो गया। समाज और सामाजिकता मानव प्रगति का मूल मंत्र हो गया। अंतर राज्य और अंतरराष्ट्रीय संपर्क और संबंध मानव विकास में नई ऊर्जा और संकल्पना संग गतिशील हुई। संपर्क के नित नए विकसित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने दूरियां समाप्त कर दीं। वैश्विक गांव की संकल्पना यथार्थ में परिणित हो गयी। इस प्रकार की प्रगति के साथ क्या मानव कबीले से बाहर हो गया ?
वर्तमान में मानव सभ्यता और संस्कृति के लिए यह सोचना अत्यावश्यक है कि मानवता के वैश्विक टेर के बीच एकल मानव कहा है ? विश्व में या अपने कुनबे में? विश्व में निरंतर हो रहे संघर्ष और युद्ध क्या कबीलों की तरह अपनी वर्चस्वता के लिए नहीं लड़ रहे ? क्या धर्म के संस्कार व्यक्ति को अपनी सीमाओं में सफलतापूर्वक नहीं बांधे हैं? क्या भाषा स्थान विशेष और प्रांत विशेष को बांधे रखने में अपनी स्वतंत्र भूमिका नहीं निभा रही है? क्या आर्थिक गतिविधियां अपनी भाषा और अपनी संस्कृति की प्रणेता नहीं हैं? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो व्यक्ति को एक कबीले में ही बांधे हुए है या यूं भी कहें कि व्यक्ति मूलतः कबीलाजीवी है।
अब विश्व में कहीं और किसी से भी संपर्क किया जा सकता है परंतु क्या व्यक्ति विश्व के विभिन्न व्यक्तियों और समुदायों से संपर्क करने को इच्छुक है ? विश्व को जानना और समझना व्यक्ति की मूल उत्सुकता में से एक रही है। जानना और समझना अलग है और संपर्क भी एक अलग प्रवृत्ति है। व्यक्ति संभवतः अधिकतम पचास व्यक्तियों का करीबी होता है और यह व्यक्तिगत अनुभव की संख्या है। व्यक्ति हमेशा एक कबीला चाहता है जहां उसके अनुकूल अधिकतम सुविधाएं हों। इलेक्ट्रॉनिक जगत में समूह के रूप में संचालित असंख्य “कबीले” कार्यरत हैं । अंतर्राष्ट्रीय रूप में भी कुछराष्ट्र मिलकर अपना “कबीला” गठित किये है। अपने नाते-रिश्तेदारों में भी कुछ ही लोगों से व्यक्ति की हृदय खोलकर बातें होती हैं यह भी तो लघुतम कबीला है।
सृष्टि के विभिन्न अविष्कार “कबीला” गठित कर ही हुआ है। समूह नाम कबीला शब्द का ही परिष्कृत रूप है। आधुनिक समाज जिसे भेद-भाव कहता है मूलतः वह कबीला संस्कृति ही है। धर्म, भाषा, रंग ने कबीला संस्कृति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। सामाजिक एकीकरण का प्रयास जारी है जिससे यह अपेक्षा है कि वह कबीला संस्कृति को और परिष्कृत कर एक रोचक रूप देगा।
धीरेन्द्र सिंह
08.04.2025
09.00
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