चटकते तार
सृष्टि, संसार, जीव-जंतु, परजीवी आदि में रक्तवाहिका के रूप में असंख्य नसें होती हैं जो एक-दूसरे से अपने आंतरिक स्वास्थ्य में भिन्न होती हैं इसके बावजूद भी चिकित्सा जगत अपनी सिद्ध प्रणालयों से ही उपचार करता है जिसकी सधी विभिन्न सर्वपरिचित प्रक्रियाएं होती हैं। इसी प्रकार संस्कार के भी विभिन्न तार होते हैं जो विभिन्न देशों में वहां के संस्कार के अनुरूप समाज में व्याप्त रहते हैं। जब किसी समाज के संस्कार के तार टूटने लगते हैं तब न केवल वहां के समाज प्रभावित होते हैं बल्कि मानवता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
भारत देश में पिछले कुछ वर्षों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देह प्रदर्शन और यौन क्रियाओं का प्रदर्शन का चलन जोरों पर है। इंस्टा, फेसबुक, यूट्यूब में एक जादुई शब्द है मोनेटाइजेशन अर्थात अपनी वीडियो प्रस्तुति से निर्धारित न्यूनतम हिट्स, लाईक पाकर रुपयों की प्राप्ति करना। सदियों से समाज के आकर्षण का केंद्र यौन की विभिन्न गतिविधियों रही हैं वही उन्नत रूप में आज भी हैं।
मनोरंजन में स्टैंड अप कॉमेडी क्या आ गयी मानो फूहड़ता प्रदर्शन कर सस्ते मनोरंजन द्वारा आय का नया मार्ग खुल गया। कॉमेडी शो में एक नाम अति लोकप्रिय है जो वर्षों से दोहरे अर्थ वाले संवाद का उपयोग कर और सिने कलाकारों को बुलाकर पैसा कमा रहा है। फूहड़ है पर सफल है ठीक उसी तरह जैसे एक सिने कलाकार कुछ लोगों को कुछ दिनों तक एक मकान में बंदकर मानव के कुत्सित भावनाओं का मुक्त वैभवपूर्ण प्रदर्शन कर रहा और रुपए कमा रहा, यह भी सफल है।
ऐसे ही प्रेरित होकर एक युवा ने युवा नई सोच के साथ टैलेंट की जगह लैटेन्ट शब्द का उपयोग कर अपना शो आरम्भ किया और सदस्यता लेनेवालों को निर्धारित स्थान पर आमंत्रित कर अभद्र यौन शब्दावली का और असभ्य दैहिक अभिव्यक्ति द्वारा लगातार अपने शो प्रस्तुत करना आरंभ किया। इस शो को देखने के लिए एक साहस की आवश्यकता है जहां आदर्श, सिद्धांत, नैतिकता प्रायः निम्नतम स्तर पर मिलती है।
कहावत है कि हर पाप का घड़ा फूटता है और इलाहाबादी नाम के एक युवा ने लैटेन्ट के मंच से माता-पिता के अंतरंग क्षणों का दर्शक होना या फिर उसमें सहभागी होना जैसे हेय वाक्य बोलकर सनातनी भारत के संस्कार को झकझोड़ दिया। इतना ही नहीं माखीजा नाम की युवती ने माँ की ममता पर इतनी घृणित वाक्य का प्रयोग किया कि प्रयास के बावजूद भी वह वाक्य लिख नहीं पा रहा।
सनातन का सबसे बड़ा पर्व महाकुम्भ महोत्सव जारी है। सनातन का मूल आधार परिवार है। भारत के सभी घर अपने परिवार की ऊर्जा पर चल रहे हैं। यह दुखद स्थिति है कि परिवार के परम आदरणीय मां, पिता आदि को यौन के अति घृणित वाक्य में पिरोकर मंचीय अपराध किया जा रहा है। क्या यह सनातन को कमजोर करने की प्रक्रिया नहीं है? अपने गौरवशाली इतिहास से भटके ऐसे युवाओं में संस्कार के तार टूट रहे हैं और यह विस्फोटक बनते जा रहे हैं। कैसे लगेगी ऐसे घृणित प्रस्तुतियों पर लगाम ? उपाय की तलाश जारी है।
धीरेन्द्र सिंह
11.01.2025
16.18
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